भले ही महिलांए आसमान छू रहीं हैं, लेकिन हमारे समाज में लड़कियों को लोग अपनी-अपनी राय के हिसाब से चरित्र प्रमाणपत्र देते हैं. जैसे अगर लड़की के दोस्त लड़के हैं तो उसका कोई चरित्र नहीं है, अगर लड़की ऑफ़िस से लेट आती है या नाईट शिफ्ट करती है तो वो अच्छे घर की लड़की नहीं है. और वहीं अगर लड़के रात भर भी घर से बिना बताये बाहर रहते हैं तो कोई उनसे नहीं पूछता कि थे कहां या कोई यह नहीं बोलता कि ये लड़का सही नहीं है. लोगों की मानसिकता तो देखिये अगर लड़की रात में सड़क किनारे ऑटो, बस या कैब का वेट कर रही है तो उधर से गुजरने वाली हर गाड़ी का शीशा खु-द-ब खुद नीचे हो जाता है और उसमें बैठे लोग रेट का अंदाज़ा लगा कर लिफ़्ट ऑफ़र करने लगते हैं. लेकिन वहीं अगर कोई लड़की मेट्रो में खड़ी होती है उनके सामने तो आंख बंद करके बैठ जाते हैं ताकि उठना न पड़े. तब ये आइडिया क्यों नहीं आता है कि लड़की को सीट ऑफ़र करनी चाहिए.
दोस्तों पिछले साल रिलीज़ हुई फ़िल्म PINK तो शायद आपको याद होगी. इस फिल्म की खासियत यह है कि फिल्म मॉडर्न समाज में रहने वाली लड़कियों और उनकी अस्मिता पर कई सवाल खड़े करती है. आज की महिलाओं और सेल्फ डिपेंडेंट लड़कियों के प्रति समाज का क्या रवैया है, लोग उनके लिए क्या राय रखते हैं, इस तरह के कई मुद्दों और सवालों को फिल्म में बखूबी पेश किया गया है. इस फिल्म के डायलॉग्ज़ समाज के So-Called कर्ता-धर्ताओं पर सीधा निशाना साधते हैं, जिनको आज हम आपके सामने पेश करने जा रहे हैं.
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किसी महिला के साथ अगर बलात्कार होता है या कोई उसके साथ छेड़छाड़ करता है, तो ये समाज सबसे पहले उस महिला को ही दोष देने लगता है. सबसे पहले लोग बलात्कार की शिकार उस महिला के चरित्र पर सवाल उठाने लगते हैं और वहीं दूसरी तरफ वो व्यक्ति आराम से घूम रहा होता है, जिसने उसकी अंतरात्मा तक को घायल कर दिया है.
अगर लड़की घर से दूर दूसरे शहर में रहकर जॉब करती है, तो उसका चरित्र खराब होता है, ऐसा माना जाता है. उसके आस-पड़ोस में रहने वाले लोग, समाज आदि सब उसके बारे में अपनी एक राय बना लेते है. लेकिन यही समाज के ठेकेदार मौका मिलने पर उसको ताड़ने, छूने या उसके साथ हंस कर बातें करने से नहीं चूकते. इतना ही नहीं, अगर उनको मौका मिले तो वो उसका फायदा भी उठाने से भी कतराएंगे नहीं. अगर आप इस बात से इत्तेफ़ाक रखते हैं तो अपनी राय कमेन्ट करके ज़रूर बताएं.
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