लखनऊ, दुनिया भले ही इसे नवाबों का शहर माने लेकिन असल मायनों में ये रंगबाज़ों का शहर है. यहां बान वाली गली भी कान लगाकर चूड़ी वाली गली की खनखनाहट सुनती है. फूल वाली गली की ख़ुशबू से पूरा चौक महकता है.
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यूं तो लखनऊ शहर को नज़ाकत, नफ़ासत और खुशमिजाज़ी विरासत में मिली है. रवायतों का चलन और अदब की महफ़िलें यहां बदस्तूर गुलज़ार हैं. लेकिन इस शहर के भीतर भी एक शहर बसता है, वैसे ही जैसे किसी शरीर में एक दिल धड़कता है. वो शहर जो अपना है, वो जो कभी नखलऊ तो कभी पुराना लखनऊ कहलाता है.
जिन रंगबाज़ों की बात ऊपर कही गई है, वो इसी दिल में बसते हैं. हम आज इसी दिल की धड़कन को शब्दों में बयां करेंगे और जिक्र करेंगे उन रंगबाज़ियों का, जो आपको सिर्फ़ और सिर्फ़ लखनऊ के लौंडों में ही मिलेंगी.
1-हाथ मिलाकर दिल पे लगाना, दोस्ती बढ़ती है
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जी हां, पुरानी संस्कृति के बिस्तर पर आधुनिकता की नई चादर ओढ़े हुए इस शहर की अपनी ही अलहदा चाल है. अंग्रेज़ों की हाथ मिलाने की रवायत तो इसने अपना ली लेकिन उसमें ख़ुद की कलाकारी शामिल करना नहीं भूला. यहां के रंगबाज़ लौंडे दोस्तों से हाथ मिलाते ही फट से उसे अपने दिल पे लगा लेते हैं. काहे कि भइया इससे दोस्ती और बढ़ती है.
2- गालियों में भी ग़ज़ब शराफ़त लपेटे हैं
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लखनऊ वाला गाली भी ऐसी चाशनी ज़ुबान से देता है कि सामने वाला उसे मीठी जलेबी समझ चूसता रह जाए. अमा हटिए, आप तो बिल्कुल ही गधेपने की बात कर देते हैं. मूड न ख़राब कीजिए, बताए दे रहे हैं. दिमाग़ ख़राब हो गया तो हम आपको गुम्मा ही जड़ देंगे.
3- 2 किलो छेने की शर्त लगाकर 10 हज़ार की पतंगे लड़ा लेंगे
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लट्ठेदार से लेकर पट्टेदार तक और तौखल से लेकर मानदार तक लखनऊ के लौंडे ग़ज़ब कनकउए लड़ाने के शौकीन हैं. मौसम कोई भी हो, यहां पतंगबाज़ी का कीड़ा चरम पर रहता. आलम ये है कि महज़ 2 किलो छेने की शर्त लगाकार यहां के रंगबाज़ लौंडे 10 हज़ार की पतंगे लड़ा लेते हैं. फिर दिनभर सद्दी से लेकर कन्नी तक पतंग काटने और रील पर ढील देने का तगड़ा सिलसिला चलता है.
4- कुछ अतरंगी शब्द केवल यही सुनने को मिलेंगे
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लखनऊ को पुरानी इमारतों में तलाशने वाले समझ ही नहीं पाते कि लखनऊ कोई नवाबी खंडहर नहीं बल्कि सरकारी निर्माण है, जो बदस्तूर जारी है. समय के साथ यहां की भाषा में इस क़दर बदलाव आए हैं कि इसे पूरी तरह समझने के लिए आपको जाड़े में चौक के मक्खन से लेकर गर्मी में प्रकाश की कुल्फ़ी तक वक़्त गुज़ारना पड़ जाएगा. ‘अमा ठिंगे कि’ एकदम सच बता रहा हूं मेरे भाई रक्शा, नद्दी, साबन, बम्बा, सौदा, गुम्मा, बसाते… ये शब्द यहां के लौंडों की ज़ुबान पर कब चढ़े खुद इस शहर को पता नहीं चला.
5- चाय पीनी हो या दारू, बस कुड़ियाघाट चलो
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लखनऊ में तमाम मॉल, बार, रेस्टोरेंट और कॉफ़ी शॉप खुल चुके हैं, लेकिन यहां आज भी चाय पीनी हो या दारू हर लौंडे का एक ही ठिकाना है और वो है कुड़ियाघाट. जी हां, नदी किनारे बैठकर ठंडी-ठंडी हवा लेते हुए जो मुंहपेलई करने का मज़ा है, वो आपको और कहीं नहीं मिल सकता है. ऊपर से इसमें एडवेंचर भी शामिल है. काहे कि दारोगा जी अगर पहुंच गए तो फिर आपकी तशरीफ़ की तारीफ़ में उनका डंडा जो कसीदे पड़ेगा, उसका आनंद आप ताउम्र याद रखेंगे.
6- हर झगड़े में पांच सौ लौंडे बुलाने का दावा
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‘बवाल काटना’ तो जैसे यहां की एक्सट्रा करिकुलम एक्टिविटीज़ का हिस्सा है. यहां लौंडा तब तक लौंडा ही न समझा जाता, जब तक वो दुई-चार को पेल न दे या खुद कहीं हौक न दिए जाए. अमा सच में मेरा भाई, हर शाम नुक्कड़-चौराहों पर वो रंगबाज़ी कटती है, जिसका कोई सिर-पैर नहीं होगा. 14-14 साल के लौंडे जिनकी जवानी भी उनके बुलाने से न आ रही, वो भी हर झगड़े में पांच सौ लौंडे बुलाने का दावा करते हैं. मतलब महीन कमर पे पैंट भले ही ढीली हो लेकिन भौकाल टाइट रहना चाहिए.
7- यहां दोस्त की गर्लफ़्रेंड भाभी नहीं मैडम होती है
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जी, यहां दोस्त की गर्लफ़्रेंड भाभी नहीं मैडम ही होती है. तुम्हारी मैडम का फ़ोन आया था, अपनी मैडम की फ़्रेंड से सेटिंग करा दो, बस इसी अंदाज़ में यहां बात होगी. तफ़री भी काटते हैं तो यूं. ‘का बे सुना है आजकल तुम्हारी मैडल बड़ा बवाल काट रही हैं…’ अमा बकलोली न करो ज़्यादा, बता दिए हैं कि उसके बारे में फालतू न बोला करो. आहे हाए, देखो तो मैडम के एडम को, एकदम आशिक ही हुए पड़े हैं. लगता है हमारा चमन सूतिया इश्क़ का च्वमनप्राश तगड़े से चाट लिया है.
उम्मीद है कि इस जानकारी के बाद अब जब आप कभी लखनऊ आएंगे, तो आपकी नज़रें यहां सिर्फ़ नवाबी ही नहीं रंगबाज़ी भी निहारेंगी.