ओ होली आई, होली आई, देखो होली आई रे… Happy Holi, आ गई भई होली. यूं तो हम कोई होलियारे नही हैं, लेकिन सालभर से महंगाई ने हमारी इतनी लाल कर रखी है कि अब अग़र चेहरे पर लाली नज़र न आए तो बेकार है. इसलिए, मैंने पिचकारी, गुलाल से लेकर हर ज़रूरी सामान का जुगाड़ कर लिया है. तय कर लिया है कि उड़े हुए चेहरे के रंग को अबकी बारी सतरंगी बनाकर ही छोड़ना है.

मग़र इस दौरान मुझे एक बड़ी दिलचस्प चीज़ नज़र आई. वो ये कि होली के रंग और सामान बिल्कुल उन शब्दों के माफ़िक हैं, जिन्हें हम आजकल रोज़ इस्तेमाल करते हैं. नहीं समझे? कोई नहीं, हम हैं न. यही करने के लिए तो अपन दिहाड़ी लेखक बने हैं.

तो चलिए नज़र डालते हैं, हमारे ज़ुबान पर चढ़े उन शब्दों पर जो बिल्कुल होली के रंग और सामानों जैसे हैं.

1.राष्ट्रवाद – सफ़ेदा

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होली खेलने से पहले होलियारे चेहरे पर सफ़ेदा मलते हैं, ताकि कोई भी गंदा रंग चेहरे पर टिक न पाए. राष्ट्रवाद भी बिल्कुल ऐसा ही है. इसे चेहर पर मलकर कितना भी उत्पात मचाओ, मुंह धोते ही हर गंदा रंग धुल जाएगा. फिर चाहें, स्टूडेंट्स को पीट दो या खुलेआम मॉब लिंचिंग कर लो. कोई चिंता नहीं. कथित राष्ट्रवादी चेहरों की चमक के आगे कोई भी गंदा रंग नज़र नहीं आता. 

2. इन्टॉलरेंस – जंगली रंग

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इन्टॉलरेंस यानि की असहिष्णुता, बिल्कुल जंगली रंग माफ़िक है. हर ख़ुराफ़ाती इसका इस्तेमाल करता है. एक बार इसका रंग चढ़ गया, तो फिर उतरना मुश्किल है. इसका रंग आपके चेहरे के साथ हंसी को भी गंदा बना देता है. नतीजा, किसी भी कॉमेडियन को उठाकर ठूस दीजिए जेल में.

3. डेमोक्रेसी – गुलाल

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शराफ़त से होली खेलना हो तो गुलाल से बेहतर कुछ नहीं है. डेमोक्रेसी भी गुलाल की तरह ही है. शरीफ़ से शरीफ़ आदमी भी बेहिचक इससे खेलता है. ख़ुराफ़ाती भी इसमें जंगली रंग मिलाकर सुविधानुसार इस्तेमाल कर ही लेते हैं. कहने का मतलब यही है कि इससे सभी खेलते हैं और कोई बुरा नहीं मानता.

4. सेक्युलरिज़्म – अबीर

जब डेमोक्रेसी रूपी गुलाल में सेक्युलरिज़्म की चमक मिलाई जाती है, तो मस्त अबीर तैयार होता है. इसका फ़ायदा ये होता है कि आप बाज़ार में इसे थोड़ा ऊंचे दाम पर कस्टमर को बेच सकते हैं. साथ ही, गुलाल और अबीर दोनों को साथ में लेकर खेलने पर लोगों को मज़ा ही अलग आता है. 


5. मीम्स – गुब्बारा

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मीम्स और गुब्बारों में कोई अंतर नहीं है. हाथ बराबर लौंडे भी इसका भरपूर इस्तेमाल करते हैं. ये कब किस गली-चौराहें पर कहां से आपके मुंह पर जड़ दिए जाएं कुछ पता नहीं. इससे रंग तो जमता ही है, साथ में ये चोट भी ठीक-ठाक पहुंचाता है.

6. बॉयकॉट – पिचकारी

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बॉयकॉट एकदम पिचकारी माफ़िक है. ये एकदम से लबालब भर जाती है और एक बार में ही सररररर से खाली. फ़िर थोड़ी देर फ़ुश्श-फ़ुश्श कर सारा पानी निचोड़ कर बाहर निकाल देती है. इतिहास गवाह है कि कोई भी पिचकारी सालभर से ज़्यादा नहीं चली है. इसका बस ढंग से इस्तेमाल गुब्बारे (मीम्स) भरने में ही हो पाया है. 

7. ट्रेंडिंग – भांग

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बिना भांग के जैसे होली अधूरी है, वैसे ही बिना ट्रेंड हुए ऊपर बताई गई किसी भी चीज़ का कोई महत्व नहीं है. फिर चाहें वो राष्ट्रवाद हो, डेमोक्रेसी हो, सेक्युलरिज़्म हो, इन्टॉलरेंस हो, मीम्स या फिर बॉयकेट. जब तक इन शब्दों को # लगाकर ट्रेडिंग न बनाया जाए, तब तक खेलने का मज़ा नहीं आता. 

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ये सब पढ़ने के बाद  उफ़ ये होली हाय ये होली करने की ज़रूरत नहीं है. अब से बोलिए सिर्फ़ प्यार की बोली, मस्त होकर मनाइए Happy Holi.