हमारा देश अपने आप को संस्कृति और समाज के नाम पर महान बताता आया है. इस महानता के नशे में डूबकर हम अकसर यह भूल जाते हैं कि किसी भी राष्ट्र की महानता वहां के नागरिकों से होती है. नियम, कायदे और कानून लोगों के लिए बनाये जाते हैं ना कि लोग उनके लिए.

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इस बात का एक बहुत ही बुरा उदाहरण है, डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय. डॉक्टर सुभाष वो शख्स है, जिन्होंने 1978 में भारत की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का सफल प्रयोग किया था. जहां एक ओर टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक की खोज करने वाले राबर्ट एडवर्ड्‍स को दुनिया ने नोबेल पुरस्कार देकर सम्मान और इज्ज़त से नवाज़ा, वहीं भारत का सबसे पहला टेस्ट ट्यूब बेबी का सफल प्रयोग करने वाले डॉक्टर सुभाष को सरकार और समाज के विरोध के चलते आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़ा.

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आपको बता दें, देश की पहली और दुनिया की दूसरी टेस्ट ट्यूब बेबी दुर्गा उर्फ़ कनुप्रिया अग्रवाल का लेब में निषेचन (Fertilization) तीन अक्टूबर 1978 में किया गया था. यह प्रयोग बहुत ही सीमित संसाधनों के साथ डॉक्टर सुभाष ने अपने अपार्टमेंट पर किया था. उनकी उपलब्धि का श्रेय उन्हें प्रयोग के बहुत समय बाद मिला और तब तक बहुत ज़्यादा देर हो चुकी थी. उनके प्रयोग को सरकार ने ख़ारिज कर दिया था, उनके केस का  ट्रायल भी ऐसे लोगों द्वारा चलाई गया, जिन्हें इस तकनीक के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी. उनसे केस के दौरान बेतुके सवाल पूछे जाते.

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इस केस को सरकार के विरोध के साथ-साथ समाज के नैतिक विवाद का भी सामना करना पड़ा. किसी ने भी नहीं माना कि इस महान डॉक्टर ने भारत में चिकित्सा के क्षेत्र में कितनी बड़ी छलांग लगाई है. उनकी इस उपलब्धि की वजह से सम्मान मिलने की बजाय उन्हें सामाजिक बहिष्कार, सरकार की नजरअंदाजी और धमकियों का सामना करना पड़ा, इन सबसे तंग आकर उन्होंने 19 जून 1981 को आत्महत्या कर ली थी.

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आज इस तकनीक की बदौलत लाखों परिवारों के घर में खुशियां है. पर हमारे देश में लचर कानून व्यवस्था और केवल दिखावे का पर्याय बन चुके समाज ने उसी इंसान को मरने पर मजबूर कर डाला, जिसने ये खुशियां दी. संविधान में देश के नागरिकों से साफ-साफ अपील की गयी है कि वो वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ अपने जीवन में आगे बढ़े. अब इस केस में तो लोग और सरकार दोनों ने ही किसी भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण का पालन नहीं किया. आज सालों बाद जब देश के बड़े-बड़े वैज्ञानिकों ने उनके अध्ययन को मान्यता दी है, तब एक तरफ़ तो ख़ुशी भी है कि उनके प्रयोग को मान्यता मिली, दूसरी तरफ़ देरी की वजह से गुस्सा भी है. मेरी तो आपसे यही अपील है कि किसी को समाज का ठेकेदार न बनने दें, अपने विवेक और ज्ञान को काम में लाकर चीज़ों को समय की मांग के अनुसार जांचें. 

Feature Image Source: lidoalexion