कहते हैं, ऐसा कुछ नहीं है जो इंसान न कर सके. बस कुछ कर गुज़रने का हौसला चाहिए.
ऐसी ही एक शख़्सियत हैं दिपेश टैंक. मुंबई की बस्तियों में बड़े हुए हैं दिपेश. उनके पिता की कमाई उतनी नहीं थी, इसलिये उनकी मां ने अपना Catering बिज़नेस शुरू किया. बचपन में उनकी मां देर रात घर लौटती, जो आस-पड़ोस के लोगों को बहुत चुभता था. लेकिन दिपेश अपनी मां को बहुत मानते हैं.
16 साल की उम्र में उन्होंने परिवार की सहायता करने के लिए पढ़ाई छोड़ दी. कुछ सालों की मेहनत के बाद उन्हें मुंबई की एक नामी Ad Agency में नौकरी मिल गई.
लेकिन एक घटना ने उनकी पूरी ज़िन्दगी बदल दी, Humans Of Bombay पेज से अपनी कहानी साझा करते हुए, दिपेश ने बताया,
मैं लोकल से सफ़र कर रहा था. मैं स्टेशन पर उतरा और देखा कि कुछ बदमाश लेडीज़ कम्पार्टमेंट में ज़बरदस्ती घुसने की कोशिश कर रहे हैं. मैं उनसे अकेले नहीं लड़ सकता था, इसलिये मैं पुलिस के पास गया. वो मेरे साथ नहीं जाना चाह रहे थे, बहुत कहने पर एक अफ़सर मेरे साथ आया, लेकिन तब तक वो बदमाश भाग चुके थे. इस घटना ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया. मुझे सबसे पहले मेरी मां याद आई जो अकसर देर रात घर लौटती थी. उन्हें भी इस तरह के Molesters और Harassers ने परेशान किया होगा, अगर मैं वहां होता तो क्या अपनी मां के लिए कुछ नहीं करता? क्या मैं उन अपराधियों को यूं ही जाने देता?
दिपेश ने इस घटना की गंभीरता को जानने के लिए अपने एक दोस्त के साथ मिलकर मुंबई के कई लोकल स्टेशन्स पर जाकर रोज़मर्रा की घटनाओं को Observe किया. इस शोध से उन्हें पता चला कि लोकल से सफ़र करने वाली लगभग 85% महिलाएं इस तरह की घटनाओं का सामना करती हैं.
दिपेश ने इसके बाद ऐसे Sunglasses ख़रीदे जिसमें HD कैमरा फ़िट था. दिपेश लेडिज़ कम्पार्टमेंट के आख़िर में खड़े होने लगे और जो भी उन्हें ऐसा करता दिखता उसे रिकॉर्ड करने लगे.
दिपेश ने आगे बताया,
मैंने जो भी रिकॉर्ड किया उससे मुझे एहसास हुआ कि औरतों को क्या-क्या नहीं झेलना पड़ता. मैंने सारी रिकॉर्डिंग पुलिस को दिखाई और ये बताया कि ये Harassment की समस्या कितनी बड़ी है.
पुलिस ने भी दिपेश का पूरा साथ दिया. दिपेश के साथ 40 पुलिस अफ़सरों की टीम काम करने लगी. ये पुलिसवाले दिपेश के साथ दो स्टेशन्स पर खड़े होते. Live Recording होने के कारण, जैसे ही मुजरिम एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन पर पहुंचते उसे पकड़ लिया जाता.
दिपेश अब महिलाओं की पर्सनल समस्याएं भी हल करते हैं.
2013 में दिपेश ने अपने 9 दोस्तों के साथ मिलकर WARR(War Against Railway Rowdies) शुरू किया. 6 महीने के अंदर दिपेश और उनके साथियों ने 140 गुनहगारों को सलाखों के पीछे पहुंचाया.
दिपेश के इस कदम को Amul ने भी सराहा और एक पोस्टर जारी किया.
दिपेश ने उस समस्या को पहचाना जिससे हम औरतों को हर रोज़ गुज़रना पड़ता है. काश कि छेड़छाड़ करने वाले भी ये समझें कि जो वो अपने मज़े के लिए कर रहे हैं वो किसी के दिल-ओ-दिमाग़ पर असर कर सकता है.