मच्छर से सभी नफ़रत ही करते हैं. अलग-अलग रोगों के किटाणु इधर से उधर पहुंचाने वाले ये मच्छर जीना मुहाल किए रहते हैं. मच्छरों का कहीं कहीं प्रकोप इतना है कि दिन में भी मच्छरदानी लगानी पड़ती है. हां हां मालूम है कई प्रकार के धूप, अगरबत्ती, Refil वगैरह मौजूद हैं लेकिन कोई काम नहीं करता! 

और मच्छरों के काटने जितना ही असहनीय, इरिटेटिंग (Irritating) लगता है उनका कान के पास आकर राग अलापना. समझ नहीं आता कि ये काट-काटकर लाल करने से पहले किस प्रकार की युद्ध घोषणा करते हैं! 

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क्यों कान के पास भिनभिनाते हैं मच्छर? 

जो मच्छर हमें काटते हैं वो मादा मच्छर होते हैं. नर मच्छर फूलों का नेक्टर (Nectar) से ही गुज़ारा कर लेते हैं. अब आवाज़ की बात कर लेते हैं. Goody Feed के एक लेख के मुताबिक़, मच्छर जब अपने पंख काफ़ी तेज़ी से फड़फड़ाते हैं तो वो आवाज़ निकलती है, जो हमें सुनाई देती है. मच्छर अगर एक सेकेंड में 250 बार अपने पंख फड़फड़ाये तभी उतनी तेज़ आवाज़ हो सकती है! 

मने ये योद्धा वाली निशानी तो है कि आक्रमण करने से पहले सूचना दे रहे हैं!

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मच्छरों द्वारा की गई आवाज़ पर कई शोध हुए हैं लेकिन कोई भी शोध पूरी तरह से रिलायबल (Reliable) नहीं है. सारे शोधों का सार यही है कि मच्छर कान के पास ही इसलिए भिनभिनाते हैं क्योंकि वो गंध से आकर्षित होते हैं. नाभि के अलावा हमारा कान ही ऐसी जगह है जहां बहुत सारे किटाणु होते हैं, जर्म्स (Germs) होते हैं.  

एक अन्य थ्योरी (Theory) की मानें तो मच्छर हमारे द्वारा छोड़े गये कार्बन डायऑक्साइड (Carbon dioxide) से भी आकर्षित होते हैं.
थ्योरीज़ (Theories) ख़त्म नहीं हुई हैं. एक और मज़ेदार थ्योरी (Theory) ये भी कहती है कि मादा मच्छर नर मच्छर को आकर्षित करने के लिए भिनभिनाती हैं. हालांकि इसे साबित करने के लिए शोध नहीं हुए हैं.   

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अब तक कि बातों से तो यही समझ आता है कि कान की गंदगी के कारण कान के पास भिनभिनाहट होती है तो मच्छर को कान से दूर रखने के लिए कान साफ़ रखो.