हाथों में पूजा की थाली आई रात सुहागवालों, चांद को देखूं हाथ मैं जोड़ूं करवाचौथ का व्रत मैं तोड़ूं…

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1995 में यश चोपड़ा की फ़िल्म ‘दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे’ का ये गाना है. इसके अलावा 2001 में करण जौहर की फ़िल्म ‘कभी ख़ुशी कभी ग़म’ के लैजा लैजा गाने की वो लाइन ‘अपनी मांग सुहागन हो, संग हमेशा साजन हो’ ये लाइन तो बहुत अच्छी है, लेकिन करवाचौथ पर फ़िल्माए गए इन गानों का असल ज़िंदगी से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है. इन गानों ने मुझे हमेशा धोखे में रखा है, बताती हूं कैसे…

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90 के दशक के ज़्यादातर बच्चे मेरी इस बात से इत्तेफ़ाक़ ज़रूर रखेंगे. जो अब मैं बताने जा रही हूं. बचपन से मैं मम्मी को करवाचौथ करते देख रही हूं, हालांकि वो रोज़ जल्दी उठती हैं तो उस दिन भी जल्दी उठती हैं उठने के बाद रोज़ की तरह ही घर के कामों में लग जाती हैं. बस फ़र्क़ इतना होता है उस दिन उनका काम दोगुना हो जाता है. क्योंकि उन्हें प्रसाद भी बनाना होता है. 

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जिनके लिए वो ये व्रत करती हैं मेरे पापा, वो सुबह-सुबह रोज़ की तरह ऑफ़िस चले जाते हैं. बस एक अच्छी बात होती है कि उस दिन वो रोज़ से 1 घंटे पहले आ जाते हैं. मगर मम्मी के घर के कामों में उस दिन 1 घंटे के बजाय 2 घंटे ज़्यादा लग जाते हैं.

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पापा घर आते हैं कपड़े बदलकर लेट जाते हैं और मम्मी काम करके थक कर चूर होने के बाद आधा अधूरा तैयार होती हैं. फिर अपना सारा पूजा का सामान लेकर अकेले ही चंद्रमा के बूढ़ा होने से पहले छत की तरफ़ भागती हैं. जैसे-तैसे पूजा करके आती हैं. पापा तब भी लेटे रहते हैं. वो शाहरुख़ ख़ान की तरह मम्मी का सामान नहीं पकड़ते उन्हें पानी नहीं पिलाते. व्रत रखने की बात तो मैं करूंगी ही नहीं, बहुत ज़्यादा हो जाएगा.

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मम्मी पूजा करके नीचे आती हैं और फिर लेटे हुए मेरे पापा को उठाकर उनके पैर छूती हैं. पापा को उसमें बहुत ज़ोर आता है. अरे पापा, मम्मी ये आपके लिए ही तो कर रही हैं. वो आई ही इसीलिए हैं कि आपके लिए व्रत करें, आपके सारे काम करें. तो इतना तो आप कर ही सकते हैं कि उन्हें आशीर्वाद दे दें, जो मैंने कभी आशीर्वाद देते नहीं सुना, लेकिन इतना यक़ीन है कि कुछ आशीर्वाद तो देते ही होंगे. और अगर नहीं भी देते होंगे तब भी मम्मी उनके लिए व्रत तो वैसे ही रखेंगी जैसे रखती आ रही हैं.

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इतने सालों में मैंने करण जौहर और यश चोपड़ा वाला करवाचौथ अपने मम्मी-पापा के बीच तो नहीं देखा. मगर मैंने इतना ज़रूर देखा है कि पापा घर में घुसते ही सबसे पहले मम्मी को पूछते हैं, शायद इसीलिए मेरे पापा शाहरुख़ और मम्मी काजोल भले ही नहीं हैं, लेकिन उनके करवाचौथ में कोई बात तो है.

अगर आपने अपने मम्मी पापा के बीच 90 के दशक में ऐसा करवाचौथ मनाते देखा है, तो मुझे कमेंट बॉक्स में बताइएगा ज़रूर.

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