पितृसत्तात्मक समाज में एक औरत का आगे निकलना अपने आप में मिसाल है. अपने समाज में पितृसत्ता चाहे कितनी ही मज़बूत जड़ें बना कर रखे, महिलाएं समय-समय पर उन्हें उखाड़कर कर अपनी काबिलियत के बीज बोती रहती हैं. ऐसी ही एक महिला हैं, भारत और एशिया की पहली महिला डीज़ल इंजन ड्राइवर मुमताज़ काज़ी.

मुमताज़ को इस साल महिला दिवस पर राष्ट्रपति की तरफ़ से नारी शक्ति पुरुस्कार मिल चुका है. ये अवॉर्ड पाने वाली वो देश की 7 प्रभावशाली महिलाओं में से एक हैं.

मुमताज़ 20 साल की उम्र से ही मुम्बई में लोकल चला रही हैं और पूरी तरह आदमियों का प्रोफ़ेशन कहे जाने वाले इस पेशे में अपना नाम बनाये हुए हैं. इस वक़्त वो रेलवे के सबसे व्यस्त कॉरिडोर की ज़िम्मेदारी संभाल रही हैं, छत्रपति शिवजी महाराज टर्मिनस, ठाणे.

जितना आसान लग रहा है, उनका सफ़र उतना ही मुश्किल था. वो एक रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखती हैं और ऐसे परिवार में ड्राइवर बनने के उनके फ़ैसले के हर कोई खिलाफ़ था. उनके पिता ख़ुद रेलवे के डिवीज़न ऑफ़िसर थे और उन्हें मुमताज़ का फ़ैसला बिल्कुल पसंद नहीं था. लेकिन मुमताज़ ने किसी तरह उन्हें मना लिया.

साल 1995 में मुमताज़ की ख्याति भारत में फ़ैल गयी, जब पहली महिला लोकोमोटिव ड्राइवर के लिए उनका नाम LIMCA बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में दर्ज हुआ. उसके 10 साल बाद उनकी सेवाओं के लिए रेलवे ने उन्हें रेलवे जनरल मैनेजर अवॉर्ड से भी नवाज़ा.

मुमताज़ उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं, जो हज़ारों मुश्किलों को झेल कर आगे बढ़ने और समाज में औरतों का नाम ऊंचा करने का सपना देखती हैं.