कुछ दिनों पहले एक ख़बर आई थी कि Culture Machine ने अपने ऑफ़िस में काम करने वाली महिलाओं को महीने में एक दिन Paid Period Leave देने का निर्णय लिया है. इस कंपनी की तर्ज पर ही कुछ अन्य कंपनियों, Goozoop ने भी ये पॉलिसी लागू करने का निर्णय लिया.
हम, आप या कोई और लड़की या महिला भी जब Sanitary Napkin ख़रीदने जाती है, तो एक चीज़ हमेशा कॉमन होती है, वो है वो काले रंग का पॉलिथिन. Pads के ब्रैंड भले अलग-अलग हो, पर अगर कुछ नहीं बदलता है, तो वो है वो काले रंग का पॉलिथिन जो हर उस दुकान पर उपलब्ध होता है जहां Pad मिलता है. अगर पॉलिथिन ख़त्म हो जाए तो हर शॉपकिपर के चेहरे पर शिक़न साफ़ नज़र आती है. ऐसे हालात में वो पेपर में बांधकर बेमन से ही Pad देते हैं.
हमारे समाज में Periods से जुड़े कई मिथक हैं. एक बार जब हमने काली पॉलिथिन लेने से इंकार किया था, तो दुकानदार ने ज़रा कड़ी आवाज़ में पर मुस्कुराते हुए कहा था कि जैसा चलते आ रहा है वैसा ही चलते रहे तो बेहतर है और मना करने के बाद भी उसने पॉलिथिन में ही Pad दिया था.
Periods के दौरान हर महिला को शारीरिक और Hormonal बदलावों से गुज़रना पड़ता है. इस दौरान होने वाले दर्द के बारे बात ही ना की जाए तो बेहतर है. कुछ महिलाओं में ये दर्द हद से ज़्यादा होता है. Period Cramps हमारे खान-पान और लाइफ़स्टाइल पर भी निर्भर करते हैं.
गांव और पिछड़े इलाकों की महिलाओं को Periods के दौरान अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है. वे अपनी साफ़-सफ़ाई का ध्यान भी नहीं रख पाती और ना ही उन्हें आराम मिलता है. पर ये एक अलग समस्या है. मशहूर पत्रकार बरखा दत्त ने, Washington Post के लिए एक लेख लिखा और उस लेख में Period Leave को एक बेसिर-पैर का निर्णय बता दिया.
I’m a Feminist. Giving Women A Day Off For Their Period is a Stupid Idea, नाम से इस लेख में दत्त ने लेख में लिखा कि Menstruation का बहाना बनाकर देश में औरतों को मंदिरों में जाने से लेकर नमाज़ अदा करने तक की मनाहि है. वो हर संभव कोशिश की जाती है ताकि हमें इस पूरे प्राकृतिक Process और यहां तक की ख़ुद से भी घिन आए, कहीं-कहीं तो औरतों को रसोई में भी जाने की इजाज़त नहीं.
दत्त ने आगे लिखा है कि उन्हें Period Leave से सख़्त ऐतराज़ है और ये औरतों को कमज़ोर दिखाने की एक और कोशिश है. बरखा जी ने बड़े जतन से ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं की समस्या को Period Leave से जोड़ दिया. पर वे भूल गईं कि ये दोनों बातें बिल्कुल विपरीत हैं. Period और Sanitary Napkin को लेकर जितनी भ्रान्तियां ग्रामीण क्षेत्रों में हैं उतनी ही Urban क्षेत्रों में भी हैं.
MNC में काम करने वाले, पढ़े-लिखे लोग भी Period और Sanitary Napkin सुनकर असहज महसूस करते हैं. First Day of Period Leave को दत्त ने महिला सशक्तिकरण की तरह नहीं, अपितु इसके ठीक विपरीत देखा, जो कि दुखद है.
अपने लेख में दत्त ने, Periods Cramps में राहत के लिए Meftal या फिर Hot Water Bag का इस्तेमाल करने की हिदायत भी दी, पर दत्त ये भूल गईं कि
हर महिला को Period Cycle अलग होता है. किसी महिला के लिए Cramps समस्या है तो किसी के लिए Hormonal Imbalance. दवाई लेना अच्छा है, Stomach Ache बोलकर छुट्टी लेना सही है, पर अगर कोई Period Leave बोलकर छुट्टी ले तो ये ग़लत क्यों है?
दत्त को इस छोटे से कदम में एक बड़ी क्रान्ति का संकेत क्यों नहीं मिला? क्या किसी भी अच्छे कदम के ऊपर इस तरह का बयान सही है? हम दत्त के विचारों का सम्मान करते हैं, पर समर्थन नहीं.
आप ख़ुद विचार करें कि क्या सही है और क्या ग़लत?