देश में सैकड़ों विश्वविद्यालय हैं, उनमें लाखों छात्र पढ़ते हैं. लेकिन सोशल मीडिया के हिसाब से देश में केवल एक युनिवर्सिटी है जिसमें मुट्ठी भर छात्र पढ़ते हैं और देश में हो रहे सभी अच्छे बुरे घटनाओं के लिए वही ज़िम्मेदार हैं. नाम तो आप समझ ही गए होंगे फिर भी हमारे बीच किसी प्रकार की मिसअंडरस्टैंडिंग न हो इसलिए बता दूं कि हम दिल्ली के जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्याय की बात कर रहे हैं. 

Business Today

कल पता चला कि इस साल अभिजीत बैनर्जी को अर्थशास्त्र का नोबल पुरस्कार मिला. साथ में दो लोग और भी थे, उनमें से एक Esther Duflo थीं, जो उनकी पत्नी भी हैं. जब से ये बात उठी सोशल मीडिया पर खुशी की लहर दौड़ गई क्योंकि असल जीवन में किसी को घंटा फर्क नहीं पड़ता किसको क्या मिल रहा है. अभिजीत बैनर्जी जो हैं, उन्होंने JNU से मास्टर्स की डिग्री हासिल की है. कल इत्ती सी राई का जो पहाड़ बनाया गया वो मत पूछिए. अभिजीत ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से भी पढ़ाई की है, हावर्ड्स युनिवर्सिटी भी गए लेकिन सीना चौड़ा हुआ सिर्फ़ JNUites और उसके समर्थकों का. 

देश में राजनैतिक घटनाक्रम कुछ ऐसे बने कि सांकेतिक रूप से JNU की इमेज विपक्ष की बन गई. इस इमेज को बनाने में सत्ताधारी पार्टियों के नेताओं की सबसे बड़ी भूमिका है. अब चुंकी देश में असली में विपक्ष जैसा कुछ बचा नहीं तो लोग JNU को ही विपक्ष समझ कर खेलते रहते हैं. मंत्री जी भी घूम फिर कर अपने सभाओं में JNU पर हमला बोल देते हैं और विपक्ष के लोग भी कैंपस में ABVP की हार का जश्न ऐसे मनाते हैं जैसे यहीं से भाजपा की हार की कहानी लिखी जाएगी. 

अभिजीत बैनर्जी को नोबल मिला सारे JNU वाले अपने होस्टल के रैक में जगह बनाने लगें जैसे मेडल उनके कमरे में ही रखा जाएगा. गंगा ढाबा पर उनके नाम की चाय बांटी गई. सोशल मीडिया पर मार ट्वीट-मार ट्वीट छीछा लेदर कर दिया गया. 

एक दिन का तमाशा था ख़त्म हो गया, ही ही हा हा हुआ और भविष्य के लिए एक सामान्य विज्ञान का सवाल बढ़ गया.