अतिथि देवो भवः

यानि अतिथि भगवान समान है.

इस स्लोगन/ Motto/ Tagline को भारतीय पर्यटन मंत्रालय सालों से इस्तेमाल कर रहा है. ये सही भी है, क्योंकि किताबी तौर पर ही सही, ये हम भारतीयों के संस्कार का सूचक है कि हम अपने मेहमान को भगवान मानते हैं.

जैसे ये:

और ये:

या फिर ये:

क्या हुआ, बुरा लगा?

हिन्दू संस्कृति, भारतीय संस्कृति, सनातन संस्कृति, सिंधु घाटी सभ्यता की संस्कृति, आप इसे इनमें से किसी का भी अपमान मान कर Offend (भावना को ठेस) हो सकते हैं, नहीं हुए तो या तो आप ‘अतिथि देवो भवः’ का अर्थ नहीं जान पाए या फिर आप भारतीय नहीं हैं. क्योंकि यहां पर आपको मेरे ‘अतिथि देवो भवः’ के उल्लेख से नहीं, हम भारतीयों के विदेशी Tourists के साथ आचरण पर Offence लेना चाहिए.

दुनिया भर से हर साल, हर दिन, हर महीने भारत में टूरिस्ट आते हैं, जिनमें महिलाएं भी होती हैं. ये कहने में मुझे ज़रा भी संकोच नहीं होगा कि देवी को पूजने वाले इस देश में एक ‘विदेशी महिला’ को बेहद ग़लत नज़रों से देखा जाता है. फ़िल्मों और ग़लत तरह की फ़िल्मों से आसक्त आधे पढ़े-लिखे लोग सिर्फ़ ये समझते हैं कि ‘फ़िरंग’ वैसे ही होते हैं, जैसे उन्होंने उन फ़िल्मों में देखा है.

इटैलियन एक्सचेंज प्रोग्राम की एक स्टूडेंट मुंबई के गेटवे ऑफ़ इंडिया घूमने आई थी. 

उसके साथ क्या हुआ, इस बारे में किसी ने शेयरिंग थ्रेड रेडिट इंडिया में एक वीडियो डाल कर पूछा कि क्या ऐसा भारत में आम है?

ये रहा वो वीडियो

ये लोग क्या सोच कर उसके साथ सेल्फ़ी ले रहे थे? न तो वो कोई Celeb थी और न ही उनकी जान-पहचान वाली. क्योंकि उसका रंग गोरा था और वो ‘विदेशी महिला’ थी, इसलिए इन्होंने ये करना सही समझा.

इस थ्रेड में उस व्यक्ति ने भी जवाब दिया है, जिनके इंस्टिट्यूट में वो पढ़ने जाती है. उनके जवाब के अनुसार, वो लड़की डरी हुई थी, उन्हें भी पहले लगा कि वो लड़की इसे बढ़ा-चढ़ा कर बता रही है, लेकिन बाद में सच्चाई सामने आ गयी.

कई लोगों ने इस थ्रेड के कॉमेंट्स में लिखा है कि उस लड़की को पुलिस को बुलाना चाहिए, जो एक तरह से सही है. 

अगर ये गेटवे ऑफ़ इंडिया जैसी जगह नहीं होती, तो वो लड़की बस एक इंच दूर थी रेप से, यौन उत्पीड़न से. हो सकता है और मुझे यकीन है इस दौरान उसे ग़लत तरह से छूने की पूरी कोशिश की गयी होगी, हो सकता है कैमरे या इस रिकॉर्डिंग में न दिखा हो. इस रिकॉर्डिंग में भारतीयों और ख़ास कर भारतीय मर्दों की मानसिकता ज़रूर दिख गयी.

ये लोग गुंडे-मवाली या सड़क छाप नहीं थे, ये ‘सभ्य’ लोग थे, वहां शायद अपने परिवार, दोस्तों के साथ घूमने गए थे, लेकिन उनका बर्ताव डराने वाला और शर्मनाक था.

हो सकता हो ये उनके लिए ‘मज़े वाली’ बात रही हो, लेकिन उस लड़की या उस जैसे बाकी Foreigners के लिए नहीं. और सेल्फ़ी लेने का तुक क्या है? सिर्फ़ ये कि वो गोरी है? आपको नहीं लगता हमें अब गोरेपन की इस सनक से बाहर आ जाना चाहिए?

दुनिया भर से लाखों लोग भारत एक अलग तस्वीर लेकर आते हैं. कोशिश करिये, उस तस्वीर को संवारें, न कि बिगाड़ें.