भगवान अगर चाहते कि इंसानों को शाकाहारी होना चाहिए तो वो चिकन को इतना टेस्टी बनाते ही नहीं! और टिंडे, करेले, लौकी, बैंगन में भरपूर स्वाद भरा होता. चाहे चिकन जितना ख़राब बना हो, पसंद का न बना हो नॉन-वेजिटेरियन खा ही लेते हैं, लेकिन वेजिटेरियन लोगों की दाल पीली से काली हो जाए, उनके ख़ुद के गले से नीचे नहीं उतरती. 

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आज वर्ल्ड वेजिटेरियन डे है, तो इसके सम्मान में मैंने सोचा आज नॉन-वेज नहीं खाउंगा. चूंकि इस दिन के बार में मुझे देर से पता चला इसलिए ब्रेकफ़ास्ट के लिए उबाले अंडे मैंने फ्रिज में रख दिए. फिर याद आया कुछ लोगों के हिसाब से अंडा नॉन-वेज नहीं होता, उसे पक्षीफल मानते हैं. पूरे दिन शाकाहारी रहने में मुझे कोई परेशानी नहीं होगी क्योंकि मंगलवार है ऊपर से नवरात्र चल रहे हैं. 

वेजिटेरियन और नॉन-वेजिटेरियन सिर्फ़ खाने की पसंद तक सीमित नहीं है. लोग इसका धर्म की तरह प्रचार करते हैं, तीन वेजिटेरियन एक साथ बैठ जाएं तो चौथे नॉन-वेजिटेरियन को सादा खाने के फ़ायदा समझाने लगता है, जीव-जंतु के ऊपर दया की बातें होती हैं, पेट के खाने को मन की शांति से जोड़ दी जाती है. जब तीन नॉन-वेजिटेरियन के बीच में एक वेजिटेरियन फंसता है तब उसे हिकारत भरी नज़र से देखा जाता है, उसे दोयम दर्जे का इंसान समझा जाता है. तीनों अपना खाना तो खाते ही हैं, बेचारे के प्लेट पर भी हाथ साफ़ कर देते हैं. 

कुछ लोग बोलते हैं कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा, कोई अनुमान लगता है इसकी वजह पेट्रोल होगी लेकिन मैं समझता हूं तीसरा विश्व-युद्ध वेज और नॉन-वेज खाने की वजह से होगा. कुछ नॉन-वेजिटेरियन लोग एक शाकाहारी दोस्त के थाली में हाथ लगा देंगे और खाना छू जाने की वजह से उसे अपना पूरा ऑर्डर छोड़ना पड़ जाएगा, वेजिटेरियन व्यक्ति पहले नाराज़ होगा फिर बहस होगी, फिर मुक्के चलेंगे और आखिर में दुनिया दो हिस्सों में बट जाएगी. 

मैं ये बात किसी आंकड़े के आधार पर नहीं कह रहा लेकिन भारत में अधिकांश लोग अपनी मर्ज़ी ने से नहीं अपनी परवरिश और धार्मिक मान्यता की वजह से शाकाहारी हैं. मांस न खाने का फ़ैसला उनका अपना नहीं होता वो बाद में अपने माता-पिता के फ़ैसले के साथ खड़े हो जाते हैं. साथ ही साथ शाकाहारी होने के भी सबकी अपनी परिभाषा है, कोई सप्ताह के तीन दिन शाकाहारी होता है तो कभी किसी ख़ास महीने में शाकाहारी होता है.