कचरा और उसका निपटारा कैसे करना है, ये देश के हर छोटे-बड़े शहर की सबसे बड़ी समस्या है. यकीन न हो तो अपने शहर के किसी बिल्डिंग की तरह लगातार बढ़ते बदबूदार डंपिग यॉर्ड को एक बार देख लीजिएगा, सब समझ आ जाएगा. इसका एक नमुना ये रहा. वो जगह कुछ ऐसी दिखाई देगी.

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है न समस्या कितनी विकराल, लेकिन इससे निपटने के लिए भी हौसला भी इतना ही बड़ा होना चाहिए. ऐसे ही हौसले की मिसाल पेश की है इंदौर के निगमायुक्त आशीष सिंह ने. इन्होंने मात्र 6 महीने में अपने शहर से 13 लाख मेट्रिक टन वाले कचरे के पहाड़ को ख़त्म कर दिया है. अब वहां इंदौर नगर निगम एक गोल्फ़ कोर्स बनाने की तैयारी कर रहा है.

ये काम इन्होंने बहुत ही किफ़ायती तरीके से किया है. जहां पहले इस काम के लिए दो साल का समय और 65 करोड़ रुपये लगने वाले थे, उस काम को आशीष सिंह ने 10 करोड़ से भी कम रुपये में कर दिखाया है.

दरअसल, साल 2018 में इंदौर ने स्वच्छता सर्वेक्षण में देश का क्लीनस्ट शहर का ख़िताब हासिल किया था. लेकिन इंदौर के 100 एकड़ में फैले डंपिग यॉर्ड की बदबू और रह-रहकर उसमें लगने वाली आग ने लोगों की नाक में दम कर रखा था.

इस समस्या का हल इंदौर नगर निगम ने इस डंपिंग ग्राउंड को ख़त्म करने के रूप में निकाला. प्लान बना लिया गया और काम भी शुरू हो गया, लेकिन इस परियोजना की रफ़्तार बहुत ही धीमी थी और ख़र्च भी 65 करोड़ रुपये था. इसे ध्यान में रखते हुए नगर निगम के कमिश्नर आशीष सिंह ने इस प्रोजेक्ट की कमान अपने हाथों में ली. 

उन्होंने इस बारे में बात करते हुए कहा- साल 2018 में जब मुझे इस नगर निगम का कमिश्नर नियुक्त किया गया था, तब इस डंपिंग यार्ड का कचरा 13 लाख मिट्रिक टन था. Indore Municipal Corporation(IMC) पिछले दो साल में बस 2 लाख मेट्रिक टन कचरा ही साफ़ कर पाया था. यानि कि हालत बहुत ख़राब थी. इसलिए मैंने Bio-remediation टेक्नीक अपनाने का फ़ैसला किया.

इस तकनीक में कचरे में मौजूद कंकड़-पत्थर, पॉलीथीन, रबड़, कपड़ा, मिट्टी, धातू जैसी चीज़ों को अलग कर रिसाइकिल कर लिया जाता है. पॉलीथीन और धातू को IMC रिसाइकिल सेंटर में भेज दिया. कंकड़ और पत्थर से शहर की कंस्ट्रक्शन साइट और गड्ढों को भरने में इस्तेमाल किया गया. बाकी बची मिट्टी को इसी डंपिंग यार्ड में छोड़ दिया.

अब ये डंपिंग यार्ड एक मैदान की तरह नज़र आता है, जिसमें IMC पेड़-पौधे लगा रही है. आज के हिसाब से इस ज़मीन की कीमत 400 करोड़ रुपये है. रिसाइकिल की गई धातू से इन्होंने यहां एक स्टैच्यू भी लगवाया है. साथ ही इसे एक गोल्फ़ कोर्स में तब्दील करने के लिए IMC कॉन्ट्रैक्टर की तलाश कर रही है.

आईएएस ऑफ़िसर आशीष सिंह सरकारी ओहदे पर बैठे हर उस शख़्स के लिए मिसाल हैं, जो सोचते हैं कि उनके करने से क्या होगा. होगा सब कुछ होगा बस एक बार आप ठान तो लीजिए.