शेर-ओ-शायरी और उर्दू अदब की दुनिया में जावेद अख़्तर एक ऐसा नाम है, जिससे शायद ही कोई मुख़ातिब न हो. हिप हॉप और पॉप गानों के बावजूद आज यदि ग़ज़लें और गाने अपनी जगह बनाये हुए हैं, तो इसके पीछे एक वजह जावेद साहब की क़लम भी है. जावेद साहब बॉलीवुड के उन गिने-चुने राइटर्स में से एक हैं, जो आज भी उर्दू स्क्रिप्ट में ही गाने और फ़िल्म लिखते हैं. उनके लिखने के बाद ही कोई ट्रांसलेटर उसका हिंदी या इंग्लिश में अनुवाद करता है.

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जावेद साहब ने फ़िल्मों की रंगीन दुनिया में उस समय कदम रखा, जब फ़िल्म लिखने वाले लेखकों को ही इससे दरकिनार करके रखा जाता था. सलीम खान के साथ मिल कर जावेद अख़्तर ने ही बॉलीवुड में लेखकों के लिए एक नई शुरुआत की, जिसके बाद फ़िल्म स्क्रीन पर एक्टर्स, डायरेक्टर के साथ-साथ राइटर्स का नाम लिखा जाने लगा.

इंटरव्यू और किसी प्रोग्राम में जावेद साहब को देखकर लगता है कि वो बड़े ही दिलचस्प इंसान है, जो बड़ी ही बेबाकी के साथ बड़ी से बड़ी बात कह जाते हैं. इस बेबाकी के पीछे उनकी वो परवरिश ज़िम्मेदार है, जिसने उन्हें कठिन हालातों में स्थिर जीना सिखाया. जावेद साहब को जानने, पढ़ने और समझने वाले बहुत ही लोग इस बात से अच्छी तरह वाकिफ़ होंगे कि उनके पिता जां निसार अख़्तर थे, जो ख़ुद भी एक प्रगतिशील और इंक़लाबी शायर थे. जावेद का नाम भी उनके पिता ने अपनी एक कविता ‘लम्हा लम्हा किसी जादू का फ़साना होगा’ से लिया था, जो आगे चलकर जादू से जावेद हो गया.

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जावेद अख़्तर ने अपने फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत सलीम खान के साथ की थी, जिनके साथ मिलकर उन्होंने करीब 24 फ़िल्में लिखी. इन 24 फ़िल्मों में से 21 फ़िल्में सुपरहिट रही थीं. हर जोड़ी की तरह ये जोड़ी भी 1987 में आ कर टूट गई, जिसके बाद दोनों की राहें अलग हो गईं. सलीम खान से अलग होने के बाद जावेद अख़्तर ने संवाद छोड़ कर सिर्फ़ गाने लिखने शुरू कर दिया. आप ये कह सकते हैं कि यहां से जावेद युग की शुरुआत हुई, जिसने नई पीढ़ी को फिर से शायरी से मोहब्बत करना सिखाया.

जावेद अख़्तर ने अपनी शेर-ओ-शायरी को बस कोरे कागज़ तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि उनकी निजी ज़िंदगी में भी इसका असर साफ़ देखा जा सकता है. अपने समय में जावेद अख़्तर ने शायरी की पाकीज़गी को समझने के लिए कैफ़ी आज़मी का साथ पकड़ा, जिनके साथ रहते हुए वो शबाना आज़मी के प्यार में गिरफ़्तार हो गए. ये प्यार ऐसा परवान चढ़ा कि दोनों शादी के बंधन में बंध गए. हालांकि शबाना से शादी करने से पहले ही जावेद दो बच्चों के पिता थे, पर कहते हैं न, ‘वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ, जिसमें ना दूर तहलका हो.’

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ख़ैर अपने दोनों बच्चों फ़रहान और ज़ोया को जावेद साहब ने उसी तरह की परवरिश दी, जिसकी कल्पना ख़ुद जावेद साहब किया करते थे. आज उनके दोनों बच्चे बॉलीवुड इंडस्ट्री में अपने काम के लिए अलग ही पहचाने जाते हैं.

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जावेद साहब अपने आप में चलती फिरती वो किताब हैं, जिन्हें चंद पन्नों में समेटना मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन है. अगर आप भी जावेद साहब से जुड़े कुछ ऐसे किस्से जानते हों, तो बताना नहीं भूलें, क्योंकि किस्से सुनाने से ही किस्से बने रहते हैं.

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