मैं जिस गली में रहता हूं, उस गली का नाम है ‘बाबा कट्टो सिंह मार्ग’. अभी कुछ महीनों पहले ही इस गली का नया नामकरण हुआ है. पहले इस गली का नाम था ट्रंक वाली गली. ट्रंक वाली गली इसलिए था क्योंकि कई सालों से इस गली में ट्रंक की दुकानें हैं.
एक दिन अचानक से ट्रंक वाली गली का नाम ‘बाबा कट्टो सिंह मार्ग’ हो गया. जिस गली की मैं बात कर रहा हूं, वो एक साधारण गली है, जो हर आम मौहल्ले में होती है इसलिए इसके नामकरण करने के पीछे मुझे कोई लॉजिक नहीं लगा.
ख़ैर ये तो सिर्फ़ मेरी गली है, लेकिन पूरे देश में कई जगहों के नाम बदले जा रहे हैं. नाम बदलने के पीछे कारण जो भी हो, इसमें ख़र्च हमारी मेहनत का पैसा होता है.
ये वो जगहें हैं जिनका नाम चेंज करने के बाद देश की विकास दर छलांगें मारने लगीं (ये इस आशा के साथ लिखा है कि आप ह्यूमर समझते हैं)
लखनऊ का हज़रतगंज चौराहा बनेगा अटल चौक

लखनऊ के हज़रतगंज चौराहे का नाम अटल चौक रखने की बात चल रही है. स्वर्गीय अटल जी के सम्मान में लिया गया ये क़दम पूरी तरह से राजनीतिक चौका है.
‘छत्रपति शिवाजी इंटरनेशनल एयरपोर्ट’ बना ‘छत्रपति शिवाजी महाराज इंटरनेशनल एयरपोर्ट’

ये नाम भी हाल ही में बदला है. सिविल एविएशन मिनिस्टर सुरेश प्रभु ने ट्वीट कर के कहा कि ‘मुंबई एयरपोर्ट का नाम बदल दिया है, सभी को मुबारकबाद…’ नाम बदला क्या था, छत्रपति शिवाजी से छत्रपति शिवाजी महाराज।
गुड़गांव बना गुरुग्राम

भई गुड़गांव जिस चीज़ के लिए पहले भी फ़ेमस था, आज भी उसी चीज़ के लिए है. लेकिन अपनी सरकार भी गुरू है इसलिए नाम बदल दिया और गुरुग्राम कर दिया. वैसे आपको बता दें कि गुड़गांव माफ़ कीजिएगा, गुरुग्राम के रेलवे स्टेशन का आज भी गुड़गांव है.
मुग़लसराय स्टेशन – दीन दयाल उपाध्याय स्टेशन

पिछले साल मुग़लसराय स्टेशन का नाम बदलकर दीन दयाल उपाध्याय स्टेशन हो गया था. अब उसका रिज़ल्ट ये हुआ है कि यहां से जो भी ट्रेन गुज़रती है, उसकी स्पीड बुलेट ट्रेन से कम नहीं होती. बाकी ट्रेन लेट होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता.
औरंगज़ेब रोड- एपीजे अब्दुल कलाम रोड

डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम तो वो शख़्सियत थे, जो हमेशा सबके दिलों में रहेंगे. उनके नाम पर किसी नई रोड का नाम रखा जा सकता था, एक पुरानी रोड का नामकरण क्यों किया गया?
वहीं यूपी की तो कई जगहें ऐसी हैं, जिनके नाम चेंज हुए हैं. जो पार्टी राज्य में आती है, वो अपनी विचारधारा के हिसाब से जगह का नाम बदल देती है. जैसे उर्दू बाज़ार हुआ हिंदी बाज़ार, अली नगर हुआ आर्य नगर, मियां बाज़ार हुआ माया बाज़ार, इस्लामपुर हुआ ईश्वरपुर, हुमायूं नगर हुआ हनुमान नगर.
नाम बदलने के चक्कर में राजनीतिक पार्टी अपने वोट बैंक को बड़े आराम से कब्ज़े में कर लेती है. ख़ुशी में लोग ये भूल जाते हैं कि ये नाम बदलने का पैसा उन्हीं की जेब से जा रहा है. ये पैसा किसी रोड की मरम्मत में, किसी और विकास कार्य में इस्तेमाल हो सकता था.