विवधताओं के देश, हिन्दुस्तान को प्रकृति ने भी अपने सबसे ख़ूबसूरत नगीनों से सजाया है. उत्तर में ‘धरती का स्वर्ग’ कश्मीर है तो दक्षिण में ‘भगवान का देश’ केरल. एक तरफ़ बिहड़ रेगिस्तान, तो वहीं दूसरी तरफ़ हरियाली से भरे उत्तर पूर्वी राज्य.
देश की अलग-अलग जगहों का दीदार करने हर साल, लाखों देसी और विदेशी सैलानियों की भीड़ उमड़ती है.
सैलानी आते हैं, कुछ दिन ठहरते हैं और यादें लेकर लौट जाते हैं. इसके बाद उस जगह की क्या हालत होती है ये वहां के बाशिंदे अच्छे से समझते हैं. टूरिस्ट्स पैसे तो लेकर आते हैं, लेकिन बदले में ढेर सारी समस्याएं और साथ में कूड़ा मुफ़्त में देकर जाते हैं.
आज जानिये कुछ ऐसे Famous Tourist Destinations के बारे में जो अपने मशहूर होने की क़ीमत चुका रहे हैं-
1. शिमला
शिमला के बारे में तो पढ़ा ही होगा. रिविज़न हम करवा देते हैं. शिमला के कई इलाकों में लोगों के पास पीने का पानी तक नहीं है. मॉल रोड के मशहूर कैफ़े और रेस्त्रां अपने मेहमानों को वॉशरूम इस्तेमाल नहीं करने दे रहे.
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वहां वीवीआईपी इलाकों को पानी मुहैया करवाया जा रहा है और आम आदमी की समस्याएं नज़रअंदाज़ की जा रही हैं.
2. नैनीताल
नैनों में नैनीताल बाकी सब तलैया. गाना गुनगुनाते-गुनगुनाते कब ये कूड़े-कचड़े का गढ़ बन गया पता ही नहीं चला. शुक्रिया अदा करिये सैलानियों और Construction Work का.
नैनीताल में सन् 2000 से पहले सिर्फ़ 2 बार पानी का लेवल शून्य तक पहुंचा था (1923 और 1980). 2000 के बाद 15 बार यहां पानी का लेवल शून्य तक पहुंच चुका है.
3. त्रिउंड
ट्रैकिंग के लिए हर साल हज़ारों सैलानी त्रिउंड जाते हैं. लेकिन अपनी गंदगी भी वहीं छोड़ आते हैं. भागसुनाग से 9 किमी दूर एक कैंप साइट है, जहां हर साल लगभग 1 लाख सैलानी पहुंचते हैं. ये लोग वहां इतना कचड़ा फेंक जाते हैं कि खच्छरों पर लाद कर उसे हटाया जाता है.
4. दार्जलिंग
देश के सबसे प्रदूषित हिल स्टेशन्स में शुमार है दार्जलिंग. सैलानियों की संख्या बढ़ाने के लिए अधिकारियों ने मनमाना Construction Work करवाया जिससे यहां की ज़मीन की हालत और बिगड़ गई है.
एक रिसर्च के अनुसार, दार्जलिंग की हवा कोलकाता से भी दूषित है.
5. जयपुर
गुलाबी शहर, जयपुर. WHO की रिपोर्ट के मुताबिक, राजधानी जयपुर, राजस्थान का सबसे प्रदूषित शहर है. यहां सड़कों पर कूड़े के ढेर का नज़ारा बहुत आम है.
हालत इतनी ख़राब हो चुकी है कि आने वाली 15 अगस्त से यहां भी घर-घर कचड़ा इकट्ठा करने का System शुरू किया जायेगा.
6. वाराणसी
काशी जहां मरने पर डायरेक्ट स्वर्ग जाने की गैरंटी, ऐसा बोलते हैं. घाटों के शहर बनारस की कुछ चौंकाने वाली तस्वीरें कुछ साल पहले देखने को मिली थी. इन तस्वीरों में गंगा में आधी जली लाशें बहा दी गईं थी.
आज से कुछ साल पहले यहां के घाटों की सफ़ाई का ज़िम्मा स्थानीय निवासियों और NGOs ने लिया था. गंगा नदी की सफ़ाई के लिए एक अलग मंत्रालय भी बनाया गया है, हज़ारों करोड़ ख़र्च भी किये गये, लेकिन ज़मीनी सच्चाई कुछ और ही है. 2016 में Guardian में छपी रिपोर्ट के अनुसार, काशी की हवा बहुत ज़हरीली हो चुकी है.
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7. कसोल
कसोल की हवा में ही नशा सा है. यहां काफ़ी अच्छा ‘Stuff’ मिलता है. Careless सैलानी सिगरेट के टुकड़े, Plastic Wrappers फेंकते चलते हैं और इस ख़ूबसूरत जगह को गंदा कर रहे हैं. सैलानी पार्टी करते हैं, तेज़ म्यूज़िक बजाते हैं जिससे स्थानीय लोगों और जंगली जीवों को भी परेशानी होती है.
8. गोवा
गोवा जाने के आपने कितने ही प्लैन कैंसल क्यों न किए हों, सबके प्लैन कैंसल नहीं होते. ‘Vegas of India’ सैलानियों की भीड़ की वजह से काफ़ी प्रदूषित हो गया है. हर साल दुनियाभर से लगभग 5 मिलियन सैलानी गोवा जाते हैं. National Geographic ने कुछ साल पहले गोवा के समुद्री तटों को विश्व के सबसे प्रदूषित समुद्री तटों की लिस्ट में रखा था.
गोवा के कई समुद्री तट बड़े से डस्टबिन बन कर रह गए हैं.
9. श्रीनगर
टूरिस्ट्स की महर है बंधु, श्रीनगर दुनिया का 10वां सबसे प्रदूषित शहर बन गया है. धरती का स्वर्ग सैलानियों की कृपा से नरक बनने के पथ पर अग्रसर है.
10. आगरा
आगरा यानि की ताज महल. ताज महल के पीले होने की बात हमने सालों पहले स्कूल में पढ़ी थी. ताज के आस-पास स्थित कारखानों से निकलने वाले ज़हरीले धुंए के कारण सफ़ेद संगमरमर से बना ताजमहल पीला हो रहा है, ऐसा टीचर ने बताया था.
ताज के पीलेपन की वजह सिर्फ़ कारखाने नहीं हैं. सैलानियां यानि कि गाड़ियां. 1985 में आगरा में 40 हज़ार वाहन थे, जो अब बढ़कर 10 लाख हो गए हैं. आगरा की हवा हर गुज़रते साल के साथ बद से बद्तर हो रही है.
11. मैकलॉडगंज
बीते कुछ सालों में इस हिल स्टेशन पर सैलानियों की आवा-जाही बढ़ी है. यहां की ख़ूबसूरती भी प्रदूषण की भेंट चढ़ रही है. ट्रेकिंग के रास्ते में टूरिस्ट्स Plastic Wrappers फेंकते चलते हैं. इस वजह से अब यहां कूड़े के ढेर का नज़ारा काफ़ी आम हो गया है.
12. मसूरी
‘पहाड़ों की रानी’ लेकिन रानियों से ठाट नहीं रही इस हिल स्टेशन की. रोज़ाना यहां 25-30 Metric Tonne कचड़ा बनता है, जो ढंग से Dispose नहीं किया जाता. हर तरफ़ Plastic Wrappers नज़र आते हैं.
मसूरी में भी पानी की कमी होने लगी है. शिमला जैसी हालत कहीं यहां भी न हो जाये, मसूरी घूमने जाने वालों की महरबानी.
टूरिस्ट स्पॉट होने की बहुत बड़ी क़ीमत चुका रहे हैं ये शहर. घूमने जाना, Selfie लेना, मज़े करना तो याद रहता है, लेकिन उस जगह को ‘साफ़ रखना’ क्यों भूल जाते हो?