दुर्गा के नौ रूपों में नौ शक्तियां निहीत हैं. ये वो शक्तियां हैं, जो मां दुर्गा के साथ-साथ हर लड़की के अंदर होती हैं, बस उसे पहचानने की देर होती है. अकसर हम लड़कियों को सुनने को मिलता है कि लड़कियां सिर्फ़ घर की चार-दीवारी में रह सकती हैं, वो क्या ज़माने का सामना कर पाएंगी? इन्हें तो बस खाना बनाना और घर के कुछ काम सिखा दो यही बहुत है. क्योंकि जाना तो ससुराल ही है और वहां पर कौन इनसे नौकरी कराएगा? अपने आपको तीस मार ख़ां समझती हैं, ज़रा सी आवाज़ हुई नहीं कि डर जाती हैं, तो इतनी दूर जाकर अकेले कैसे रहेंगी? अपना सारा काम कैसे करेंगी? 

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ये बातें हर दिन सुनने को मिलती हैं. इनके हिसाब से तो हम लड़कियों ने कभी कुछ किया ही नहीं. बस ऐसे ही देवी के नौ रूपों में जो शक्ति है उसे लड़कियों से जोड़ते हैं. इस पर मेरी दोस्त ने मुझसे एक सवाल पूछा कि तूने वाकई कभी कोई ऐसी शक्ति या ऐसा पल महसूस किया है जब उस पल में तूने वो किया हो जो तूने सोचा भी न हो. 

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मैंने तो सोच लिया और उसके सवाल को आगे बढ़ाते हुए और लड़कियों से भी पूछा कि क्या उन्होंने कभी ऐसी शक्ति अपने अंदर महसूस की है, उन सभी के जवाब आपके सामने हैं. 

1. मेरी दोस्त जो मेरी रुममेट थी जब उसकी शादी हुई, तो मुझे लगा अब मैं मार्केट, ऑफ़िस और घर तीनों काम अकेले कैसे करुंगी? पर वो बोलती थी कि तू डर मत मुझे पता है तू सब कर लेगी. उसे मुझ पर इतना विश्वास क्यों था उस वक़्त नहीं पता था. उसके जाने के बाद मुझे दिक्कत हुई, लेकिन मैंने सब मैनेज किया और जिस बात से मैं डरती थी उस दिन पता चला कि मुझमें भी थी वो ताक़त, पर मुझे किसी के सहारे की आदत हो गई थी.

(आकांक्षा तिवारी)

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2. जब मैं 12th के बाद दिल्ली आई थी तो मुझे कुछ भी नहीं आता था. बेडशीट कैसे बिछाते हैं से लेकर अपने बाल सही से सेट करने तक और आज 5 साल के बाद मुझे कपड़े लेने और धोने से लेकर खाना बनाना तक भी आ गया है. आज की डेट में मुझे पूरा घर संभालना आता है जिसकी मुझे उम्मीद नहीं थी कि मैं ऐसी भी हो सकती हूं. 

(किरण प्रीत कौर)

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3. मेरे पापा की तबियत ख़राब हुई तो उन्हें दिल्ली लेकर आई. डॉक्टर ने उन्हें कुछ दिन के लिए यहीं रहने को कहा, लेकिन पापा यहां नहीं रहना चाहते थे. क्योंकि मैं रूम लेकर रहती हूं और उन्हें लगता था कि मैं लड़की हूं, तो कैसे सब मैनेज करूंगी? उनकी वजह कुछ और होती तो मैं जाने दे देती, लेकिन सिर्फ़ लड़की होने की वजह से उन्होंने ऐसा कहा. इसलिए मैंने उन्हें नहीं जाने दिया. उनको अपने पास रखा सब देखभाल की और ऑफ़िस को भी संभाला जब वो यहां से गए तो उनकी वो ग़लतफ़हमी दूर हो चुकी थी, कि मैं लड़की हूं तो कैसे करूंगी?

(नुपुर अग्रवाल)

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4. शायद 6ठी या 7वीं में थी. साइकिल से कहीं जा रही थी. रास्ते में एक आदमी आया और साथ-साथ साइकिल चलाने लगा. मैंने साइकिल तेज़ कर दी वो भी तेज़ करके पास आ गया. वो नाम-वाम पूछ रहा था, स्कूल पूछ रहा था. मैंने इग्नोर कर दिया. कुछ देर बाद वो एक गंदा भोजपुरी गाना गाने लगा, तब मेरा पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया. मैंने हिम्मत करके बांया पैर उठाया और उसे एक लात मारी, वो लड़खड़ाकर गिर गया. फिर मैंने साइकिल भगाई और जैसे-तैसे घर पहुंची. घर पहुंचकर मुझे लगा कि मैं सचमुच बहुत कुछ कर सकती हूं. 

(संचिता पाठक)

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5. मेरी ज़िंदगी में जिस बात पर मुझे गर्व है वो ये है कि मैं अपने भाई को एक्सीडेंट स्पॉट से बिना रोए लेकर आई थी. बिना रोए इसलिए बोला कि मैं ज़रा सी बात पर रो देती थी मगर उस दिन एक भी आंसू नहीं गिरा और उसे ले आई. हॉस्पिटल में एडिमट कराया. रोई तब जब अपनी मम्मी को देखा था. उस दिन लगा था भले ही छोटी हूं, लेकिन मुसीबत पड़ने पर अपने घर के काम आ सकती हूं. 

(कृतिका निगम)

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6. मैं जब कानपुर में थी, तो सिर्फ़ स्कूल, कॉलेज और घर के अलावा मुझे कुछ नहीं पता था. जब मैंने घर पर दिल्ली आने की बात कही तो मेरे पैरेंट्स ने इज़ाज़त दी, लेकिन रिश्तेदारों ने उन्हें ख़ूब भड़काया. मत भेजो, दिल्ली है बड़ा शहर है पता नहीं क्या हो वहां? उनकी बातों से मैं भी थोड़ा डर गई, लेकिन मन बना लिया था तो पीछे नहीं हटी और आ गई. शुरूआत में थोड़ी मुश्किलें हुईं उसके बाद धीरे-धीरे सब ठीक हो गया और मेरी क़ामयाबी ने सबका मुंह भी बंद कर दिया और मुझमें एक आत्मविश्वास जगा दिया. 

(स्वपनिल)

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7. मैं अपने घर की पहली लड़की थी, जो पढ़ाई करके जॉब करने एक छोटे शहर से दिल्ली आयी थी. जब मेरी जॉब लगी और मेरे पापा ने मुझे भेजने के लिए बोला, तो सबने बोला क्या ज़रूरत है बाहर भेजने की? जॉब क्यों करनी है? इस तरह की कई बातें हुईं, पर सबसे लड़-झगड़ कर मैं आ गई दिल्ली. पर शुरुआत में ही एक दिन एक वाक़या हुआ जिसने मुझे हिला दिया, पर मेरे डर को भी दूर कर दिया. हुआ यूं कि एक रात जब मैं ऑफ़िस से घर लौट रही थी तो ऑटो में एक आदमी ने बदतमीज़ी करनी चाही. पहले तो मैं डर गई पर पता नही फिर कहां से मुझमें हिम्मत आई और मैं तेज़ से चिल्लाई और खींच के उसको थप्पड़ मारा. ये देखकर ऑटो वाले ने उस आदमी को ऑटो से उतार दिया और पुलिस के हवाले कर दिया. उस दिन मुझे एहसास हुआ कि मुझमें भी शक्ति है. सिर्फ़ पढ़ाई करना और दूसरे शहर में जॉब करना ही नारीशक्ति नहीं है, बल्कि ग़लत पर आवाज़ उठाना भी नारीशक्ति है. 

(राशि)

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