अक्सर कुछ घाव ऐसे होते हैं जो हमारी ज़िन्दगी पर गहरी छाप छोड़ जाते हैं. ग्रोपिंग, इव टीज़िंग की घटनाएं किसी सर्वाइवर के ज़हन में बैठ जाती है, ये उसकी बहादुरी है कि वो अगले दिन फिर से अपने लिए उठ खड़ी होती है और तमाम मुश्किलों का सामना करने को तैयार रहती है.
New Indian Express की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऊषा को तनाव और अवसाद से निकलने में पूरे 2 साल लग गए. इसके बाद ऊषा ने सभी संभावित रेपिस्ट, मोलेस्टर को सबक सिखाने का निर्णय लिया. ऊषा ने रेड ब्रिगेड शुरू किया और 15 लड़कियों की आर्मी तैयार की. ये लड़कियां भी ऊषा की तरह ही सेक्शुअल हैरेसमेंट सर्वाइवर थीं. ये लड़कियां लाल और काले रंग के कपड़े पहनतीं हैं, ख़तरे और विरोध का रंग.
मेरा मिशन है कि मैं महिलाओं के लिए एक ऐसा समाज बनाऊं जहां उन्हें डर-डर के न जीना पड़े. मैं उन्हें आत्मरक्षा सिखाकर सशक्त कर रही हूं. मैं ज़्यादा से ज़्यादा लड़कियों तक पहुंचना चाहती हूं.
-उषा विश्वकर्मा
डोनेशन पर चल रही रेड ब्रिगेड ने अब तक पूरे देश में 1.57 लाख लड़कियों को संभावित ख़तरों से लड़ने की ट्रेनिंग दी है.
हम जब भी मार्शल आर्ट्स या सेल्फ़ डिफ़ेंस तकनीक, पब्लिक में करते तो पुरुष हमेशा टिका-टिप्पणी करते थे. ऐसे ही एक दिन एक लड़के ने कहा वो देखो पावरफ़ुल रेड ब्रिगेड जा रही है. बस वहीं से नाम भी आ गया.
-उषा विश्वकर्मा
रेड ब्रिगेड ने सरवाइवर्स की आपबीती सुनकर ख़ुद से 15-20 आत्मरक्षा के तरीके इजात किये हैं.
ऊषा की कहानी हम सब के लिए प्रेरणा है.