मां बनना एक औरत के लिए ज़िन्दगी का बेहद ख़ूबसूरत पड़ाव होता है, लेकिन ये ख़ूबसूरती तभी तक अच्छी लगती है, जब तक कि उसे बच्चा जनने के लिए, ऑपरेशन थियेटर से होकर न गुज़रना पड़े.

दर्द भरी ख़ुशी

Whattoexpect

मेडिकल साइंस का मानना है कि बच्चा जनते वक़्त एक महिला को, हड्डियों के टूटने जितना दर्द होता है, लेकिन ये दर्द एक महिला अपने बच्चे को, सुरक्षित पैदा करने के लिए सहती है. उस वक़्त तो ये दर्द कुछ घंटों के लिए होता है, लेकिन जब एक महिला का डिलीवरी के वक़्त, सिज़ेरियन ऑपरेशन से पाला पड़ता है, तब ये दर्द स्थाई हो जाता है. बेशक मां बनने पर हर औरत ख़ुश होती है, लेकिन इस ख़ुशी के साथ मिला दर्द उसके साथ उम्र भर रहता है.

सिज़ेरियन या C-Section Delivery में महिला के गर्भाशय में चीरा लगाकर बच्चे को बाहर निकला जाता है, जिसके कारण भविष्य में महिला को कई शारीरिक समस्याओं से जूझना पड़ता है.

सिज़ेरियन डिलीवरी क्यों?

Mammole

सामान्यतः जब Vaginal Delivery से बच्चा जनने से, महिला या शिशु के स्वास्थ्य पर असर पड़ता हो, तब सिज़ेरियन डिलीवरी के लिए Doctor, Recommend करते हैं. बहुत Rare केस में सिज़ेरियन डिलीवरी की ज़रूरत पड़ती है, लेकिन अब अस्पतालों में नया Trend चलाया है. अब महिला या शिशु की जान बचाने के लिए नहीं, पैसा कमाने के लिए C-Section Delivery कराई जाती है. सरकारी अस्पतालों में तो नॉर्मल डिलीवरी की गुंजाइश भी होती है, लेकिन प्राइवेट अस्पतालों में इसकी सम्भावना बेहद कम होती है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट

WHO

1992-93 में विश्व स्वस्थ्य संगठन के एक सर्वे के अनुसार, तब 2.5 प्रतिशत केस ही ऐसे होते थे, जिनमें सिज़ेरियन डिलीवरी की ज़रुरत पड़ती थी. 2005-06 में ये आंकड़ा 8.5 प्रतिशत रहा और 2014-15 में ये आंकड़ा बढ़कर 15.4 प्रतिशत हो गया. ये महज आंकड़े हैं, हक़ीकत इससे कहीं ज़्यादा है.

National Family Health Survey-4 (2015-16) के अनुसार सरकारी अस्पतालों में केवल 11.9% मामले ऐसे होते हैं जिनमें C-Sections के माध्यम से डिलीवरी कराने की ज़रूरत पड़ती है, वहीं प्राइवेट अस्पतालों में 40.9% केसेज़ ऐसे होते हैं जिनमें सिज़ेरियन डिलीवरी कराई जाती है.

आंकड़ों से स्पष्ट है कि Caesarean Sections Delivery की दर सरकारी अस्पतालों की तुलना में, प्राइवेट अस्पतालों में, तीन गुणे से भी ज़्यादा है. 

ये सरकारी आंकड़े दो साल पहले के हैं. बीते दो वर्षों में इन आंकड़ों में इज़ाफ़ा भी हुआ होगा.

आंकड़े कभी Accurate नहीं होते हैं. C-Section के मामले इन आंकड़ों से कहीं अधिक होते हैं. प्राइवेट अस्पतालों में गर्भवती महिला को भर्ती कराने सीधा मतलब है, सीज़ेरियन डिलीवरी के माध्यम से ही बच्चा पैदा होगा. अफ़सोस हमारे सरकार के पास ऐसा कोई प्रभावी कानून नहीं है जिससे प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी पर लगाम कसा जा सके.

विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि किसी भी देश में, सिज़ेरियन ऑपरेशन के माध्यम से डिलीवरी 10 से 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए, लेकिन भारत में ये आंकड़े कब के पार हो चुके हैं.

सिज़ेरियन डिलीवरी के केसेज़ क्यों बढ़ रहे हैं?

Babycenter

अधिकांश Gynecologist का मानना है कि भारत में इसकी वजह है,अव्यवस्थित जीवनशैली, मोटापा, डायबटीज़, दुबलापन और गर्भावस्था के दौरान उचित पोषण का न मिल पाना. कुछ Gynecologist का ये भी मानना है कि अधिकतर भारतीय महिलाएं, गर्भावस्था के दौरान, शारीरिक व्यायाम न के बराबर करती हैं, इसलिए भी नॉर्मल डिलीवरी के वक़्त Complications आते हैं.

डर का फ़ायदा उठाते हैं अस्पताल

Oowomaniya

उत्तर प्रदेश में सिद्धार्थ नगर के एक सज्जन ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि वे एक प्राइवेट हॉस्पिटल में अपने पत्नी को नियमित चेकिंग के लिए ले जाते थे. डॉक्टर का कहना था नॉर्मल डिलीवरी से बच्चा पैदा हो जाएगा लेकिन जब उनकी पत्नी को दर्द बढ़ा और डिलीवरी कराने के लिए लेबर रूम में उन्हें ले जाया गया, तब डॉक्टर ने उनसे कहा कि मामला क्रिटिकल हो गया है, ऑपरेशन करना पड़ेगा. अगर ऑपरेशन नहीं हुआ तो जच्चा-बच्चा दोनों को बचाना मुश्किल हो जायेगा. उन्होंने बताया कि, ‘मैं डर गया. मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था. मैंने कहा ऑपरेशन कर दीजिये लेकिन मेरे पत्नी और बच्चे को बचा लीजिये.’ बाद में मुझे लगा मेरे इसी घबराहट का फ़ायदा हॉस्पिटल ने उठाया. पहले कहा कि सिर्फ 3,500 रुपये आपको जमा करने होंगे लेकिन 40,000 का बिल हाथों में थमा दिया गया. अचानक आदमी कहां से इतने पैसों का इंतज़ाम करे?

दिल्ली में रहने वाली स्मिता(बदला हुआ नाम) को ऑपरेशन से डर लगता था. वे अपने बच्चे को प्राकृतिक तरीके जन्म देना चाहती थीं. डिलीवरी से एक दिन पहले तक डॉक्टर कह रहे थे कि नॉर्मल डिलीवरी से बच्चा पैदा होगा. जैसे ही दर्द बढ़ा और उन्हें लेबर रूम में ले जाया गया, डाक्टर ने कहा ऑपरेशन करना पड़ेगा. अचानक से ऑपरेशन की बात सुनकर स्मिता घबरा गईं. वे इसके लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थीं.उनके पति ऑटो रिक्शा चलाते हैं उन्हें तुरंत से पैसे जुटाने के लिए भी बहुत परेशान होना पड़ा.

सिज़ेरियन डिलीवरी पर क्या कहती हैं महिलाएं?

Dailymail

आरती बताती हैं कि ऑपरेशन से पहले कितना भी वज़न क्यों न हो, वे उठा लेती थीं. लेकिन अब वे ज़्यादा वज़न उठाती हैं तो उन्हें तक़लीफ़ होती है.

कुछ ऐसा ही ग़ाज़ियाबाद में रहने वाली सीमा का कहना है. उन्हें कभी अस्थमा और सिर दर्द की समस्या नहीं थी लेकिन ऑपरेशन के बाद उन्हें इसकी तकलीफ़ बढ़ गई.

36 वर्षीया साक्षी बताती हैं कि ऑपरेशन के पहले सब ठीक था लेकिन ऑपरेशन के बाद घुटने और सांस की तकलीफ़ बढ़ गई. पूछताछ के दौरान पता चला कि लगभग ऐसा ही अनुभव उन सभी महिलाओं का है जो सिज़ेरियन ऑपरेशन की प्रक्रिया से गुज़री हैं.

मुश्किलें जो सिज़ेरियन डिलीवरी के बाद बढ़ जाती हैं

Bebac

सिज़ेरियन ऑपरेशन के बाद Stitches, Breast Infection का होना तो नॉर्मल है, लेकिन Excess Bleeding की वजह से महिला शारीरिक रूप से कमज़ोर हो जाती है. अगर युरिनल इन्फ़ेक्शन हो जाये तो महीनों तक ठीक नहीं होता. कुछ रिसर्च में पता चला है कि ऑपरेशन के बाद महिला महीनों तक सामान्य नहीं हो पाती. नॉर्मल डिलीवरी को पैसों के चक्कर में सीज़ेरियन डिलीवरी में बदलने वाले अस्पताल और चिकित्सक कभी ये नहीं सोचते कि, उनकी वजह से एक महिला को कितना परेशान होना पड़ता है.

बच्चे को होने वाली परेशानियां

Doulas

चिकित्सकों का मानना है सिज़ेरियन डिलीवरी से होने वाले बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता सामान्य बच्चों से कम होती है. हालांकि इसके अपवाद भी होते हैं. सर्ज़री से होने वाले बच्चों में अस्थमा, ब्रोन काईटिस और एलर्जी होने की संभावना सामान्य बच्चों से ज़्यादा होती है.

ऑपरेशन के दौरान कई बार बच्चे के मस्तिष्क में गंभीर चोटें आ जाती हैं जो सेरिब्रल पैल्सि जैसी गंभीर बीमारी को जन्म देती है जिसमें बच्चा मानसिक रूप से अपंग हो जाता है.

प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी

Cbronline

सिज़ेरियन डिलीवरी का चलन सिर्फ़ शहरों तक सीमित नहीं है. दूर-दराज के ग्रामीण इलाक़ों और कस्बों में भी बहुत तेज़ी से प्राइवेट नर्सिंग होम्स खुल रहे हैं. सरकारी अस्पतालों की बदहाल व्यवस्था और संख्या में कमी के चलते लोगों को मजबूर होकर, प्राइवेट नर्सिंग होम्स की ओर जाना पड़ता है, जहां उनका आर्थिक शोषण होता है. एक सामान्य से ऑपरेशन के लिए, 45 से 50 हज़ार रुपये, पेशेंट को खर्च करने पड़ते है. कई बार इससे ज़्यादा भी पैसे अस्पताल वाले ऐंठ लेते हैं. जान का खतरा अलग से बना रहता है. आमतौर पर सिज़ेरियन डिलीवरी करने से पहले महिला के परिवार से, एक डॉक्यूमेंट पर साइन करा लिया जाता है जिसमें लिखा होता है, अगर ऑपरेशन के दौरान पेशेंट की मौत हो जाए तो हॉस्पिटल की कोई ज़िम्मेदारी नहीं होगी. अगर सरकारी अस्पतालों की संख्या बढ़ जाये और उन्हें सुविधा संपन्न कर दिया जाए तो शायद सिज़ेरियन डिलीवरी के मामले घट जाएं.

अस्पताल जनसेवा है या बिज़नेस इंडस्ट्री?

Bangalore Water Supply Vs. A. Rajappa(AIR1978) केस में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार कहा भी था कि हॉस्पिटल, एक इंडस्ट्री है. अब इंडस्ट्री तो बेनिफ़िट के लिए कुछ भी करेगी.

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, 60 प्रतिशत प्राइवेट हॉस्पिटल्स में C-Section डिलीवरी कराई जाती है. इस रिपोर्ट को सच न मानें, तो अपने आस-पास नज़रें दौड़ाएं, लोग वास्तविक स्थिति बता देंगे.

प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी शहर और गांव में, एक जैसी ही है. कोई ऐसा प्रभावी कानून राज्य और केंद्र सरकार दोनों ने नहीं बनाया है, जिससे इनकी मनमानी पर रोक लग सके. ये अस्पताल इलाज करें न करें, बीमार ज़रूर कर देते हैं. महिला को होने वाली मुश्किलों की ओर किसका ध्यान जाए, इंडस्ट्री है वो रुकनी नहीं चाहिए.

पैसे लूटने के नए बहाने मिलें है तो लूटना जारी है. सरकार न जाने क्यों इतनी निश्चिंत हैं कि अस्पतालों की मनमानी उसे नहीं दिखती.स्वस्थ्य संगठन इस पर चाहे जितना चिंता क्यों न जताएं जब तक सरकार द्वारा कुशल नियामक तय नहीं किये जायेंगे, तब तक अस्पतालों के शोषण की प्रवृत्ति ज़ारी रहेगी और प्रसूताओं के स्वास्थ्य से खिलवाड़ होता रहेगा.

Feature Image Source: Darkroom