अक्सर कुछ घाव ऐसे होते हैं जो हमारी ज़िन्दगी पर गहरी छाप छोड़ जाते हैं. ग्रोपिंग, इव टीज़िंग की घटनाएं किसी सर्वाइवर के ज़हन में बैठ जाती है, ये उसकी बहादुरी है कि वो अगले दिन फिर से अपने लिए उठ खड़ी होती है और तमाम मुश्किलों का सामना करने को तैयार रहती है. 

उषा विश्वकर्मा 18 साल की थी जब उसके एक सहकर्मी ने उसके साथ रेप करने की कोशिश की. 2010 में ऊषा झुग्गी के बच्चों को पढ़ाती थीं और वहीं उनके साथ ये घटना घटी. 

Forbes India

New Indian Express की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऊषा को तनाव और अवसाद से निकलने में पूरे 2 साल लग गए. इसके बाद ऊषा ने सभी संभावित रेपिस्ट, मोलेस्टर को सबक सिखाने का निर्णय लिया. ऊषा ने रेड ब्रिगेड शुरू किया और 15 लड़कियों की आर्मी तैयार की. ये लड़कियां भी ऊषा की तरह ही सेक्शुअल हैरेसमेंट सर्वाइवर थीं. ये लड़कियां लाल और काले रंग के कपड़े पहनतीं हैं, ख़तरे और विरोध का रंग. 

रेड ब्रिगेड एक गै़र-सरकारी संस्थान है जिसमें अब 100 लड़कियां हैं. रेड ब्रिगेड स्कूलों में जाकर लड़कियों को आत्मरक्षा की ट्रेनिंग देते हैं. 

मेरा मिशन है कि मैं महिलाओं के लिए एक ऐसा समाज बनाऊं जहां उन्हें डर-डर के न जीना पड़े. मैं उन्हें आत्मरक्षा सिखाकर सशक्त कर रही हूं. मैं ज़्यादा से ज़्यादा लड़कियों तक पहुंचना चाहती हूं. 

-उषा विश्वकर्मा

New Indian Express

डोनेशन पर चल रही रेड ब्रिगेड ने अब तक पूरे देश में 1.57 लाख लड़कियों को संभावित ख़तरों से लड़ने की ट्रेनिंग दी है.

ऊषा ने रेड ब्रिगेड नाम कैसे आया, इस पर भी एक क़िस्सा साझा किया.  

हम जब भी मार्शल आर्ट्स या सेल्फ़ डिफ़ेंस तकनीक, पब्लिक में करते तो पुरुष हमेशा टिका-टिप्पणी करते थे. ऐसे ही एक दिन एक लड़के ने कहा वो देखो पावरफ़ुल रेड ब्रिगेड जा रही है. बस वहीं से नाम भी आ गया. 

-उषा विश्वकर्मा

The Better India

रेड ब्रिगेड ने सरवाइवर्स की आपबीती सुनकर ख़ुद से 15-20 आत्मरक्षा के तरीके इजात किये हैं.

ऊषा लड़कियों को संभावित ख़तरों से अवगत करवाने के लिए जागरूकता कैंप लगाती हैं, स्ट्रीट प्ले करवाती हैं. ऊषा क़ानूनी लड़ाई लड़ने के लिए भी महिलाओं की सहायता करती हैं.  

Hindustan Times

ऊषा की कहानी हम सब के लिए प्रेरणा है.