जूडो चैंपियन और स्वर्ण पदक विजेता जानकी गौड़ पर ये शायरी बिल्कुल फ़िट बैठती है. जानकी के बारे में बात करने के लिए बहुत कुछ है, लेकिन पहले एक बार ज़रा मध्यप्रदेश के इन आकड़ों पर नज़र डालते हैं. रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में 4,882 में से 38,947 मामले बलात्कार के दर्ज किये गए थे. अब तक का रिकॉर्ड यही कहता है कि इस शहर में लड़कियां बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं हैं.

ऐसे में ख़ुद और दूसरी लड़कियों को अपनी रक्षा करने की सीख देने का ज़िम्मा उठाया जानकी गौड़ ने. आश्चर्य की बात ये है कि जानकी आंखों से देख नहीं सकती, इसके बावजूद वो 2017 में नेशनल ब्लाइंड एंड डेफ़ जूडो चैंपियन की विजेता बनी. उज़्बेकिस्तान में आयोजित हुई International Blind Sports Federation प्रतियोगिता में वो तीसरे स्थान पर रहीं, जो कि बेहद कमाल की बात है.

करीब 5 वर्ष की उम्र में Measles नाम के वायरस से ग्रसित होने के कारण जानकी की आंखों की रौशनी चली गई थी. इसके बाद उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी समस्या उसका दिव्यांग होना नहीं था, बल्कि सवाल ये था कि जिस शहर में आये दिन लड़कियों का रेप होता रहता है, वहां वो ख़ुद को सुरक्षित कैसे रखेगी. घर से बाहर कदम रखते ही वो ख़ुद को असुरक्षित महसूस करती थी. इस दौरान Sightsavers नामक ग़ैर-सरकारी संस्था ने लड़कियों को आत्मरक्षा की ट्रेनिंग देने की पहल की और 2010 के कार्यक्रम में उन्होंने जानकी से सपंर्क किया.

CNN को दिए इंटरव्यू में प्रोग्राम की मैनेजर जयश्री कुमार ने बताया, क्षेत्र में रहने वाली दिव्यांग लड़कियों के मन में ख़ुद की सुरक्षा को लेकर इतना डर था कि वो घर से बाहर निकलने में डरती थी. इसीलिए हमनें सेल्फ़ डिफ़ेंस और जूडो का प्रशिक्षण देना शुरू किया. ताकि वो बिना डरे ख़ुद की रक्षा कर सकें.

वहीं इस मामले पर जानकी का कहना है कि मेरे गांव में ब्लाइंडनेस के कारण मुझे कभी कोई दिक्कत नहीं हुई, बल्कि दिक्कत ये थी कई बार घर से बाहर निकलते वक़्त मेरे साथ कोई नहीं होता था, तो कई लोग मौके का फ़ायदा उठा कर चले जाते थे और अफ़सोस मैं उन्हें पहचान भी नहीं सकती थी, लेकिन जूडो ने मेरी ज़िंदगी बदल दी.

एक वक़्त था जब जानकी बेहद शर्मीली और कम बोलने वाली लड़की थी. वहीं आज एक दौर ऐसा है जब वो न सिर्फ़ क्षेत्र की Unofficial प्रवक्ता है , बल्कि दूसरों को जूडो का प्रशिक्षण भी देती है.