काश एक बार लौट पाते बचपन की उन हसीं वादियों में जहां न तो कोई ज़रूरत थी और न ही कोई ज़रूरी था!

बचपन कितना प्यारा होता है इसका एहसास या तो तब होता है, जब हम किसी बच्चे को बेफिक्री से खेलते-कूदते देखते हैं, या फिर तब होता है जब ज़िम्मेदारियों को पूरा करते -करते कभी कभी शैतानी करने का मन करता है. आज भी कुछ ऐसा ही हुआ है, बैठे-बैठे जब मैं कुछ बच्चों को खेलते हुए देख रही थी, तब अचानक ही मुझे अपना बचपन याद आ गया. क्या बेफिक्री थी तब, दिन भर खेलो-कूदो, पढ़ाई करो, खाओ पियो और मौज करो…!

आज हम 90 के दशक के बचपन के बारे में बात करने जा रहे हैं. अगर मैं ये कहूं कि 90’s का बचपन बेस्ट था, तो ग़लत नहीं होगा. अब आप कहेंगे कि ऐसा क्यों? आपके इस सवाल का जवाब आपको नीचे दी गई कुछ बातों से मिल जाएगा और मेरी इन बातों से 90’s का हर बच्चा इत्तेफ़ाक़ रखेगा.

1.हमारा बजाज स्कूटर

90 के दशक में पापा के साथ सुबह-सुबह स्कूटर पर आगे खड़े होकर या पीछे बैठ कर जाना और टशन मारते हुए स्कूल के गेट पर उतरना अलग ही भौकाल बनाता था. स्कूल के अलावा कहीं घूमने जाना वो भी स्कूटर पर मज़े ही आ जाते थे.

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2. छुट्टियों का पक्का साथी 

वो एक ऐसा दौर था, जब कॉमिक्स का ट्रेंड था और बचपन में इतनी पॉकेटमनी तो मिलती नहीं थी, जो हर कॉमिक्स को खरीद लेते। पर इसकी भी कोई टेंशन नहीं थी, क्योंकि तब तो 1 रुपये में एक दिन के लिए मनचाही कॉमिक्स किराए पर मिल जाती थी. सच अब याद आता है कि कैसे 1 रुपये में आस पड़ोस के अदला-बदली करके नई-नई कॉमिक्स पढ़ लेते थे.

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3. टीवी देखने पर वो मम्मी की डांट

टीवी देखने पर वो माननी की डांट ‘पढ़ाई मत कर लेना टीवी देखती रहो, कल पेपर में खाली छोड़ कर आना कॉपी फिर…’, याद आया कुछ. जब भी एग्जाम टाइम पर टीवी के आगे अगर ग़लती से खड़े हो गए तो मम्मी का यही डायलॉग सुनने को मिलता था. लेकिन हम भी कहां मानने वाले थे मम्मी के मना करने पर छुप-छुप कर रात में आवाज़ धीमी करके टीवी देखे बिना नींद जो नहीं आती थी. सच उस टाइम टीवी देखने का मन भी करता था.

4. कुल्फ़ी वाले की वो टन-टन 

90 के दशक का शायद ही कोई बच्चा होगा जो गर्मी की भरी दोपहरी में कुल्फ़ी वाली की घंटी की आवाज़ से घर के बाहर न आया हो. 5 रुपये की वो कुल्फ़ी मानों गर्मी में सर्दी का एहसास देती थी.

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5. पल में दोस्ती-पल में दुश्मनी 

ज़रा सी बात हुई नहीं कि सबसे अच्छे दोस्त से कट्टी-अब्बा हो जाती थी और इतना ही नहीं एक-दूसरे को दिया सामान भी वापस ले लेते थे. वहीँ अगर किसी ने उसी दोस्त को कुछ बोल दिया तो लड़-मरने को तैयार हो जाते थे. 

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6. लेटर लिखना 

आजकल व्हाट्सप्प और अलग-अलग तरह के मैसेंजर्स के ज़माने में वो बात कहां जो उस दौर में लेटर लिखने में होती थी. दोस्त को लेटर लिखने का अलग ही मज़ा था. सच एक अलग सी ख़ुशी मिलती थी.

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7. फ़्लेम्स गेम

उस दौर में फ़्लेम्स गेम चलन में था, नाम और नंबर्स को कैलकुलेट करके ये पता लगाना की फ़्यूचर में उस लड़की या लड़के से कैसी दोस्ती होगी, यानि पक्की वाली या पक्की से भी ज़्यादा। क्यों आपने भी किया होगा ऐसा न?