परेशानियां और कठनाइयां जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते है. मुश्किलें हमें हमेशा कुछ सिखा कर और एक बेहतर इंसान बनाती हैं. मगर सबसे ज़रूरी ये है कि हम उन परेशानियों के आगे हार न माने.   

कुछ लोगों के जीवन में काम मुश्किलें होतीं हैं तो कुछ की में ज़्यादा. 

ज़रा सोचिये उस बच्चे का जीवन कैसा होगा जिसे अनाथ की तरह रहने पर मज़बूर कर दिया जाए. 

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जब मैं 9 साल की थी मुझे याद है मेरे पापा मुझे अनाथालय में छोड़ आए थ. उन्होंने अनाथालय में झूठ बोला था कि मेरी कोई मां नहीं है. वो एक छोटे किसान थे और हमारे पास कोई ख़ास ज़मीन भी नहीं थी. वो इस स्थिति में नहीं थे कि 5 बच्चों को खिला-पीला पाएं इसलिए उन्होंने हमें अनाथालय में डाल दिया था. उन्होंने मुझसे बोला कि में भूल जाऊं कि मेरी कोई मां भी है. मैं बहुत छोटी थी, ये समझने के लिए कि इन सब बात का क्या मतलब है मगर मैं परेशान थी. मेरे पास कोई भी बात करने को नहीं था, तो मैं अपना सारा गुस्सा और नाराज़गी अपने अंदर रखती थी. स्कूल में मैं बच्चों को अपने माता-पिता के साथ अचे से तैयार हुए आया देखा करती थी. मेरे पास न तो ढंग का स्कूल बैग था न ही जूते-चप्पल. मैं एक क़ामयाब इंसान बनने का सपना देखा करती थी और सोचा करती थी कि अपने लिए सामान खरीदूंगी.

ज्योति को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब उसके पिता ने उसकी शादी करवा दी. मगर ज्योति फ़िर भी हार न मानी. 

मगर मेरे पिता ने 16 साल की उम्र में मुझसे 10 साल बड़े एक किसान से शादी करवा कर मेरे सारे सपने तबाह कर दिए. उस समय कुछ भी नहीं पता था. दो सालों में मेरे दो बच्चे हो गए. मेरे पति हम सबको नहीं खिला पा रहे थे तो मैं भी काम करती थी. मैंने 9 महीनों की गर्भावस्था के दौरान भी काम किया था. जब भी मैं खेतों में काम करने के लिए झुकती तो मेरा पेट दर्द होने लगता था. मैं बैठ जाती, रोती लेकिन फिर से काम पर लग जाती. मैं दूध खरीदने के लिए अपने बहनोई की शराब की बोतलें बेचती थी. कुछ साल बाद, मैंने ख़ुद को मारने की कोशिश की लेकिन मैंने अपने बच्चों को देखा और महसूस किया कि मैं मर नहीं सकती और उन्हें अनाथों के रूप में बड़े होने के लिए नहीं छोड़ सकती. मुझे काम करने की ज़रूरत थी.मुझे दूसरे शहर में नौकरी मिली और मैं अपने बच्चों के साथ बाहर चली गई. मैंने एक ओपन यूनिवर्सिटी में अपनी शिक्षा को फ़िर से शुरू की. इस पूरे दौरान चीजें मुश्किल थीं लेकिन मेरे पास कोई विकल्प नहीं था. मृत्यु भी नहीं. मुझे जीवित रहने की ज़रूरत थी और मैं इसके लिए कुछ भी करने को तैयार थी.मैं अपने US के एक रिश्तेदार से मिली और वहां जाने और दुनिया घूमने के लिए प्रेरित हुई. मैंने पासपोर्ट और वीज़ा प्राप्त करने की कोशिश में एक साल बिता दिया. आख़िर मैं USA पहुंच गई. लेकिन पहुंचने पर चीजें केवल बदतर हो गईं. मुझे गुजराती परिवार में पेइंग गेस्ट के रूप में रहना पड़ा.
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गैस स्टेशनों पर काम करने से लेकर बेबी सिट तक ज्योति ने हर छोटा-बड़ा काम किया. मगर इन सभी के साथ ये एक नए सुबह की भी शुरुआत थी. ज्योति के व्यवसायी बनने के सपने की शुरुआत. 

जब मैं एक बार मेक्सिको गई तो मुझे एहसास हुआ कि मुझे एक कंसल्टिंग कंपनी खोल लेनी चाहिए क्योंकि मैं वीज़ा वर्क में लगने वाले पेपर वर्क से वाखिफ़ थी. $ 40,000 की मेरी बचत के साथ, मैंने 2001 के अक्टूबर में फ़ीनिक्स में एक ऑफ़िस शुरू किया. जल्द ही, मेरी बेटियां भी अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए अमेरिका चली गईं. 

अब आज जब ज्योति पीछे मुड़ कर देखती हैं तो उन्हें ख़ुद पर गर्व होता है. 

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जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं तो मुझे गर्व होता है कि मैंने अपने भीतर की नकारात्मकता के आगे हारी नहीं बल्कि ख़ुद के लिए खड़ी हुई. जब भी मैं भारत आती हूं मैं वृद्धाश्रम, अनाथालयों में जाती हूं और उनकी मदद करने की कोशिश करता हूं. मैं अपनी आने वाली पीढ़ियों को सशक्त बनाने के लिए शिक्षण संस्थानों का भी दौरा करती हूं. आज, गाँव के बहुत सारे बच्चे मेरे बारे में पढ़ते हैं और जानना चाहते हैं कि ये जीवित व्यक्ति कौन है. मैं गर्व के साथ कह सकती हूं कि मैंने एक बच्चे के रूप में जो सपना देखा था, उससे कहीं अधिक हासिल किया है और इससे ज़्यादा बेहतर भावना नहीं हो सकती.

आज ज्योति एक क़ामयाब व्यवसायी हैं.