भगवान शिव को जहां बैरागी माना जाता था, उस बैरागी को संसार से मतलब नहीं था. ‘भोलेनाथ’ संसार के संहारक कहलाये जाते हैं, लेकिन उनका दूसरा रूप भी है. उस रूप को वो अपनी प्रिय सती के सामने रखते हैं – वो रूप है प्रेम का. लेकिन प्रेम के इस रूप में भी शिव,आध्याम का सम्पूर्ण ज्ञान बांट रहे हैं.

सती-शिव के ऐसे ही संवाद है, जिसमें उन्होंने प्यार के माध्यम से संसार की शक्ति, संसार में एकरूपता की बात की है. अपनी प्रिय सती को वो मोक्ष और प्रेम, दोनों की परिभाषा समझाने कि कोशिश कर रहे हैं.

सती और शिव की प्रेम लीलाओं में बहुत कुछ छुपा हुआ था. एक दिन सती शिव से बोलीं, “कुछ अच्छा कहो”. इस पर शिव हंस दिए और कहा, “तुम बहुत अच्छी हो”. फिर सती ने उनसे कहा “कुछ अच्छा कहिए, कुछ अर्थपूर्ण”.

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शिव: जीवन का यूं तो कोई अंत नहीं होता, पर तुम्हारे प्रेम के बिना तो जीवन ही नहीं है.

सती: मतलब?

शिव: मतलब…हम अनंत हैं, पर अधूरे हैं. अगर इस अनंतता को बांटने के लिए कोई साथ न हो, तो हम अधूरे ही रहेंगे.

सती: मुझे जीवन के बारे में और बताइए.

शिव: जीवन की यात्रा में खुद को जान लेना ही सबसे बड़ा रोमांच है.

सती: क्यों?

शिव: एक दिन खुद को जानने के सफ़र में पता चलता है कि अंत और आरम्भ एक ही है.

सती: क्या आपको ये सब ध्यान करते हुए और योग करते हुए ज्ञात हुआ?

शिव: योग शरीर के लिए नहीं होता, योग आत्मा को खोजने में मदद करता है.

सती: सुन्दर!

शिव: अपने अन्दर की ज्योति को पहचान कर ही असली शान्ति पायी जा सकती है.

सती: ज्योति?

शिव: आत्मा की ज्योति. ब्रह्माण्ड को, जीवन के उद्देश्य को जानना ही अपने अन्दर की ज्योति को पहचानना है.

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सती: मुझे शिवलिंग से प्रेम था और अब उस शिवलिंग में बसे आपके रूप से प्रेम है.

शिव: तुम भानमती हो, तुम्हारा होना मुझे सम्पूर्ण करता है.

सती: मैं भानमती हूं, तो आप क्या हैं, जो सारे संसार को सम्मोहित कर रखा है?

शिव: मैं योगी हूं, तत्त्व में डूबा. प्यार के सार में डूबा योगी.

सती: तो आप खुद को ब्रह्मचारी क्यों कहते हैं?

शिव: ब्रह्मचर्य तो इश्वर में खो जाना है.

सती: पर मुझे आपके लिए अपना प्रेम अध्यात्म से बड़ा क्यों लगता है?

शिव: प्रेम का आकर्षण ऐसा ही होता है. ये संसार को काबू में कर सकता है. प्यार और अध्यात्म एक साथ चलते हैं.

सती: जब आप चुप होते हैं, तब भी ऐसा लगता है जैसे मुझसे बातें कर रहे हैं.

शिव: ये चुप्पी बहुत कम लोग ही समझ पाते हैं. शांत होना स्थिरता प्रदान करता है.

सती: कहिए कि आप मुझसे प्यार करते हैं.

शिव: हां मैं तुमसे प्यार करता हूं, पर तुम्हारा जादू कुछ ऐसा है कि मैं कह नहीं पाता. तुमसे मिलने से पहले मेरी कोई इच्छाएं नहीं थीं. तुमने इस योगी को बिगाड़ दिया है.

सती: बिगाड़ दिया है? मैं समझी कि आप योग में डूब गए हैं, मेरे लिए समय ही कहां होता है आपके पास? कभी-कभी आपको समझना नामुमकिन लगता है.

शिव: ऐसा सिर्फ़ तब होता है, जब मैं ध्यान में मग्न होता हूं. पर जब तुम्हें देखता हूं, तो लगता है कि और कुछ नहीं चाहिए.

शिव के द्वारा दिया गया ज्ञान असीम है, अनंत है. उनकी बातें गहरी और उनकी चुप्पी उससे भी गहरी थी. उनकी हंसी-ठहाके में भी ज्ञान छुपा होता था. 

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