हमारा देश एक खेलप्रिय देश है और खेलों में क्रिकेट तो यहां एक धर्म बन चुका है. इस खेल को लोग खेल से ऊपर उठ कर देखते हैं, तभी तो एक क्रिकेटर हमारे देश में भगवान बन जाता है. खैर ये रही बात भारत के एक नए धर्म की, अब बात करते हैं कि इसको मानने वाले लोग कैसे-कैसे होते हैं? जैसा कि हम सब जानते हैं कि हमारे देश में आपको किसी भी मुद्दे पर बोलने वाले लोग मिल जायेंगे. भले ही उन्हें आता-जाता कुछ नहीं हो, पर उनके भीतर का ये टैलेंट उन्हें कहीं भी किसी भी टॉपिक पर ज्ञान देने के लिए मजबूर कर देता है.

आइये आपका इस पूरी प्रजाति से परिचय कराते हैं.

1. अति आशावादी

इन लोगों का अपनी टीम और खिलाड़ियों पर इतना विश्वास होता है कि अगर एक ओवर में सौ रन भी बनाने हों तो ये उम्मीद नहीं छोड़ते. ये लोग मैच की आख़री बॅाल तक टीवी स्क्रीन के पास बैठ कर इस बात का इंतज़ार करते रहते हैं कि काश कोई चमत्कार हो जाए.

2. निराशावादी

ये लोग बड़े नेगेटिव सोच के होते हैं. इनको कभी भी अपनी टीम पर विश्वास ही नहीं होता. अगर टीम को सौ गेंदों में दस रन बनाने हों तो भी ये कैप्टन को कोसते नज़र आयेंगे. इनको लगता है कि अपनी टीम जीतने के लिए नहीं बनी है.

3. एक्सपर्ट

ये लोग घर बैठे वो एक्सपर्ट्स होते हैं, जो खुद की नज़र में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी हैं. ये बॉल देख कर बताने लगते हैं कि बॉल किस दिशा में जाएगी या इस बॉल पर विकेट गिरेगा या बाउंड्री लगेगी. ऐसे लोग साथ बैठ कर मैच देख रहे लोगों को फ्रस्ट्रेशन के सिवा कुछ नहीं देते.

4. पहली बार मैच देखने वाले

ये उस बालक की तरह होते हैं, जिसने अभी हाल ही में बोलना शुरू किया है. इनको हर बात जानने की जिज्ञासा होती है, जैसे ये धोनी है न, या सचिन क्यों नहीं खेल रहा, उस खिलाड़ी ने दाढ़ी क्यों बढ़ाई है और न जाने क्या-क्या? अगर आप मैच का मज़ा लेना चाहते हैं तो इस श्रेणी के लोगों को देखते ही कट लीजिए.

5. हर बात पर बोलने वाले

ये लोग भी कम काबिल नहीं होते, इन्हें हर बॉल के बाद अपनी प्रतिक्रिया देनी होती है, जैसे अगर मैच इनके विश्लेषण के लिए रुक सा गया हो. इनकी बातें बेबुनियाद और बिना काम की होती हैं, फिर भी भाई मुंह है इनका, बोलने से बाज नहीं आते ये लोग.

6. कमेंट्री करने वाले

जी , आपके साथ मैच देखने वाला अचानक नवजोत सिंह सिद्धू बन जाता है. सबसे गुस्सा आता है ऐसे लोगों एक साथ मैच देखने में. ये लोग ऐसे बताने लगते हैं जैसे इनके साथ मैच देख रहे बाकी लोग अंधे हो गये हैं.

7. क्रिकेटर के फूफा-जीजा टाइप लोग

जैसे हर शादी में फूफा और जीजा नाराज़ हो जाते हैं, वैसे ही क्रिकेटर्स के भी कुछ फूफा और जीजा होते हैं, जो आपके साथ बैठ कर मैच देख रहे होते हैं. कोई खिलाड़ी भले ही एड़ी-चोटी का जोर ही क्यों न लगा दे, ऐसे लोगों को खुश करना नामुमकिन है. वो अच्छे से अच्छे शॉट्स में भी खामियां निकाल लेते हैं और जीत में तुक्का होने की ख़बर.

8. कोच

जो खिलाड़ी मैच खेल रहा होता है, उसे जितनी टेंशन नहीं होती, उससे कहीं ज़्यादा ऐसे लोगों को होती है. ये खिलाड़ी को टीवी स्क्रीन के बाहर से ही सिखाते हैं कि इसको उठा के मारो या ऑफ में खेलो और न जाने क्या-क्या. घर के सोफ़े पर बैठे-बैठे अगर कोई दोस्त अपने नाखून चबा रहा हो तो समझ लीजिये वो इसी केटेगरी का है.

9. इतिहासकार लोग

ये लोग इतिहास से क्रिकेट के ऐसे-ऐसे राज़ उठा कर ले आते हैं, जिनके बारे में इनके अलावा कोई और नहीं जानता होगा. क्रिकेट मैच के बीच में भी वो बताने लगते हैं कि जब ये स्थिति हुई थी 1983 में, तो कपिल देव ने क्या किया था.

10. फोर्थ अंपायर

भले ही ग्राउंड पर खड़े अंपायर या मैच के थर्ड अंपायर से कोई गलती हो जाए, पर टीवी स्क्रीन पर मैच देख रहे इन दर्शकों की आंखें कभी गलत फ़ैसला नहीं सुनातीं. ये बेहतर जानते हैं कि बॉल बल्ले को छूकर विकेटकीपर के दस्तानों में गयी है या नहीं, या फिर एल.बी.डब्लू. आउट है या नहीं.

क्रिकेट देखना कई लोगों के लिए बड़ा मज़ेदार होता है, पर इस तरह के लोग मैच की धज्जियां उड़ा कर रख देते हैं. सच तो ये है कि मैच अकेले भी नहीं देखा जा सकता, इसलिए अपने दोस्तों को बुलाएं और मैच का आनंद उठायें, और अगर आपके दोस्तों में ये सब बातें हैं तो फिर आप जानें और भगवान जानें.

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