सपने हर कोई देख लेता है पर उन्हें पूरा करने की हिम्मत सब में नहीं होती है. गोल्डन गर्ल स्वप्ना बर्मन की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. ग़रीबी से जूझते हुए भी स्वप्ना ने कभी भी अपने सपनों को मरने नहीं दिया, बल्कि दोगुनी मेहनत और हिम्मत से उनको हासिल किया. 

स्वप्ना पश्चिम बंगाल के बेहद ग़रीब परिवार से आती हैं. 

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मेरे पिता एक रिक्शा चालक थे और मां दूसरों के घरों में काम करती थी. हम चार बच्चे हैं, समय कठिन था लेकिन हमने लड़ना सीख लिया था. मैं दोनों पैरों में छः उंगलियों के साथ जन्मी थी जिसकी वजह से ज़्यादा देर तक दौड़ने और चलने के बाद मुझे बहुत दर्द होने लगता था. इन सब चीज़ों के बावजूद, मेरे माता-पिता मुझे हमेशा कहते थे कि मैं कुछ भी कर सकती हूं. मगर जब मैं स्कूल थी, मेरे पिता को दिल का दौरा पड़ा जिसकी वजह से उनको हमेशा के लिए लक़वा मार गया. मेरी मां ने हमारा ध्यान रखने के लिए नौकरी छोड़ दी और मेरे भाइयों ने कॉलेज छोड़ छोटी-मोटी नौकरियां पकड़ लीं. अगर वो लोग एक भी दिन काम पर नहीं जाते थे तो उस दिन हमारे पास खाने को कुछ भी नहीं होता था और हमें पानी पीकर अपनी भूख मिटानी पड़ती थी. 
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जिस एक चीज़ ने मुझे इन तमाम हालात के बाद भी प्रेरित किया वो थी मेरी मां. वो मुझसे कहती थीं कि इन सब चीज़ों का असर वो मेरे भविष्य पर नहीं पड़ने देंगी. मेरी हमेशा से ही स्पोर्ट्स के प्रति रुचि रही है. पैरों में छः उंगलियां होने के बावजूद मैंने खेलों में अपनी रुचि कभी नहीं छोड़ी. में निरंतर स्कूल में स्पोर्ट्स खेलती थी और एक स्थानीय क्लब में भी चुनी गई थी. हर खिलाड़ी की तरह मैं भी अपने वतन, भारत का प्रतिनिधित्व अंतराष्ट्रीय स्तर पर करना चाहती थी. मैं जब भी Heptathlon(एक स्पोर्ट्स जो सात विभिन्न खेलों से मिल संयुक्त इवेंट प्रतियोगिता होती है.) ट्रायआउट्स के लिए जाती थी तो मुझे अस्वीकार कर दिया जाता था क्योंकि मैं बहुत छोटी होती थी या बहुत मोटी. मगर मैं टूटी नहीं, मेरे परिवार को मुझ पर पूरा विश्वास था और यही मेरे लिए सबसे मायने रखता है. 
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आख़िरकार स्वप्ना के हौसले और प्रतिभा के सामने मुसीबतों ने अपने घुटने टेक दिए. वो दिन आ गया जब स्वप्ना ने इंडोनेशिया के जकार्ता में जारी 18वें एशियाई खेलों की हेप्टाथलन स्पर्धा में स्वर्ण पदक अपने नाम किया. वे इस स्पर्धा में स्वर्ण जीतने वाली भारत की पहली महिला खिलाड़ी बनीं. 

लोग मुझे पहचानने लगे, बच्चों ने मुझे बताना शुरू कर दिया कि मैं उनकी ‘आइडल’ हूं और लोग मेरे साथ फ़ोटो खिंचवाने लगे. 
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“ये एक आसान यात्रा नहीं रही है – मैंने अपने जीवन में चढ़ाव से ज़्यादा गिरावट देखी है. लेकिन हर ख़ामी, हर कठिनाई ने मुझे आज यहां तक पहुंचाया है. कभी-कभी मुझे विश्वास नहीं होता कि मैंने कर दिखाया, कि मैंने अपना सपना साकार कर लिया और मेरे माता-पिता का सपना सच हो गया है. मैंने इतिहास रचा है और मुझे ‘किसी’ व्यक्ति विशेष के रूप में याद किया जाएगा.” 

स्वप्ना बर्मन उत्तरी बंगाल के जलपाईगुड़ी शहर की रहने वाली है. स्वप्ना ने 7 स्पर्धाओं में कुल 6026 अंकों के साथ पहला स्थान हासिल किया था.