हम अगर ऑफ़िस में फ़ोन करके बॉस को बोलें कि गले में ख़राश है, आज छुट्टी चाहिए तो ऐसी गालियां मिलेंगी कि कान से खून निकल जाए और उधर जर्मनी वाले हैंगओवर को बिमारी मानकर छुट्टी देने को तैयार हैं. 

और सही भी है! अगले ने रातभर दारू पी है, खुशी या ग़म जो भी वजह रही हो… सुबह सिर दर्द होता है… ऐसे में ऑफ़िस जाने की मजबूरी नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त है. बॉस को बोलो कि हैंगओवर है ऑफ़िस नहीं आ सकता तो वो समझेगा रातभर पार्टी की सुबह नाटक कर रहा है. अगर पार्टी भी कि तो क्या सुबह सिर्द दर्द तो हो रहा है न, सिर दर्द अस्वस्थ इंसान की ही निशानी है. 

हमारे यहां तो सर्दी-जुकाम-ख़ांसी तक को बिमारी नहीं माना जाता है. बॉस ज़्यादा से ज़्यादा सांत्वना दे सकते हैं. लेकिन, छुट्टी की उम्मीद न रखें. बुखार भी 102 के ऊपर जाए तभी बुखार है, उसके पहले तक ‘हल्का फीवर’ ही तो है कह कर काम पर बुला लेते हैं. 

होना तो ये चाहिए कि ‘दिल के दर्द’ को भी बिमारी मानना चाहिए, उसकी भी छुट्टी मिलनी चाहिए. 

अगले का ब्रेकअप हुआ है वो काम करने के मानसिक स्थिति में नहीं है, मानसिक तौर पर स्थिर नहीं है. अब जो इसके बाद दारू पी लिया उसको तो अगले दिन हैंगओवर की छुट्टी मिल जाएगी और जो नहीं पीता उसकी तकलीफ़ तो और भी ज़्यादा है… वो ग़म ग़लत भी नहीं कर सकता… छुट्टी भी नहीं ले लकता. ऐसे लोगों को तो दो दिनों की छुट्टी मिलनी चाहिए. 

यहां हैंगओवर वाले नियम को लागू करने की अपनी अलग परेशानियां हैं. बिमारी होने पर हम ऑफ़िस में मेडिकल रिपोर्ट दिखा देते हैं. हैंगओवर वाले केस में ठेके की रसीद नहीं दिखा सकते, वो देते ही नहीं हैं, खाली बोतल की फ़ोटो पर कोई यकीन नहीं करेगा, वो पुरानी भी हो सकती है. इसलिए पहले सिस्टम ठीक करने की ज़रूरत है, फिर छुट्टियों की लड़ाई होगी.