ख़ुशी में खाना, दुःख में खाना, थक लगी तो खाना, मन ख़राब हुआ तो खाना. बात करना तो खाना, बात की शुरुआत करना तो खाना.

हम भारतीयों का खाने से ऐसा नाता है कि इसका ज़िक्र घूम-फिरकर हमारी जुबां पर आ ही जाता है. कभी कहावतों में, कभी किस्से-कहानियों में, तो कभी मुहावरों में! हम खाने के बिना अधूरे हैं और खाना हमारे बिना. और ये हामरी बोल-चाल में भी दिखता है.

ऐसे कई मुहावरें और कहावतें हैं, जो खाने पर बनी हैं, जैसे ‘एक अनार, सौ बीमार’. वैसे इसका मतलब होता तो ये है कि एक के पीछे सारे पागल. लेकिन हमने इन मुहावरों से कुछ छेड़खानी करने की सोची. क्या हो, जब इन कहावतों को वैसा ही समझा जाए, जैसी ये बोली जाती हैं.

ये हैं वो कहावतें-मुहावरें, जिनमें खाने का ज़िक्र आता है:

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

हम लोगों को समझ सको, तो समझो दिलबर जानी,

जितना भी तुम समझोगे, उतनी होगी हैरानी! 

क्योंकि हम हैं “खान” दानी, क्योंकि हम हैं “खान” दानी!

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