इंसान के हालात उसकी कमज़ोरी नहीं होते. 

इस बात को सिद्ध कर दिखाया है देश की गोल्डन गर्ल हिमा दास ने. पढ़ें उनके जीवन संघर्ष की कहानी. 

मेरे माता-पिता चावल की खेती करते थे. उनके कुछ सपने थे जिनको वो अपनी हालात के चक्कर में पूरा नहीं कर सकते थे. हम एक जॉइन्ट फ़ैमिली में रहते थे और हमारे पास कभी पर्याप्त रुपये नहीं होते थे. मगर मेरे माता-पिता ने मुझे, हमेशा जो है उसका सर्वश्रष्ठ इस्तेमाल करना सिखाया है. 
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एक बच्चे के रूप में, मुझे स्पोर्ट्स बहुत पसंद था ख़ासकर फुटबॉल. मेरे पिताजी खेलते थे लेकिन पैसे की कमी के कारण उन्होंने खेलना बंद कर दिया. लेकिन वो मुझे खेलने में मदद करना चाहते थे. मैं जूते नहीं खरीद सकती थी और अभ्यास करने के लिए मैदान भी नहीं था, इसलिए मैं खेतों में अभ्यास करती थी.  एक बार मेरे P.E. टीचर ने मुझे खेलते देखा और वो मेरे खेलने से काफ़ी प्रभावित हो गए. वो तुरंत मेरे पास आए और मुझे इंटर-डिस्ट्रिक्ट एथलेटिक्स प्रतियोगिता में भाग लेने को कहा. मैं अपने आर्थिक हालतों की वजह से घबरा गई थी. मगर, मैंने वो प्रतियोगिता जीत ली थी!  वहां से, दो कोचों ने सोचा कि मेरे पास क्षमता है, उन्होंने मुझे असम में अपने शिविर में शामिल होने के लिए कहा. मैं 17 साल की थी और मुझे नहीं पता था की मैं अकेले सब संभाल पाउंगी या नहीं. लेकिन मेरे पिता ने बोला कि ये छोटे बदलाव मुझे मेरा लक्ष्य पाने में मदद करेंगे और एक दिन मैं अगर अपने देश का प्रतिनिधित्व करूंगी तो ये सारी कठनाइयां फल दायक होंगी.   मैं शिविर में गई और मेरी दिनचर्या बहुत कठोर थी. मैं सुबह सूरज उगने से पहले उठती थी और थोड़ी देर के लिए ट्रेनिंग करती थी, शाम को फिर से प्रशिक्षण करती थी. मुझे घर और आराम दोनों की याद आती थी लेकिन मैं लगी रहती थी. 
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मेरी सारी मेहनत रंग ला रही थी. मैं एशियन यूथ चैम्पियनशिप में क्वालीफाई कर लिया था जहां मैं 7 वीं और वर्ल्ड यूथ चैम्पियनशिप में 5वें स्थान पर आई थी. मैं अकेले यात्रा कर रही थी पूरी दुनिया में और ये असली था! मैं बाधाओं को पार कर रही थी और लक्ष्य हासिल कर रही थी. मैंने IAAF वर्ल्ड U20 चैंपियनशिप में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया था जहां मैं स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय थी. जीवन बहुत तेज़ी से बदल रहा था. मुझे आज भी याद है, जब मैं कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत का प्रतिनिधित्व कर रही थी तब मैंने ये बात बताने के लिए अपने माता-पिता को फ़ोन लगाया था. वे नहीं जानते थे कि ये क्या है लेकिन वे मुझे T.V पर देखने के लिए बहुत उत्साहित और ख़ुश थे! 
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आज मुझे राष्ट्रपति द्वारा अर्जुन पुरस्कार मिला है. मैंने भारत के लिए पदक जीते हैं और लाखों लोगों का कहना है कि उन्हें मुझ पर गर्व है! कभी-कभी जब आपके मन में कुछ कर दिखाने का जुनून होता है, पहाड़ की चोटी पर चढ़ने की इच्छा शक्ति होती है तो ये मायने नहीं रखता कि आपके पास क्या और कौन है आपकी मदद के लिए. ये मायने रखता है कि आप कितने तैयार और दृढ़ हैं. आप ख़ुद पर कितना विश्वास करते हैं. क्योंकि अगर और कुछ नहीं तो आपकी उम्मीद एक ऐसी चीज़ है जो आपको हमेशा कोई न कोई रास्ता दिखा ही देगी. 

हिमा दास ने 19 दिन में 5 गोल्ड मेडल जीते थे.