दुनिया की आबादी करीब 7.6 अरब है. इतने लोगों की खाने की ज़रूरत प्रकृति पूरी करती है. मगर हम इंसानों की इस भूख को पूरी करने में अब प्रकृति भी हांफ़ने लगी है. एक रिसर्च से ये पता चला है कि इंसान ने धरती पर मौजूद तकरीबन 83 फ़ीसदी जानवरों को ख़त्म कर दिया है. जानकारों का कहना है कि इसकी भरपाई करने में धरती को 7 Million साल लगेंगे.

जंगलों के ख़त्म होने और जानवरों के रहने की जगह कम होना ही उनके विलुप्त होने का मुख्य कारण है. कई बार सीधे इंसान इन जानवरों की जान का दुश्मन बन जाता है, तो कई बार दुर्लभ जानवर इंसानों की खाने की प्लेट में नज़र आते हैं.

आने वाले 50 सालों तक अगर इंसान ऐसे ही पशुओं का विनाश जारी रखेगा, तो पृथ्वी को अपनी Evolutionary Diversity(विकासवादी विविधता) फिर से कायम करने में 5 Million वर्ष की आवश्यकता होगी. डेनमार्क की Aarhus University की एक स्टडी में ये बात सामने आई है.

इस स्टडी के हिसाब से पृथ्वी अपने छठे Mass Extinction की ओर बढ़ रही है. ये कुछ वैसा ही होगा जो Dinosaurs के विलुप्त होने का कारण बना था. इसलिए धरती को अपनी Evolutionary Diversity को फिर से हासिल करना ज़रूरी है ताकी Mass Extinction के समय धरती पर जीवन को बचाया जा सके.

International Union For The Conservation Of Nature के मुताबिक, 99 प्रतिशत Critically Endangered Species और 67 फ़ीसदी Endangered Species आने वाले 100 सालों में ख़त्म हो जाएंगी. इसके लिए लगातार जंगलों का कटना, ग्लोबल वॉर्मिंग और प्रदूषण जैसे कारक ज़िम्मेदार हैं.

इस स्टडी में ये भी हिसाब लगाया गया है कि प्रकृति को अपनी मौजूदा जैव विविधता स्तर को पाने में कितना समय लगेगा. इस गणना के अनुसार, आज से 50-100 साल बाद 2018 की जैव विविधता के स्तर को पाने में 3-4 Million वर्ष लगेंगे. हालांकि, प्रकृति को 5-7 मिलियन वर्ष लगेंगे आदि मानव वाले समय की जैव विविधता को पाने में. ये इस बात पर निर्भर करेगा कि मनुष्य किस हिसाब से पशुओं और जंगलों का विनाश जारी रखता है.

World Wide Fund(WWF) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1970 से लेकर अब तक इंसान की वजह से धरती के 60 फ़ीसदी जानवर लुप्त हो चुके हैं. करीब 4000 जानवरों पर किए गए इस सर्वे के अनुसार इन 44 वर्षों में जल में रहने वाले जानवरों की संख्या में 80 प्रतिशत की गिरावट आई है.

पूरी दुनिया के मुकाबले अमेरिका में सबसे अधिक 90 फ़ीसदी जंगली जानवर लुप्त हुए हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि अलग-अलग जीवों का ये विनाश मानव के अस्तित्व के लिए भी ख़तरा है.