6 महीने की चुभने-जलने, बदबूदार पसीने से शरीर को त्रस्त करने वाली गर्मी में अगर किसी को कुछ अच्छा नज़र आता है, तो उसने अपने दिमाग़ का तत्कालीन इलाज करवाना चाहिए.
यूं तो ज़िन्दगी में कई फल आए और गए पर किसी ने भी मन में वो एहसास नहीं जगाए, जो आम जगाता है.
वैसे तो रहिमन कह गए हैं कि ‘इस संसार में भांति-भांति के लोग’ मगर मुझे दो बातें समझ नहीं आती-
आम जैसी पवित्र चीज़, जिसका सीधा कनेक्शन हाथ और दांत से होना चाहिए उसे कुछ लोग छुरी-कांटा लगाकर अपवित्र करने की हिम्मत कैसे कर सकते हैं?
अब बुद्धिजीवी लोग कहेंगे कि सबकी अपनी-अपनी पसंद. नहीं भाई, अगर मोदी जी ‘पीपल्स प्रधानमंत्री’ हैं तो आम भी सभी को पसंद होना चाहिए. और आम को हाथ में लेकर खाने का जो सुख है न, वो कांटे में घोंपकर खाने में बिल्कुल नहीं है.
इन लोगों को भी मैं एक बार को माफ़ कर दूं पर वो लोग जिन्हें आम पसंद नहीं, वो न सिर्फ़ मेरे बल्कि पूरी इंसानियत के दुश्मन हैं!
दो देशों को जोड़ने वाले आम को नापसंद करने वालों को पहली टिकट से मंगल, शनि, शुक्र किसी भी ग्रह पर भेज देना चाहिए! मुझे तो ये भी लगता है कि आम को नापसंद करने वाले वही लोग होंगे जिन्हें लगता है कि वेज बिरयानी जैसी कोई चीज़ भी होती है!
आम को नापसंद करने वालों के लिए मेरे मुंह से ‘आम’ वाली गाली ही निकली है(सॉरी, नॉट सॉरी!)
दूसरों के लिए होता होगा, ‘एन एप्पल अ डे कीप्स द डॉक्टर अवे’, मेरे लिए तो ‘मेरे तो आम, रसदार. दूसरो न कोई!’
नोट: हां आम को लेकर पगलैट हूं और मुझे इस बात पर गर्व है!