मन के हारे हार है और मन के जीते जीत…

इसकी जीती जागती मिसाल हैं गीता चौहान. गीता ने अपने पिता की नफ़रत और मां के प्यार से दुनिया की वो जंग जीत ली, जिसे जीतना मुश्क़िल था लेकिन नामुमकिन नहीं. 

Humans Of Bombay में आई गीता चौहान की आपबीती आपलोगों को हिम्मत दे देगी. गीता आज मुंबई की Women Wheelchair Basketball Team की खिलाड़ी हैं और एक सफ़ल बिज़नेसवुमेन, इंटरनेशनल बास्केटबॉल चैम्पियन और नेशनल टेनिस चैम्पियन हैं. मगर इनका ये सफ़र आसान नहीं था. 

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गीता ने बताया,

जब वो महज़ 6 साल की थीं, तो पता चला कि उन्हें पोलियो है. उनके पोलियो ने शरीर को ही नहीं, बल्कि उनके रिश्तों को भी अपंग कर दिया. गीता की मां हमेशा उनके साथ रहीं, लेकिन उनके पिता उनकी इस कमी को स्वीकार नहीं कर पाए और उन्हें कभी आगे बढ़ने के लिए प्रेरत नहीं किया. 
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मगर उनकी मां ने कभी हार नहीं मानी. गीता की जब स्कूलिंग शुरू हुई तो उन्हें 10 स्कूलों ने रिजेक्ट कर दिया था. उसके बाद एक स्कूल ने उन्हें एडमीशन दिया, लेकिन उनके पिता नहीं चाहते थे कि वो स्कूल जाएं. उनकी मां की ज़िद्द ने उन्हें स्कूल भेजा. गीता को स्कूल में भी अपने पिता जैसे लोग मिले. वहां पर कुछ बच्चों के पेरेंट्स गीता के पास अपने बच्चों को नहीं आने देते थे. उन्हें लगता था कि उनके बच्चे भी गीता जैसे हो जाएंगे. 

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इन सबके बावजूद गीता ने अपना स्कूल ख़त्म किया. इसके बाद वो ग्रैजुएशन करना चाहती थीं. मगर उनके पिता ऐसा नहीं चाहते थे, जिसके चलते उन्हें डराना और धमकाना यहां तक कि पॉकेटमनी तक देना बंद कर दिया.

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गीता की मां ने अपने बचाए हुए पैसों से गीता के सपनों को उड़ान दी और ग्रैजुएशन में एडमीशन दिलाया. ग्रैजुएशन के साथ-साथ गीता ने जॉब इंटरव्यूज़ भी देना शुरू कर दिए, लेकिन उन्हें उनकी शारीरिक अक्षमता की वजह से रिजैक्शन ही मिला. गीता को एक हफ़्ते में 28 रिजैक्शन मिले मगर हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी. उसके बाद भी गीता का इंटरव्यू का सिलसिला चलता रहा. फिर उनके भाई के दोस्त ने गीता को टेलीकॉलर की ज़ब ऑफ़र की.  

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गीता के लिए जॉब ‘डूबते को तिनके के सहारा जैसा था’. जॉब के बाद गीता की लाइफ़ बहुत ही अच्छी हो गई. वो रोज़ सुबह ऑफ़िस जातीं और फिर शाम को कॉलेज उसके बाद घर. किसी तरह से गीता ने अपनी ग्रैजुएशन पूरा किया और एक सिक्योर जॉब भी हो गई. 

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गीता की ये कड़ी मेहनत सबको दिखी लेकिन उनके पिता को सिर्फ़ उनकी शारीरिक अक्षमता ही दिखी. इसके चलते उन्होंने गीता से जॉब छोड़ने को कहा और धमकी दी की अगर वो ऐसा नहीं करेंगी तो वो उन्हें गांव भेज देंगे.

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इसके बाद गीता ने अपना घर छोड़ दिया और वो अपनी दोस्त के साथ रहने लग गईं. गीता ने कुछ दिनों के बाद ख़ुद एक घर किराये पर लिया. मगर अकेले रहना आसान बात नहीं होती. गीता भी उस दौरान टूटने लगीं. एक दिन उन्होंने 30 नींद की गोलियां खा लीं और उनके दोस्तों ने उन्हें हॉस्पिटल पहुंचाया. हॉस्पिटल के बेड पर गीता ने ख़ुद को समझा और अपनी ज़िंदगी का अहम फ़ैसला लेते हुए जॉब छोड़ने का फ़ैसला लिया.

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जॉब छोड़ने के बाद गीता ने गार्मेंट्स का बिज़नेस शुरू किया. अपने बिज़नेस को ऊंचाई पर पहुंचाने के लिए गीता ने कड़ी मेहनत की. तभी उनके फ़्रेंड ने उन्हें मुंबई की Women Wheelchair Basketball Team के बारे में बताया. गीता ने वहां जाना शुरू किया. वो बताती हैं,

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मुझे बचपन में कभी भी खेलने नहीं दिया गया. इसलिए मैंने यहां जाने का निश्चय किया. मैं पूरे हफ़्ते काम करती थी फिर वीकेंड में प्रैक्टिस करती थी. ये वो जगह जहां मैं आज़ाद होती थी. कोई मुझे नहीं कहता था कि मैं ये नहीं कर सकती. मेरी टीम रोज़ प्रैक्टिस करती हमने नेशनल में हिस्सा लिया और हम जीते. ये मेरे लिए बहुत ही गर्व का पल था.
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गीता ने आगे बताया,

आज मेरा अपना बिज़नेस है. साथ ही मैंने अपनी बास्केटबॉल, टेनिस और रेसलिंग की प्रैक्टिस को भी जारी रखा है. मेरा अपना घर है जहां मेरी एक सपनों की दुनिया है. मैंने अपने होने और जीने के लिए अपनों से लड़ा है. इन सबको पार करके आज मैं ये सब पाया है. ज़िंदगी में कितनी भी मुसीबतें हों, लेकिन उम्मीद कभी मत खोना.

अगर मुसीबतों से डरे नहीं, तो एक दिन चमकोगे ज़रूर, बस उस चमकने तक के सफ़र में धैर्य रखना और ये याद रखना कि ‘सोना भी जलकर ही चमकता है’

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