‘हंगामा है क्यों बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है…’

कॉन्सर्ट से तो ऐसा प्रेम है कि ऊपरवाले ने मेरे घर के ठीक नीचे ही रोज़ रात एक कॉन्सर्ट की व्यवस्था कर दी है. रात के 12 बजे ‘नैंसी’ आलाप लेती है. उसके आलाप पर ‘बिट्टू’ तान छेड़ता है और इन दोनों के पीछे ‘लिली’, ‘छोटू’, ‘शेरू’ कोरस में गाते हैं.

एनिमल लवर्स मुझे गालियां दें, उससे पहले उन्हें बता दूं कि छुट्टी के दिन या यूं ही कभी-कभी मैं भी इनकी गर्दन पर हाथ फेरती हूं, इनके साथ खेलती हूं. घर आने पर पार्किंग में ये लोग मुझे देख कर आंखों ही आंखों और पूंछ हिला कर ख़ुशी ज़ाहिर करते हैं. कभी-कभी पीछे के दो पैरों पर खड़े होकर गले लगाने की कोशिश भी करते हैं.

मज़े की बात क्या है, पता है? मैंने ऑब्ज़र्व किया है कि इनके गाने हफ़्ते के दिन के हिसाब से होते हैं. शुक्रवार-शनिवार को ‘DJ नाईट’, जिसमें अगल-बगल की गलियों के कुत्ते होते हैं. सोमवार को काफ़ी कम साउंड में ‘ग़ज़ल नाइट’, बोले तो 2-3 लोग ही होते हैं. बुधवार और गुरुवार को ‘बॉलीवुड नाइट’.

सोचिए कोई 10 घंटे दफ़्तर में दिन बिता कर रात के 10 बजे घर लौटा हो, खाना खाया हो और ये सोच रहा हो कि आज तो जीभर के सोएंगे और रात में ठीक 12 बजे इनका मधुर संगीत सुनाई दे, कैसा महसूस करेगा वो? बस वही फ़ील आती है मुझे.
फिर भी जब इन पांचों को कोई ‘हट्ट’ कहता है या उन पर पत्थर फेंकता है, तो बहुत गुस्सा भी आता है. दिवाली में इनको मैंने एक कोने में दुबके हुए देखा है. एक बार एक आदमी मेरा पीछा करते-करते घर के नीचे पहुंच गया था. उसे भौंक कर भगाते हुए भी मैंने उन्हें देखा है.
