पौराणिक प्रेम कहानियां भले ही आज के ज़माने में हमें अच्छी नहीं लगती हों लेकिन इन प्रेम कहानियों की आज भी मिसाल दी जाती हैं. चाहे वो भगवान कृष्ण और राधा की प्रेम कहानी हो या फिर मेनका और विश्वामित्र की. इन प्रेम कहानियों से 21 वीं सदी में न जाने कितनी प्रेम कहानियां बन चुकी हैं. इन पौराणिक प्रेम कहानियों का वर्णन हमें पुराणों में भी देखने को मिलता है. कृष्ण और राधा की प्रेम कहानी की तो न जाने हम कितने वर्षों से पूजा कर रहे हैं. आज के दौर में भी उन अमर प्रेम कहानियों की ही मिसालें दी जाती हैं.

आज हम आपके लिए पौराणिक काल की ऐसी ही कुछ पीएम कहानियां लेकर आये हैं-

1- नल और दमयंती

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विदर्भ देश के राजा भीम की पुत्री दमयंती और निषध के राजा वीरसेन का पुत्र नल दोनों ही अति सुंदर थे. दोनों ही एक-दूसरे की प्रशंसा सुनकर बिना देखे ही एक-दूसरे से प्रेम करने लगे थे. दमयंती के स्वयंवर का आयोजन हुआ तो इन्द्र, वरुण, अग्नि तथा यम भी उसे प्राप्त करने के इच्छुक हो गए. नल की ख़ूबसूरती से प्रभावित होकर वे चारों भी स्वयंवर में नल का ही रूप धारण कर आए. नल के समान रूप वाले 5 पुरुषों को देख दमयंती घबरा गई लेकिन उसके प्रेम में इतनी आस्था थी कि उसने देवाताओं से शक्ति मांगकर राजा नल को पहचान लिया और दोनों का विवाह हो गया. नल-दमयंती का मिलन तो होता है, पर कुछ समय बाद वियोग भी हो जाता है. नल अपने भाई पुष्कर से जुए में अपना सब कुछ हार जाता है और दोनों बिछुड़ जाते हैं. दमयंती किसी राजघराने में शरण लेने के बाद अपने परिवार में पहुंच जाती है. दमयंती से बिछुड़ने के बाद नल को कर्कोटक नामक सांप डस लेता है जिस कारण उसका रंग काला पड़ जाता है और उसे कोई पहचान नहीं पाता. इस हालत में नल सारथी बनकर विदर्भ पहुंचता और दमयंती अपने सच्चे प्रेम नल को पहचान लेती है. नल एक बार फिर पुष्कर से जुआ खेलकर अपनी हारी हुई बाजी जीत लेता है. दमयंती न केवल ख़ूबसूरत थी बल्कि जिससे प्रेम किया उसे ही अपना सबकुछ माना. दमयंती को देवताओं का रूप-वैभव भी विचलित न कर सका, न ही पति का विरूप हुआ चेहरा उसके प्यार को कम कर पाया.

2- सत्यवती और पराशर ऋषि

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पराशर ऋषि बहुत ही विद्वान और योग सिद्धि प्राप्त ऋषि थे. एक दिन वो यमुना पार करने के लिए नाव पर सवार हुए, नाव पर उन्हें एक मछुआरे की पुत्री सत्यवती दिखी जो नाव चला रही थी. ऋषि पराशर उसके रूप और यौवन को देखकर विचलित और व्याकुल हो उठे, उन्होंने सत्यवती से प्यार करने व संतान प्राप्ति की इच्छा जाहिर की. इस पर सत्यवती ने कहा कि वो इस प्रकार के अनैतिक संबंध से संतान पैदा करने के लिए तैयार नहीं हैं, लेकिन ऋषि पराशर नहीं माने और उससे प्रणय निवेदन करने लगे. इसके बाद सत्यवती ने ऋषि के सामने 3 शर्तें रख दीं, पराशर ऋषि जिनको आसानी से पूरा करने के बाद सत्यवती के साथ नाव पर ही अपनी इच्छा पूरी की. इसके परिणामस्वरूप उनको एक पुत्र हुआ जिसका नाम कृष्णद्वैपायन रखा. यही पुत्र आगे चलकर महर्षि वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुआ. धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर महर्षि वेद व्यास के पुत्र माने जाते हैं. इन 3 पुत्रों में से एक धृतराष्ट्र के यहां जब कोई पुत्र नहीं हुआ तो वेदव्यास की कृपा से 99 पुत्र और 1 पुत्री का जन्म हुआ.

3- अर्जुन और च‌ित्रांगदा

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वनवास के दौरान अर्जुन भटकते-भटकते मण‌िपुर जा पहुंचे जहां उनकी भेंट मण‌िपुर की राजकुमारी च‌ित्रांगदा से हुई. अर्जुन ने च‌‌ित्रांगदा की ख़ूबसूरती और वीरता से प्रभाव‌ित होकर व‌िवाह की इच्छा प्रकट की. च‌ित्रांगदा भी अर्जुन से प्रभाव‌ित थी इसल‌िए उन्होंने व‌िवाह का प्रस्ताव स्वीकार कर ल‌िया. लेक‌िन च‌ित्रांगदा के प‌िता ने एक शर्त रखी क‌ि च‌ित्रांगदा और अर्जुन का पुत्र उनके पास ही रहेगा और मण‌िपुर का उत्तराध‌िकारी बनेगा. अर्जुन ने इस शर्त को स्वीकार कर ल‌‌िया, इस तरह अर्जुन और च‌ित्रांगदा का व‌िवाह हो गया. व‌िवाह के कुछ समय बाद अर्जुन को एक पुत्र की प्राप्ति हुयी जिसका नाम ‘बब्रुवाहन’ था. महाभारत युद्ध के बाद जब पांडवों ने अश्वमेध यज्ञ क‌िया, तब अर्जुन और बब्रुवाहन के बीच युद्ध हुआ ज‌िसमें बब्रुवाहन ने अर्जुन को परास्त कर द‌िया. अर्जुन मृत्यु को प्राप्त होने ही वाले थे कि ‘उलूपी’ जो की अर्जुन की प्रेमिका थी, ने नागमण‌ि की सहायता से अर्जुन के प्राण बचा लिए.

4- मेनका और विश्वामित्र

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कहा जाता है कि जब ऋषि विश्वामित्र अपने कठोर तप से एक नए संसार के निर्माण के लिए वन में कठोर तपस्या में लीन थे, उस वक़्त इंद्र देव को ये चिंता सताने लगी कि यदि विश्वामित्र अपने इस उद्देश्य में सफ़ल हो गए, तो वो समस्त सृष्टि के देवता बन जाएंगे और उनका अस्तित्व ख़तम हो जायेगा. इसके बाद इंद्रदेव ने एक योजना के तहत विश्वामित्र की तपस्या को भंग करने के लिए स्वर्ग की सबसे सुंदर अप्सरा मेनका को पृथ्वी लोक पर जाकर अपने सौंदर्य से विश्वामित्र की तपस्या को भंग करने का आदेश दिया. मेनका के प्रतिदिन के प्रयास के बाद एक दिन विश्वामित्र सृष्टि को बदलने के अपने दृढ़ निश्चय को भूलकर तपस्या से उठ खड़े हुए और मेनका के प्यार में मगन हो गए. विश्वामित्र मेनका में अपनी अर्धांगिनी देखने लगे. तपस्या टूटने के बाद भी मेनका कई सालों तक विश्वामित्र के साथ ही रही. इस दौरान मेनका ने एक पुत्री को जन्म भी दिया, लेकिन जन्म देने के कुछ समय बाद ही एक रात मेनका विश्वामित्र और अपनी पुत्री को छोड़कर वापस इंद्रलोक चली गई.

5- कृष्ण और राधा

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श्री कृष्ण-राधा की रासलीलाओं से तो हम सभी अच्छी तरह वाकिफ़ हैं, लेकिन भगवान कृष्ण-राधा के संबंधों को लेकर अभी भी भ्रम की स्थिति बरकरार है. यहां प्रश्न उठता है कि यदि राधा श्री कृष्ण की प्रेमिका थीं, तो फिर कृष्ण ने उनसे विवाह क्यों नहीं किया? कृष्ण की आठ पत्नियां थीं रुक्मणि, जांबवंती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रबिंदा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा. कहते हैं कि राधा की कृष्ण से पहली मुलाकात नंदगांव और बरसाने के बीच हुई थी क्योंकि कृष्ण नंदगांव में रहते थे और राधा बरसाने में. पहली नज़र के बाद ही राधा और कृष्ण एक-दूसरे से प्रेम करने लगे और यहीं से राधा-कृष्ण के प्रेम की शुरुआत हुई.

6- शिव और पार्वती 

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कहा जाता है कि पार्वती पिछले जन्म में भी शिव की पत्नी थी, तब उनका नाम सती था और वो प्रजापति दक्ष की बेटी थी. राजा दक्ष ने जानबूझकर अपने दामाद शिव को अपमानित किया, जिससे आहत को होकर सती हवनकुंड में कूद गईं. सती के वियोग में शिव तपस्या में लीन हो गए. शिव को फिर से हासिल करने के लिए सती ने पार्वती बनकर हिमालय के घर जन्म लिया. देवताओं ने शिव का ध्यान भंग करने के लिए जब कामदेव को भेजा तो शिव जी ने उसे भस्म कर दिया. लेकिन पार्वती ने शिव को प्राप्त करने के लिए तप जारी रखा. आख़िरकार बाबा भोलेनाथ को पिघलना पड़ा और वो नंदी पर सवार होकर नंगे बदन भभूत मले बड़े ठाठ से बारात लेकर आए. शिवजी से विवाह करके पार्वती उनके साथ कैलाश पर चली गई और इस तरह दो जन्मों से चल रही एक प्रेम कहानी का अंत हुआ.

7- अहिल्या और गौतम ऋषि

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हिन्दू मिथकों के मुताबिक़ अहिल्या गौतम ऋषि की पत्नी थीं. गौतम ऋषि अपने से उम्र में कहीं छोटी अहिल्या से बेहद प्रेम करते थे. अहिल्या इतनी ख़ूबसूरत थीं कि स्वर्गलोक में भी उनके चर्चे थे. एक दिन जब गौतम ऋषि आश्रम के बाहर गये हुये थे तो उनकी अनुपस्थिति में इन्द्र ने गौतम ऋषि के वेश में आकर अहिल्या से प्रणय याचना की. अहिल्या ने इन्द्र को नहीं पहचाना और ऋषि गौतम को जानकर इस प्रस्ताव को अपनी स्वीकृति दे दी. जब इन्द्र स्वर्गलोक लौट रहे थे तभी आश्रम को लौट रहे गौतम ऋषि ने इन्द्र को देख लिया जो उन्हीं का वेश धारण किये हुये था. गौतम ऋषि ने इन्द्र के इस कृत्य के लिए उन्हें श्राप दिया. इसके बाद उन्होंने अहिल्या को भी श्राप दिया कि तू हजारों वर्षों तक केवल हवा पीकर कष्ट उठाती हुई यहां राख में पड़ी रहे, जब भगवान राम इस वन में प्रवेश करेंगे तभी उनकी कृपा से तेरा उद्धार होगा और तू अपने पूर्व शरीर धारण करके मेरे पास आ सकेगी. ये कहकर गौतम ऋषि आश्रम को छोड़कर हिमालय जाकर तपस्या करने लगे.

पौराणिक काल की ये अनोखी प्रेम कहानियां, आज के दौर में भी हमें सच्चे प्यार का एहसास कराती हैं.