अमेरिका के Whistleblower एडवर्ड स्नोडेन ने जब से अमेरिकी सरकार और कई वेबसाइट्स को लेकर खुलासे किए थे तभी से गूगल और फ़ेसबुक जैसी साइट्स पर प्राइवेसी को लेकर लोगों में शक गहरा हो गया था. एक अनुमान के मुताबिक, फ़ेसबुक रोज़ 51 लाख 10 हज़ार फ़िल्मों के बराबर डाटा इकट्ठा करता है और ये डाटा हैकिंग के लिहाज़ से संवेदनशील बना हुआ है.

फ़ेसबुक आज देश भर के मिलेनियल्स औऱ समाज के कई तबकों की आवाज़ बना हुआ है. ये कई लोगों की ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है. लेकिन क्या ये हमारे लिए अच्छा है या बुरा? 24 घंटे ऑनलाइन रहना आपके मानसिक, सामाजिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर किस तरह से असर कर रहा है, इसे जानने की कोशिश की गई है.

1. फ़ेसबुक को हर समय ये जानकारी होती है कि आप कहां है.

अगर आपके पास फ़ेसबुक मेसेंजर एप है, तो ज़ाहिर है आपने अब तक अपनी लोकेशन शेयरिंग को बंद नहीं किया होगा. ये आपके ऊपर है अगर आपको फ़ेसबुक को अपने बारे में जानकारी देना चाहते हैं. लेकिन कोई आपका पीछा करने की कोशिश कर रहा हो तो?

एक प्रोग्रामर ने इसी सिलसिले में एक Marauder मैप विकसित किया था. इस मैप के सहारे ये शख़्स उन लोगों की लोकेशन का आसानी से पता लगा सकता था जिनके फ़ोन में मेसेंजर मौजूद है. हालांकि इस घटना के बाद फ़ेसबुक ने मेसेंजर एप से लोकेशन शेयरिंग को डिसेबल कर दिया था लेकिन इसका ये कतई मतलब नहीं है कि फ़ेसबुक आपका डाटा कलेक्ट नहीं कर रहा है.

2. फ़ेसबुक के ज़्यादा इस्तेमाल से आप डिप्रेशन में जा सकते हैं.

आप जितना ज़्यादा फ़ेसबुक इस्तेमाल करते हैं, आप उतना ही बुरा महसूस कर सकते हैं. सोशल मीडिया पर बहुत ज़्यादा वक्त बिताने वाले लोगों में कई ऐसी समस्याएं देखी गईं है. कुछ लोग अब एक दूसरे से मिलने पर या फ़ेस टू फ़ेस बातचीत में असहज महसूस करते हैं. इससे आपके आत्मसम्मान में कमी आ सकती है क्योंकि सोशल मीडिया पर अनचाहे तरीके से आप अपने को दूसरे लोगों से तुलना करने लगते हैं. येल यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, फ़ेसबुक आपके मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डाल सकता है.

3. फ़ेसबुक आपके Intellect को कमज़ोर बनाता है.

अमेरिका इलेक्शन में डॉनल्ड ट्रंप की जीत के बाद कई लोगों ने फ़ेसबुक को निशाने पर लिया था. लोगों का कहना था कि फ़ेसबुक और गूगल पर धड़ल्ले से चल रही फ़ेक न्यूज़ की वजह से चुनाव के समय काफ़ी लोगों को बरगलाने की कोशिश हुई. मामला इतना गंभीर था कि फ़ेसबुक के सीईओ मार्क ज़ुकरबर्ग ने भी इस मामले में कई फ़ेक न्यूज़ साइट्स को फ़िल्टर करने का फ़ैसला किया और लोगों को चेताया था कि अपने विवेक के अनुसार ही किसी वेबसाइट पर यकीन करें.

मेनस्ट्रीम मीडिया ने भले ही इस मामले को खूब दिखाया हो लेकिन फ़ेक न्यूज़ के खतरे से इतर भी फ़ेसबुक आपके दिमाग से खेलने की शुरुआत कर चुका था.

दरअसल मार्क जुकेरबर्ग चाहते हैं कि आप उसकी वेबसाइट पर ज़्यादा से ज़्यादा वक्त बिताएं. ऐसे में वो अक्सर आपको वहीं चीज़ें दिखाता हैं, जिन्हें आप देखना पसंद करते हैं. मसलन अगर आप दक्षिणपंथी हैं और इस विचारधारा से जु़ड़ी चीज़ों को फ़ेसबुक पर लाइक करते हैं, तो वो आपको ज़्यादातर ऐसा ही कटेंट दिखाएगा जिसमें बीजेपी या दक्षिणपंथी पार्टियों के बारे में सकरात्मक चीज़ों का बखान हो. जाहिर है, फ़ेसबुक आपके Intellect को भी गर्त में लेकर जा रहा है क्योंकि वो आपको वहीं दिखाना चाह रहा है जो आप देखना चाहते हैं, जिससे आप दूसरी या किसी विपक्षी विचारधारा के बारे में जान-समझ ही नहीं पाते. फ़ेसबुक आपको इस भ्रम में भी रखता है कि जिस पार्टी का आप समर्थन करते हैं वो बेहद लोकप्रिय है, भले ही ऐसा न हो. सोशल मीडिया पर राजनीतिक पार्टियों के फ़ेसबुक पेजों पर बढ़ती नकारात्मकता की वजह से भी लोग अपने से अलग विचारधारा के लोगों के बीच बेहद असहिष्णु होते जा रहे हैं.

4. फ़ेसबुक आपका चेहरा पहचान सकता है.

जब भी आपका दोस्त आपको फ़ेसबुक पर किसी तस्वीर में टैग करता है तो ये जानकारी फ़ेसबुक के विशालकाय डाटा में स्टोर हो जाती है. इस सोशल नेटवर्क के पास ऐसा Artificial Intelligence है, जो आ,पके चेहरे के साथ पैटर्न मैचिंग में मशगूल रहता है.फ़ेसबुक का Algorithm इतना बेहतरीन है कि वो 98 प्रतिशत सटीकता का दावा करता है. हर नई अपलोड हुई फ़ोटो के साथ फ़ेसबुक का ये पैटर्न बेहतर होता जाता है.

5. खाने को लेकर लापरवाह लोगों पर फ़ेसबुक का प्रभाव होता है नकारात्मक

फ़्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी में 84 महिला छात्रों पर एक सर्वे से सामने आया कि जो युवतियां इस एप का ज़्यादा इस्तेमाल करती हैं, उनमें खाने का पैटर्न बेहद अव्यवस्थित रहता है. फ़ेसबुक पर अधिक समय बिताने वाली कुछ महिलाएं समय पर खाना नहीं खाती हैं जिससे उनके स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है. वॉशिंगटन में अमेरिकन यूनिवर्सिटी में हुई एक स्टडी के मुताबिक, कई लड़कियां तुलना की वजह से अपने शरीर को लेकर बेहद Conscious रहती हैं. किसी मानसिक समस्या से ग्रस्त इंसान के लिए फ़ेसबुक का इस्तेमाल अधिक घातक हो सकता है.

6. फ़ेसबुक के ज़्यादा इस्तेमाल से अकेले लोग, और भी ज़्यादा अकेले पड़ जाते हैं.

न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के Psychiatrist डॉ सुदीप्ता वर्मा के अनुसार, फ़ेसबुक आपको आपके आसपास के लोग क्या कर रहे हैं उससे अपडेट रखता है, लेकिन साथ ही आपको ये भी संदेश मिलता रहता है कि आप अपनी ज़िंदगी में क्या नहीं कर रहे, या नहीं कर पा रहे हैं. लोग इससे हताश और तनावग्रस्त अवस्था में पहुंच सकते हैं. 82 फेसबुक एक्टिव यूज़र्स पर हुई स्टडी से ये विश्लेषण सामने आया है. सबसे हैरानी वाली बात थी कि ये सब महज 2 हफ़्तों के अंदर हुआ. यानि महज दो सप्ताह के अंदर फ़ेसबुक एक हंसते खेलते इंसान को तुलना के द्वारा हीन भावना और डिप्रेशन के घेरे में डाल देने की क्षमता रखता है.

7. फ़ेसबुक आपके बारे में आपकी सोच से भी ज़्यादा जानता है.

फ़ेसबुक का NewsFeed आपको ज़्यादा से ज़्यादा समय तक इस पर नज़रें गड़ाए रखने के लिए मजबूर करता है. इस दौरान फ़ेसबुक आपकी प्रोफ़ाइल के सहारे एक विश्लेषण करता है. इससे फ़ेसबुक आपकी Ads में रुचि, राजनीतिक विचारों और आपकी प्रोफ़ाइल के कई दिलचस्प पहलुओं को उठाकर एक प्रोफ़ाइल तैयार करता है और उसी के हिसाब से आपका न्यूज़फ़ीड भी निर्धारित होता है. आप किन चीज़ों को लाइक या शेयर करते हैं, इसके आधार पर फ़ेसबुक आपको ये भी बता सकता है कि आप किस तरह के इंसान हैं.

8. फ़ेसबुक पर होती है पॉलिटिकल सेंसरशिप.

यूं तो फ़ेसबुक एक फ़्री और ओपन सोसाइटी की बात करता है लेकिन ये न केवल पॉलिटिकल सेंसरशिप करता है बल्कि कई प्रोपेगेंडा को उभरने में भी मदद कर सकता है. चीन में जहां फ़ेसबुक ने एक स्पेशल सॉफ़्टवेयर के सहारे कुछ यूज़र्स के पोस्ट्स को सेंसर किया था वहीं यूके सरकार की एजेंसी की शिकायत के बाद फ़ेसबुक ने एक व्यंग्य को भी बैन किया था. इसके अलावा रुस में भी एक प्रोटेस्ट पेज को फ़ेसबुक ने बैन कर दिया था. अपने देश में भी समय-समय पर कुछ यूज़र्स के अकाउंट बैन होने और पोस्ट डिलीट होने की खबरें सामने आती रही हैं.

9. फ़ेसबुक कभी भी आपके डाटा को बेच सकता है.

अगर आप पॉलिटिकल सेंसरशिप सुनकर परेशान हुए हैं, तो ये पॉइंट आपकी परेशानी को और बढ़ा सकता है. हाल ही में मास्टरकार्ड ने फ़ेसबुक डाटा को खरीदा है. इस खरीद का मकसद फ़ेसबुक इस्तेमाल करने वाले लोगों की पसंद-नापसंद का निरीक्षण के बारे में पता करना है ताकि लोगों के शॉपिंग पैटर्न का पता लग सके.

ज़ाहिर है, मास्टरकार्ड ने इसके लिए बड़ी कीमत चुकाई होगी लेकिन क्या आप जानते हैं कि फ़ेसबुक महज 5 डॉलर में 10 लाख यूजर्स का डाटा बेच चुका है. हालांकि इसके बाद स्थिति सामान्य हो गई थी लेकिन अगर ये तरीका आम होने लगा तो भी कोई भी शख़्स जाकर आसानी से लाखों अकाउंट्स को खरीद सकता है और उन्हें स्पैम कर सकता है. हैरानी की बात थी कि इस मामले में फ़ेसबुक ने बेहद लचर कार्यवाई की थी जिससे साफ़ हुआ था कि फ़ेसबुक को आपके डाटा की उतनी भी परवाह नहीं है जिसका वो दावा करता आया है.

10.  फ़ेसबुक जानता है, आप कब सोने जा रहे हैं.

फ़ेसबुक मेसेंजर एप के द्वारा यूजर्स ये पता लगा सकते हैं कि आप कब ऑनलाइन एक्टिव थे. सोरेन जांसेन नाम के एक डेवलेपर ने जब इस मामले को गहराई से जांचने की कोशिश की तो उन्होंने पाया कि वे अपने सभी दोस्तों के सोने के तरीके और Timings को आसानी से पता लगा सकते थे. यूज़र की ID को टाइम स्टैंप के साथ रिलेट करने के साथ ही वे फ़ेसबुक इस्तेमाल करने वाले लोगों के सोने के पैटर्न का अंदाज़ा लगा सकते थे.

एक हैकर ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए इसमें एक और लूपहोल निकाल दिया. इस हैकर के अनुसार, ये भी आसानी से पता लगाया जा सकता है कि आप कौन से डिवाइज़ से अंतिम बार ऑनलाइन हुए थे. यानि ये पता लगाना भी आसान था कि रात को सोते समय अपने पीसी का इस्तेमाल कर रहे थे या अपने स्मार्टफ़ोन पर बिज़ी थे.