लोगों के बीच में रह कर काम करना सोनल रोचानी के लिए कोई नई बात नहीं थी. क्राइम रिपोर्टर के तौर पर वह लोगों से मिलती ही रहती थीं, उन्हीं के बीच रह कर काम भी करती थीं. लेकिन एक पत्रकार को हमेशा अपने काम के दायरे से आगे जा कर लोगों की मदद करने की इच्छा रहती है, सोनल को भी थी. 

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लेकिन एक आम इंसान की तरह सोनल भी ज़रूरतमंद लोगों के प्रति सहानुभूति के आगे बढ़कर कोई काम नहीं कर पा रही थीं. लेकिन फिर 2005 में एक ऐसी घटना घटी जिसने उनकी ज़िंदगी बदल दी.  

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The Better India के साथ हुई अपनी ख़ास बातचीत में सोनल ने अपने इस सफ़र का किस्सा सुनाया. उन्होंने बताया कि काम के सिलसिले में उन्हें अक्सर सिविल अस्पताल जाना पड़ता था. उस दिन वह हमेशा की तरह अपना काम करने अस्पताल में थीं. उस रोज़ वहां एक गर्भवती महिला ने उनसे मदद मांगी. वह महिला पूरी तरह से मिट्टी के तेल में भीगी हुई थी. उसके ससुराल वालों ने उसको जला कर मारने की कोशिश की थी. महिला के गर्भ में एक लड़की पल रही थी. सोनल ने उस महिला की मदद की और हर संभव इलाज दिलवाया. लेकिन इस घटना ने सोनल को बुरी तरह से दहला दिया था और वो उससे कभी उबर नहीं पाईं.   

इस घटना के पांच साल बाद सोनल ने अपनी नौकरी छोड़ी और ग्रामीण महिलाओं के लिए काम करना शुरू किया.  

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सोनल वर्ल्ड बैंक के साथ भी काम कर चुकी थीं. वो इस बात पर नज़र रखतीं थी कि सरकारी योजनाओं की धनराशी लोगों तक पहुंचती है या नहीं. जागरुकता की कमी की वजह से ज़रूरतमंद लोग इन योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते थे. सोनल ने ज़मीनी सच्चाई जानने के लिए राज्य का दौरा किया और शक्ती फ़ाउंडेशन की नींव रखी. 

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सोनल के अनुसार कोटद्वार और हल्पाती के समुदायों को कई परेशानियां हैं, जिसमें से दो मुख्य हैं. हल्पाती के मर्दों को शराब की लत थी इसकी वजह से उनकी औसत उम्र 40 थी. यही वजह थी कि वहां विधवाओं की संख्या बहुत अधिक थी और बहुत सारे बच्चे पढ़ाई पूरी नहीं कर पा रहे थे. कोटद्वार में लोगों की आय का मुख्य श्रोत बांस से बनीं हस्तकला की चीज़ें थीं. इलाके में हरियाली घटने से लोगों का यह काम छूटता जा रहा था और वो मज़दूरी करने को मज़बूर हो रहे थे. 

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शक्ती फ़ाउंडेशन ने इनके बीच 8 साल काम किया, समुदाय की महिलाओं को ट्रेनिंग दी. 55 गांवों की लगभग 5,000 महिलाओं को अपना व्यवसाय शुरू करने में मदद की. शक्ती फ़ाउंडेशन और उसकी स्वंसेवी की टीम गांव के लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य और साफ़-सफ़ाई के मुद्दों पर भी जागरुक करती हैं. 

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इस संगठन ने सबसे पहले गांव के लोगों की ज़रूरी सरकारी दस्तावेज़ बनवाए, ताकि इन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके. आंगनबाड़ी और गांव के मुखिया की मदद से इस काम को अंजाम दिया गया और लगभग इसका 5000 परिवारों को फ़ायदा मिला. 

साल 2018 के Lancet Global Health Report के हिसाब से गुजरात देश के टॉप 10 राज्यों में से है जहां बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. UNICEF के अनुसार राज्य के 10.1 बच्चे अंडरवेट हैं. इसका गहरा असर दोनों समुदाय के बच्चों पर भी है. 

यहां बच्चों और महिलाओं में कुपोषण आम है. कई परिवारों को मुश्किल से एक वक्त का खाना मिल पाता है. लड़कियों की शादी उनकी क़ानूनी उम्र से पहले कर दी जाती है. 30 साल की उम्र तक उनके 3-4 बच्चे हो जाते हैं. चूंकी मां कुपोषण की शिकार होती है, इस वजह से बच्चे कम वजन के होते हैं.

-सोनल रोचानी

इसके लिए सोनल अपने दोस्तों और रिश्तेदारों की मदद से 55 गांवों में वक़्त-वक़्त पर हेल्थ चेकअप करवाती रहती हैं और उन्हें ज़रूरी स्वास्थ्य जानकारियों से अवगत कराया जाता है. 

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पूरे गांव में महिलाओं के लिए सप्ताह में दो दिन महिलाओं के बीच सुखड़ी और शीरा(दोनों घी से बनते हैं) बांटी जाती है ताकि इससे उनके वजन में बढ़ोत्तरी हो. 

Arunachalam Muruganantham से प्रेरणा लेकर शक्ती फ़ाउंडेशन गांव की महिलाओं के साथ मिलकर सस्ती सैनेटरी नैपकिन भी बनाती है, इससे उनके स्वास्थ्य लाभ और रोज़गार भी मिला. 

सोनल के शक्ती फाउंडेशन का ध्यान बच्चों की शिक्षा पर भी है. वो 46 स्थानीय स्कूलों में कठिन विषयों को पढ़ाने के लिए स्वयंसेवी शिक्षकों को बुलाती हैं और उन्हें करियर गाइडेंस भी देती हैं. 

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राज्य सरकार द्वारा चलाए जा रहे मिशन मंगलम के तहत फ़ाउंडेशन ने गांव की कई औरतों को व्यापार शुरू करने के लिए लोन दिलवाने में सहायता दी है. महिलाओं ने कई संगठन बनाए जो पापड़, खाखरा, अगरबत्ती आदि बनाती और बेचती हैं. 

सोनल ने अपने अब तक के आठ साल के सफ़र में कई कठिनाईयों का सामना किया. कई धमिकयां मिलीं लेकिन वो फिर भी आगे बढ़ती रहीं. अगर आप भी इस नेक सफ़र का हिस्सा बनना चाहते हैं तो उन्हें आर्थिक मदद पहुंचा सकते हैं.