नवाबों के शहर लखनऊ की नज़ाकत और नफ़ासत की लोग कसमें खाते हैं. काहे कि यहां गाली भी ऐसी चाशनी ज़बान से दी जाती है कि सामने वाला उसे मीठी जलेबी समझ चूसता रह जाए. यहां लोगों के बोलने का लहज़ा तो कमाल है ही, साथ में लफ़्ज़ इतने शानदार इस्तेमाल होते हैं कि पूछिए मत.
आप किसी भी नुक्कड़-चौराहें पर खड़े हो जाएं, आपको एक से बढ़कर एक उम्दा शब्द सुनने को मिल जाएंगे. आज हम ऐसे ही कुछ शब्दों से आपको रूबरू कराएंगे, जो लखनऊ वालों की ज़बान पर कब चढ़े ख़ुद इस शहर को भी मालूम नहीं पड़ा.
1. अमा
लखनऊ वालों की कोई भी बात इस शब्द के बिना शुरू हो ही नहीं सकती. अमा यार सुनो कल सनिमा चलते हैं. अमा ठिंगे की गोला मत देना. अमा काहे फर्जी रंगबाज़ी करते हो यार. अमा मतलब बात कुछ भी हो इस शब्द के बिना आगे बढ़ ही नहीं सकती.
2. तफ़री
दुनिया भले ही मौज काटे लेकिन लखनऊ वाले सिर्फ़ तफ़री काटते हैं. मने, सुबह से लेकर शाम तक किसी मोहल्ले-चौराहे पर घूम आओ, आपको चार लौंडे फर्जी ही तफ़री काटते दिख ही जाएंगे.
3. चक्कलस
अब तफ़री तो वही काटते हैं, जिनके पास चक्कलस करने के लिए बहुत टाइम होता है. अब लखनऊ तो गुरू लखनऊ है, यहां तो घड़ी भी टिक-टिक के बजाय आदाब-आदाब करके चलती है. बस, यहां हौक के टाइम है तो पेल के चक्कलस भी की जाती है.
4. कनकउआ
अब लखनऊ के लौंडों की पतंगबाज़ी के शौक से कौन नहीं वाकिफ़ है. यहां वो हक्कानी कनकउए पार किए जाते हैं कि क्या ही बताएं. फिर दे कन्नी, दे सद्दी पतंगे काटने के बीच एक ही आवाज़ सुनाई देती है, ‘काटा ओ…’
5. ख़लाना
ये यहां का एक बड़ा ही अतरंगी शब्द है. जबर मुंहपेलई के बीच जैसे ही कोई तुनक जाए, बस तुरंत ये लफ़्ज़ सुनाई पड़ जाएगा. ख़ल गई, बस इत्ते में ही ख़ल गई तुम्हाई. अमा अभी तो हम तुम्हाई ख़लाना शुरू भी नहीं किए हैं.
6. पानी के बताशे
देखो गुरू, लखनऊ में ये गोलगप्पे-वप्पे और पानी पूरी वगैरह नहीं चलता हैं. यहां खाए जाते हैं बताशे, वो भी क़ायदे से मटर भरवाकर. बाकी खाने के बाद सूखा बताशा लेने की प्रथा पूरी दुनिया की तरह यहां भी जारी है.
7. तशरीफ़ रखिए
अमा आइए तो भाईजान, ज़रा यहां तशरीफ़ रखिए. जी हां, लखनऊ में मेहमान को बैठने के लिए कहने का ये एक अदब है. किसी बाहर से आए इंसान को बोल दें, तो इत्ती इज़्ज़त बेचारा झेल न पाए. वहीं छाती पीट-पीटकर रो दे.
8. अमा घुसो या रस्ता नापिये
भइया दिमाग़ ख़राब हो जाए, तो यहां अदब, सबसे पहले तेल लेने जाता है. फर्जी रंगबाज़ी यहां किसी की नहीं चलती. ज़्यादा बकैती की नहीं कि यही सुनाई देगा, अमा चलो घुसो यहां से. हम बताए दे रहे हैं, अब आप बहुत तेज़ रस्ता नापिए नहीं तो मुंह ही पर जड़ देंगे कंटाप. हां, ये ध्यान रहे कि यहां रास्ता नहीं रस्ता होता है.
9. बवाल या मैटर
दुनियाभर में झगड़े होते हैं, पर लखनऊ में बवाल और मैटर होते हैं. फिर भले ही सड़क पर लखैरों के बीच हुआ हो, या प्रेमी-प्रेमिका के बीच. ये दोनों शब्द हमारा असली इमोशन बयां करते हैं.
10. बहुत पेलेंगे
अब भइया बवाल कटेगा तो हौकम-हौकाई तो होनी ही है. यहां लौंडे ये अक्सर बोलते मिल जाएंगे, ज़्यादा इतराओ नहीं वरना बहुत पेले जाओगे. साला चौराहे पर लोटा-लोटा के मारेंगे. भूत बना देंगे तुमको.
तो जनाब ये थे वो चौकस लफ़्ज़, जिन्हें लखनऊ वालें ज्यादातर अपनी फ़ीलिंग ज़ाहिर करने के लिए इस्तेमाल करते हैं. कैसे लगी पेशकश ये तो बताइएगा ही. साथ में, आपके शहरों में कौन-कौन से बेहतरीन शब्द बोले जाते हैं, वो भी कमेंट बॉक्स में लिख डालिए.