भारत विरोधाभासों (कंट्राडिक्शन्स/contradictions) की धरती है. ये विरोधाभास हालांकि सामाजिक और आर्थिक हालातों में नज़र आते हैं, मगर इसके लिए हमारा “चलता है” वाला ग़लत रवैया भी जिम्मेदार है. हम बुराइयों का खात्मा तो चाहते हैं, मगर ये भी चाहते हैं कि इन्हें खत्म करने के लिए कोई बाहर से आएगा. ये भारत की विडम्बना नहीं तो फिर क्या है? ऐसी बहुत-सी बातें हमें अंदर से खोखला कर रही हैं—

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इस सबके बावजूद यदि हम कहते हैं कि “मेरा भारत महान” तो हमें एक बार विचार करना चाहिए और भारत को महान बनाने के बारे में सोचना चाहिए.

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