बनारस, बस नाम ही काफ़ी है. कहते हैं जो एक बार यहां आ जाता है, यहीं का होकर रह जाता है. यहां की हवा में ही एक नशा है, एक मज़ा है.

ऐसा भी कहा जाता है कि ये दुनिया का सबसे पुराना शहर है. स्थानीय लोगों का तो ये भी मानना है कि इस शहर को स्वयं महादेव ने अपने त्रिशूल पर धारण किया है. कहानियां जो भी हों, पर यहां जाकर जो आप महसूस करेंगे, उसे शब्दों में ढालना ज़रा मुश्किल है.

इस ऐतिहासिक शहर में एक नया इतिहास फिर लिखा जाएगा. तारीख नोट कर लीजिये, 2017 की दीवाली. यहां के तुलसीदास अखाड़े में टूटेगी 450 सालों से भी पुरानी रीत.

गंगा के तट पर बने तुलसीदास घाट स्थित स्वामीनाथ अखाड़े में नागपंचमी के दिन एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया था. 15 अगस्त, यानि स्वतंत्रता दिवस के दिन इस अखाड़े में लड़कियों के कुश्ती करने को मंज़ूरी दे दी गई. अब दीवाली के शुभ अवसर पर यहां लड़कियों के लिए दंगल का आयोजन भी किया जाएगा, ऐसा कई शताब्दियों में नहीं हुआ.

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लेकिन ये अधिकार लड़कियों को आसानी से नहीं मिला. 2 लड़कियों की 10 सालों की कठिन मेहनत का नतीजा है कि इस अखाड़े में अब लड़कियों का प्रवेश वर्जित नहीं है.

स्नातक की छात्राएं और पहलवान, नंदिनी सरकार और आस्था वर्मा ने कहा कि उन्हें अखाड़े में लड़कियों के प्रवेश पर निषेध हटवाने में 10 साल से भी अधिक समय लग गया. लड़कियां सारा श्रेय अपने कोच सुरेंद्र यादव और गोरखनाथ यादव को देती हैं.

नंदिनी ने कहा,

‘पहलवान ने अगर अखाड़े की मिट्टी नहीं छुई तब तक उसकी ट्रेनिंग पूरी नहीं हो सकती. हमने आख़िरकार अपना सपना पूरा कर ही लिया. हमारे कोच सर ने इस साल महंत जी से बात की और उन्हें मनाया. कोच सर ने उनसे ये कहा कि अगर बनारस से देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं, तो लड़कियां विजेता क्यों नहीं बन सकती?’
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नंदिनी ने ये भी कहा,

‘हमें ये बताया जाता है कि हनुमान जी ने आजीवन ब्रह्मचारी रहने का व्रत लिया था. ये भी कहा जाता था कि लड़कियां अपवित्र होती हैं और उनका भगवान के सामने रहना पाप है. लेकिन उन्हीं हनुमान जी ने ही हमें लड़ने की शक्ति दी.’

संकट मोचन मंदिर के महंत और IIT-BHU के प्रोफ़ेसर विश्वंभर नाथ मिश्रा ने कहा,

‘लोग ये सुनकर अचंभित हो जाते हैं कि मैं मंदिर का महंत होने के साथ ही IIT में प्रोफ़ेसर भी हूं. मुझे लगता है कि मैं दोनों तरह से ही समाज की भलाई कर सकता हूं. तो ऐसा निर्णय क्यों नहीं लिया जा सकता, जिससे लिंगभेद भी ना हो और लोगों का ऊपरवाले पर विश्वास भी बना रहे.’

नंदिनी और आस्था ने कई पहलवान प्रतियोगिताओं में उत्तर प्रदेश की ओर से भाग लिया है. ये दोनों अखाड़े में भाला और गदा चलाने का भी अभ्यास करती हैं. पिछले 10 सालों से इन्होंने यहां के पुरुष पहलवानों को देख-देख के कुश्ती के कई दांव-पेंच सीख लिए हैं.

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दोनों ही लड़कियां बेहद सामान्य परिवारों से हैं. नंदिनी के पिता अस्सी घाट पर मिठाईयां बेचते हैं, वहीं आस्था के पिता जीवित नहीं हैं. उसकी मां, मधु वर्मा केदार घाट पर फूल बेचकर उसकी कुश्ती के लिए पैसे जोड़ती हैं.

लड़कियों का कुश्ती की दुनिया में अब तक का सफ़र आसान नहीं रहा है. पैसों की कमी के कारण उन्हें प्रोटीन की कमी से भरपूर आहार नहीं मिल पाता, ट्रेनिंग में भी कई तरह की रुकावटें आती हैं. अपनी ज़रूरतों के लिए वे बिहार के कई ज़िलों में आयोजित दंगलों में हिस्सा लेती हैं.

आस्था ने बताया,

‘दूध-घी, बादाम, प्रोटीन, जीम आदि के लिए लगभग 15 हज़ार महीने का ख़र्च आता है. कभी-कभी तो पैसे इकट्ठा हो जाते हैं, कई बार नहीं भी होते हैं. जब पैसों की कमी होती है तो ट्रेन पकड़कर बिहार के दंगलों में चले जाते हैं. 1 दिन पहुंचने में लगता है, 2 दिन दंगल में और फिर वापस बनारस. लेकिन वहां भी कई लोग हाथ लगाने की कोशिश करते हैं. हम भी पटकनी देने में नहीं चुकते.’

450 साल से पुरानी रीत जब टूट सकती है, तो क्या इन प्रतिभावान लड़कियों के लिए सरकार कुछ नहीं कर सकती? सड़कें, ऊंची इमारतें तो ठीक हैं पर देश का नाम रौशन करने के लिए कई लड़कियां तत्पर होंगी और ऐसा करने की क्षमता भी होगी. हम उम्मीद करते हैं कि इन लड़कियों की प्रतिभा पर किसी की नज़र पड़ेगी.

Source- TOI