इंडियन सिनेमा की बात हो और पारसी थिएटर का ज़िक्र न हो, ऐसा कैसे हो सकता है? पारसी थिएटर की शुरुआत करते वक़्त खुद ‘आगा हश्र कश्मीरी’ ने भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन यह थिएटर दुनिया की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री की नीवं रखेगा.

संगीत से फिल्म की शुरुआत, रंगों से भरपूर स्टेज और फिल्म के बीच में धड़ाधड़ गाने.

100 साल बाद भी बॉलीवुड सिनेमा में पारसी थिएटर का प्रभाव साफ़ देखा जा सकता है. आलम यह है कि अब कई बड़े हॉलीवुड डायरेक्टर भारतीय सिनेमा की देखा-देखी करने लगे हैं. आज हम आपको भारतीय सिनेमा की कुछ ऐसी ही खासियतों के बारे में बता रहे हैं, जो विश्व पटल पर इसकी पहचान बनने के साथ ही सिनेमा द्वारा दुनिया को दी गई हैं.

प्यार करना सिखाया

बेशक आज रोमांस के किंग के रूप में शाहरुख़ खान का नाम दुनियाभर में लिया जाता हो, पर प्रेम की परिभाषा बॉलीवुड बहुत पहले ही लिख चुका था. दुनिया की सबसे बेहतरीन रोमांटिक फिल्मों में से एक ‘प्यासा’ फिल्म ने प्यार के जो रूप दुनिया को दिखाए उसने सभी को स्तब्ध करके रख दिया था.

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रंग

इसमें कोई शक नहीं कि पहली कलर फिल्म बनाने का श्रेय हॉलीवुड को जाता है. पर हमने भी इस कला को सीखने में देर नहीं लगाई और इसे अपनी फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा बनाया. ‘किसान कन्या’ के रूप में पहली कलर फिल्म बना कर अपनी पहले अपनी मौजूदगी दर्ज कराई. उसके बाद इसे नए रूप से सजाया-संवारा. ‘चौदहवीं का चांद’ जैसी फिल्म के ज़रिये हमने दुनिया को अपनी रंगों की समझ के बारे में बताया और रंगों के साथ कैसे खेला जाता है इसे भी समझाया.

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कमर्शियल दौर में समानांतर फ़िल्में

कई आलोचकों का मानना है कि इंडियन सिनेमा की रंगत में सामानांतर सिनेमा कहीं खो चुका है. पर शायद वो लोग भारत के स्थानीय सिनेमा से परिचित नहीं है. कांस फिल्म फेस्टिवल की विदेशी भाषा श्रेणी में मराठी फिल्म ‘Baangdya’ किसी भी विदेशी फिल्म को सराही गई सबसे बेहतरीन फिल्म थी.

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स्टेज डिज़ाइन

‘मुगले आज़म’ का तड़कता-भड़कता महल हो या कलर सिनेमा के दौर में ‘ब्लैक’ फिल्म का ‘ब्लैक’ सेट, हमने हर मूड के हिसाब से खुद को ढाला और स्टेज का बेहतरीन नमूना दुनिया के सामने रखा.

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हॉलीवुड के लिए प्रेरणा स्रोत

आमतौर पर यही समझा जाता है कि इंडियन सिनेमा, हॉलीवुड से प्रेरित होकर अपनी फ़िल्में बनाता है. पर Andy Tennant, Danny Boyle समेत कई प्रसिद्ध हॉलीवुड डायरेक्टर भारतीय फिल्मों के दीवाने रहे हैं और भारतीय परिवेश के हिसाब से अपने कलाकार और कहानी गढ़ते हैं.

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कई वर्षों पहले अपनी एक्टिंग का लोहा मनवा चुके Leonardo Dicaprio को अब जा कर ऑस्कर से नवाजा गया है. कुल मिलाकर यह कहना बिलकुल गलत नहीं लगता कि कोई पुरस्कार योग्यता को सम्मानित तो कर सकता है पर उसे माप नहीं सकता. यही चीज़ भारतीय सिनेमा के साथ भी है कि अवार्ड फंक्शन में जाने के बाद भी हमारी फिल्मों को अवार्ड नहीं मिल पाता तो क्या हुआ? लोगों द्वारा सराही तो जाती हैं और उन्हें अंतराष्ट्रीय तौर पर उन्हें लोगों का भरपूर प्यार भी मिलता है और भारतीय सिनेमा के चाहने वाले दुनियाभर में मौजूद हैं.

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