‘पंखे साफ़ कर ढंग से’
‘हाय राम! अभी तक नहीं नहाया’
‘बेटा, थोड़ा सा और खा ले न’
अगर त्यौहार हो और घर पर रहो तो ऐसा ही कुछ-कुछ सुनने को मिलता है, है न?
‘सभी को वर्क फ़्रॉम होम करना है’
‘2 दिन घर पर यानी 2 दिन नो नहाना’
‘ऑनलाइन ही मंगा लेते हूं कुछ’
और त्यौहार पर फ़्लैट में ही पड़े रहो तो लाइफ़ की हक़ीक़त कुछ यूं होती है.
अपने यहां बहुत से त्यौहार होते हैं, ज़ाहिर है कंपनी अगर ज़्यादा बुरी न हो तो ठीक-ठाक छुट्टियां भी मिल ही जाती है. हालांकि, हर छुट्टी में हर कोई घर नहीं जा पाता.
हमने Imagine किया कि घर वाली दीवाली और बैचलर वाली दीवाली कैसी होती है और रिज़ल्ट ये आए-




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एक बैचलर ही समझ सकता/सकती है त्यौहार पर अकेले कमरे में पड़े रहने का दर्द!
Awesome Illustrations by: Muskan
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