मर्दों के इस समाज में करुणा नंदी वो नाम है, जिसने महिला सशक्तिकरण के परचम को ऊंचा लहराया है. सिर्फ़ समाज ही क्यों, अपने पेशे में भी उनकी दखल को क्रांतिकारी माना जाना चाहिए.

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Femina को दिए इंटरव्यु में करुणा नंदी कहती हैं कि ‘इस समाज में जहां बेहिसाब ग़रीबी और रइसी एक साथ मौजूद है, मैं बहुत जल्द ही समझ गई थी कि सबको एक जैसी ज़िंदगी नहीं मिलती.

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नंदी को समाज के लिए कुछ करने का जज़्बा अपने माता-पिता से मिलता है. उनके पिता Harvard Medical School में काम करते थे, लेकिन उन्होने भारत के AIIMS में काम करने के लिए Harvard को छोड़ दिया, उनकी मां भी उत्तर भारत में सामाजिक कार्य से जुड़ी हुई हैं.

दिल्ली विश्वविद्यालय के St. Stephen’s College से अर्थशास्त्र में स्नातक करने के बाद करुणा ने कुछ समय के लिए पत्रकारिता को चुना, लेकिन जल्द ही क़ानून की पढ़ाई के लिए Cambridge University चली गईं. उसके बाद आगे उन्होंने एल.एल.एम की डिग्री न्यूयॉर्क के Columbia University से पूरी की.

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वकील के रूप में करुणा नंदी संयुक्त राष्ट्र में भी कार्य कर चुकी हैं. वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करती हैं. उनकी विशेषज्ञता संविधान, महिलाओं के मुद्दे, निजता और मीडिया जैसे विषयों पर है. उन्होंने दिल्ली का ‘निर्भया रेप केस’ लड़ा था. भोपाल गैस त्रासदी की पैरवी भी करुणा नंदी ही कर रही हैं. इसके अलावा अमित शाह के बेटे जय शाह और मीडिया हाउस, द वायर के बीच चल रहे मानहानी के केस में करुणा ही द वायर की वकील हैं. करुणा नंदी चाहती तो बड़े आराम से इंग्लैंड या अमेरिका में नौकरी कर सकती थी, लेकिन उन्होंने भारत को चुना.

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महिलाओं के मुद्दों पर करुणा ख़ास तौर पर सक्रीय रहती हैं. अन्य वकीलों के साथ मिल कर वो एक मुनादी तैयार कर रही हैं, जिसका नाम Womanifesto रखा गया है. इसमें महिलाओं से जुड़े क़ानून और विषय होंगे. ‘मैरिटल रेप’ को भी इसके अंतर्गत रखा गया है. वर्तमान में जो Anti-Rape Bill 2013 है, वो भी मुख्य रूप से करुणा नंदी की रिपोर्ट के प्रस्तावों पर आधारित है.

इसके अलावा करुना नेपाल, भुटान और पाकिस्तान की सरकारों के साथ संविधान, महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रूपरेखा को तैयार करने के लिए काम कर चुकी हैं.

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काम के वजह से करुणा नंदी को विभिन्न मीडिया हाउस ने अलग-अलग उपाधियां दी हैं. Times Of India के अनुसार, वो देश के तीन प्रमुख व्यक्तियों में से हैं जिन्होंने Feminist Movement की बागडोर संभाल रखी है. Mint के अनुसार, वो ‘Agent Of Change’ हैं. Forbes पत्रिका ने करुणा को ‘Mind That Matters’ बताया है और वो Economic Times के ‘Corporate India’s Fastest Rising Women Leaders’ की सूची में भी आती हैं.

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क्रांति की मशाल ऐसे ही जलाती रहो करुणा! 

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