टेक्नोलॉजी के साथ मुट्ठी भर फ़ायदे आते हैं, तो कई नुकसान भी हैं. जैसे टेक्नोलॉजी की वजह से आजकल सारे सिंगर अच्छे तो सुनाई देते हैं, लेकिन उसी का एक नुकसान ये भी है कि वो सब एक जैसे सुनाई देते है. मुझे हनी सिंह/ बादशाह/ रफ़्तार से कोई निजी दुश्मनी नहीं है, बस उनके Auto Tune किये हुए गानों से है.
चलिए कुछ टाइम के लिए 60-70 के ख़ूबसूरत दौर में चलते हैं. जहां म्यूज़िक के साथ एक्सपेरिमेंट हुआ करते थे, जहां अव्वल दर्जे के गायकों, गीतकारों, कंपोज़र्स की भरमार थी, जहां ऐसे फैंस थे, जो अच्छे गाने सुनने के लिए हमेशा तैयार रहते थे. उस दौर का एक नग़मा था मोहम्मद रफ़ी.
सारी उम्र दिल में एक हंसी याद रही, सदियां बीत गयीं, पर वो बात याद रही.
न जाने क्या बात थी उनमें और हम में, सारी महफ़िल भूल गए, पर वो आवाज़ याद रही.
रफ़ी साहब के लिए मन्ना डे कहते थे कि वो और किशोर दा बॉलीवुड में दूसरे नंबर के लिए हमेशा लड़ते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि नंबर एक तो रफ़ी ही है और रहेगा. उस दौर से लेकर अगर अभी किसी एक सिंगर की गायकी और हाई पिच पर गाने को अभी तक कॉपी किया जाता है, वो मोहम्मद रफ़ी है.
एक बार सोनू निगम को किसी मंच पर कहते हुए सुना था कि बॉलीवुड में जिस सिंगर को सबसे ख़तरनाक पिच और बेस पर गाने गवाए गए हैं, वो मोहम्मद रफ़ी थे और उन्होंने निभाये भी. उनसे ऐसे-ऐसे गाने गवाए गए हैं, जो आज शायद कोई नहीं गा सकता.
उनके गाये हुए गाने, चाहे वो उदासी के गाने हों, या मदमस्त करने वाले गाने (आज की भाषा में पार्टी सॉग्स), आज भी लोगों के दिलों में बसे हैं. लेकिन ये कम ही लोग जानते हैं, कि रफ़ी साहब को किस चीज़ ने गाने के लिए इंस्पायर किया.
बात तब की है, जब रफ़ी साहब बहुत छोटे थे, लाहौर के पास उनके गांव में एक फ़कीर आता था. लोगों के घरों से गुज़रता वो फ़कीर कुछ सूफ़ी गाने गाता था. न वो कभी किसी से कुछ मांगता था, न ही किसी के घर के पास जाता था. फिर भी लोग उसे खाने को या पहनने को कपड़े दे दिया करते थे. उस फ़कीर के गानों का रफ़ी साहब पर ऐसा असर हुआ करता था कि वो उसके पीछे-पीछे चलने लगते और तब तक उसका पीछा करते थे, जब तक वो गांव से बाहर न चला जाता और उसकी आवाज़ रफ़ी को सुननी बंद हो जाती.
उस सूफ़ी का पीछा करने के बाद, जब रफ़ी घर पहुंचते, तो उसी अंदाज़ में वो सूफ़ी गाने गया करते। इतने छोटे बच्चे को इतने परफ़ेक्शन से गाता देख कर उनके मामा ने उनमें एक बेहतरीन गायक देख लिया था. उनके मामा ने ये बात रफ़ी साहब के बड़े भाई को बताई और बड़े भाई ने ने अपने छोटे भाई के गले में बैठी सरस्वती को पहचान लिया.
और ऐसे भारत को मिला उसका सबसे वर्सटाइल गायक.