मुझे सुबह देर से उठने की आदत है और उठते ही हाथ फ़ोन पर और सरसरी निगाह फ़ेसबुक टाईमलाइन पर जाती है. आज जब आंख मलते हुए अपनी बूढ़ी टाइमलाइन देखी तो सबसे पहले तो लगा इंसेप्शन चल रहा है, सपने में सपना देख रहा हूं. थोड़ी देर बाद पता चला कि मार्केट में नया चरस आया हुआ है और मेरे सोते भर में पूरी रात उसी का बंदर बांट हुआ है. 

FaceApp नाम की एक नई बला सबके हाथ लगी है, इसके फ़िल्टर के इस्तेमाल से लोगबाग ख़ुद को बूढ़ा बना रहे हैं. App भी बढ़िया काम कर रहा है. इतनी करीने से चेहरे पर झुर्रियां निकाल रहा है कि लगता ही नहीं कि नकली है. ये इतना अच्छा काम कर रहा है कि बाल रंग कर उम्र छुपाने वाला व्यक्ति भी ख़ुद को बूढ़ा देख फूला न समा रहा है. 

अभी कल तक इस देश की जनता फ़ेसबुक पर क्रांति की मशाल लिए घूम रही थी. छोटी सी बात को भी मशाल सटा कर ज्वलंत मुद्दा बना देने का दमखम रखने वाले युवा रात भर में ही घुटने में तेल मलने लगे. जिस टाइमलाइन पर इंक़लाब के गीत गाए जाते थे, वहां सतसंग का माहौल बना हुआ है! 

अभी यही छरहरे बूढ़े लोग, कुछ दिनों पहले SnapChat से उधार लिया हुआ क्यूटनेस का पाउडर मार कर पोलियो ड्रॉप पीने वाले बच्चे बने घूम रहे थे, तब भी सोशल मीडिया दो दिनों तक किंडरगार्टन वाला फ़ील दिया था. 

कोई बात नहीं, चार दिन की जवानी है, दो दिन का ये बुढ़ापा, कट ही जाएगा.. सबको मज़ा आ रहा है, तो मज़े लेने देना चाहिए इसमें मेरे या किसी और के भुन्नभुनाने की वजह तो नहीं दिखती. मेरी शिकायत FaceApp से है, बुढ़ापे में सिर्फ़ चेहरे पर झुर्रियां नहीं आतीं, बाल भी जाते हैं, दातों को भी गंवाना होता है. अगले वर्जन में जब ये चीज़ें भी फ़िल्टर में जुड़ जाएगी तब देखने में मज़ा आएगा कि कितने लोग उस सच्चाई वाली तस्वीर को शेयर करते हैं.