2 दिसंबर 1984, ये तारीख भारत के इतिहास की सबसे काली तारीख है. ये वही तारीख है,जब हज़ारों मासूम लोग अपनी जान गंवा बैठे थे. भोपाल गैस कांड हर किसी के ज़हन में है. पूरा देश इस त्रासदी को याद कर आज भी दुख मनाता है. कई लोगों ने इस दिन अपनों को खोया, हर कोई अपनी और अपने परिवार की जान बचाने के लिए प्रयास कर रहा था. लेकिन इन सब के बीच एक ऐसा भी शख़्स था, जिसने न खुद की सोची और न ही अपने परिवार की. उसने अपने एक फैसले से सैकड़ों की जान बचाई. बस न बचा पाया तो अपने 3 बेटे और पत्नी को.

उस शख़्स का नाम है ग़ुलाम दस्तगीर. उस वक़्त वो भोपाल स्टेशन के Deputy Station Superintendent हुआ करते थे. रात की ड्यूटी पर जब वो स्टेशन पर टहलने निकले, तो उन्हें आंखों में जलन और अपने गले में खुजली-सी महसूस हुई. उस वक़्त उनके सामने गोरखपुर-कानपुर एक्सप्रेस खड़ी थी. उस ट्रेन को चलने में करीब 20 मिनट का वक़्त बाकी था.

लेकिन उनकी जलती आंखें और गले की खुजली उन्हें किसी बड़े हादसे के लिए आगाह कर रही थी. वो भाग कर अपने सीनियर्स के पास पहुंचे और ट्रेन को वक़्त से पहले खोलने का अनुरोध किया. ऐसा करना गलत था. लेकिन कुछ भी होने पर वो सारी गलती खुद की मानने को तैयार थे, जिसे देख उनके सीनीयर्स ने ट्रेन वक़्त से पहले खोलने का आदेश दे दिया.

जैसे ही ट्रेन वहां से निकली, भोपाल के हालात बद-से-बदतर हो गए. स्टेशन पर लोगों की भीड़ आने लगी. हर कोई शहर छोड़ कर भागना चाह रहा था. लेकिन एक भी ट्रेन नहीं आने वाली थी. ग़ुलाम ड्यूटी पर ही रहे, ये जानने के बाद भी कि उनका परिवार भी गैस कांड का शिकार हो सकता है.

इतना ही नहीं, स्टेशन पर खड़े कई लोगों को उन्होंने बचाने का प्रयास किया. हालात अब काफी बिगड़ चुके थे. मदद के लिए जब वो अपने सीनीयर्स के पास पहुंचे तब तक, उनके साथ के 23 लोगों की जान जा चुकी थी.

ग़ुलाम जब तक अपने परिवार के पास पहुंचते, उनके 4 बेटों में से तीन की मौत हो चुकी थी. उनकी पत्नी भी मारी गई थीं. एक बेटा त्वचा की बीमारी से ग्रसित था और वो खुद भी त्वचा की बीमारी की चपेट में आ चुके थे. इतना ही नहीं, उनका गला भी ख़राब हो चुका था. साल 2003 में उनकी मौत हो गई. 

लेकिन सबसे दुख की बात ये थी कि आज भी रेलवे उन्हें हीरो नहीं मानता. सैकंड़ों की जान बचा लेने वाले ग़ुलाम जी को शायद कोई नहीं जानता. लेकिन वो हमारे असली हीरो थे और हमेशा रहेंगे.

Image Source: postpickle