Malgudi Days Town: एक लेखक अपने शब्दों और कल्पना के समंदर में डूबकर क्या लिख दे और क्या बना दे कोई नहीं कह सकता? उसकी कल्पना इतनी सच्ची होती है कि पढ़ने वालों को वो हक़ीक़त लगती है और उसपर विश्वास न करना संभव ही नहीं होता है. ऐसा ही कुछ हुआ था महान लेखक आर. के. नायारयण (R. K. Narayan) के मालगुडी के साथ. दरअसल, उन्होंने अपने हर उपन्यास में मालगुडी कस्बे पर आधारित कहानी लिखी, जिससे पढ़ने वालों को उस कस्बे में जाने का मन होने लगा. इस कस्बे को ढूंढने शिकागो विश्वविद्यालय की टीम भी आई, मगर उन्हें कुछ नहीं मिला.

Malgudi Days Town
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आर.के. नारायण ने सबसे पहला उपन्यास 1935 में मद्रास में लिखा था, जिसका नाम ‘स्वामी एंड फ़्रेंड्स’ था और यहीं से हुई थी मालगुडी कस्बे की रचना. इस उपन्यास को उन्होंने अपने दोस्तों के पास लंदन भेजा ताकि वो पढ़ें और अपनी राय दें. दोस्त उपन्यास को कई प्रकाशकों के पास ले गए, लेकिन किसी ने भी इसमें रोचकता नहीं दिखाई क्योंकि उन्हें कहानी ही नहीं समझ आई तब उनके दोस्तों ने कहा कि, इसे टेम्स में डुबो दो. किसी तरह से उनके दोस्त आर.के. नारायण के उपन्यास को लेकर प्रसिद्ध लेखक ग्राहम ग्रीन तक पहुंचे. ग्राहम ग्रीन ने इसे पढ़ा और उन्हें ये लिपि बहुत पसंद आई फिर ये प्रकाशित हुआ देश से लेकर विदेश तक ख़ूब पढ़ा गया. इस उपन्यास से मालगुडी का जो सफ़र हुआ वो हर उपन्यास तक पहुंचा.

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इसके बाद, आर के नारायण ने बहुत सारी कहानियां लिखी, लेकिन सबमें मालगुडी कस्बा ही रहा, इस कस्बे को लोगों के दिमाग़ में इस कदर बसा दिया कि लोग वहां जाने कि सोचने लगे. इस कस्बे ने सिर्फ़ कहानियों को नहीं गढ़ा, बल्कि सामाजिक बदलाव में भी अपना गहरा योगदान दिया. मालुगडी डेज़ तो याद ही होगा, जिसे 1980 में दूरदर्शन पर प्रसारित किया गया था. इस कार्यक्रम ने लोगों के बीच ख़ास पहचान बनाई थी. COVID के दौरान भी मालगुड़ी डेज़ कार्यक्रम दूरदर्शन पर दोबारा प्रसारित किया गया था, जिसने कोविड के टाइम मरहम का काम किया था.

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इनके उपन्यासों को पूरी दुनिया में ख्याति मिली और लोगों के मन में एक ही सवाल और इच्छा जागी कि आख़िर ये मालगुडी कस्बा है कहां? इसका जवाब सिर्फ़ आर. के. नारायण के पास था क्योंकि ये कस्बा उनकी कल्पना में किसी मैप पर नहीं. इस बात का खुलासा उन्होंने Malgudi Days के Introduction में किया है, The Better India के अनुसार,

मुझसे अक्सर पूछा जाता है, ‘मालगुडी कहाँ है?’ मैं केवल इतना कह सकता हूँ कि ये काल्पनिक है और किसी भी मानचित्र पर नहीं पाया जा सकता. मगर University of Chicago Press ने भारत के मानचित्र के साथ एक साहित्यिक एटलस प्रकाशित किया है जिसमें किसी एक जगह को मालगुडी बताया. जबकि कोई पूछे तो मालगुडी को लेकर कुछ भी नहीं कहना चाहूंगा क्योंकि अगर मैं इसे दक्षिण भारत का एक छोटा सा शहर बताऊंगा तो ये आधा सच होगा इसलिए इसकी विशेषताएं यूनिवर्सल है.

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आर. के. नारायण ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था, कि

मालगुडी कस्बे का ख़्याल सबसे पहले 1930 को दशहरे के दिन आया था, एक दिन वो एक रेलवे स्टेशन पर कुछ लाइंस लिख रहे थे. तभी अचानक उन्होंने अपने मन में एक कस्बे की कल्पना की और नाम आया ‘मालगुडी. किसी भी कहानी के लिए एक जगह का होना बहुत ज़रूरी है ताकि लोग उससे ख़ुद को जोड़ पाएं ताकि कहानी के पात्रों को एक भौगोलिक व्यक्तित्व मिल सके.

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आपको बता दें, आर. के. नारायण का पूरा नाम रासीपुरम कृष्णस्वामी अय्यर नारायणस्वामी था. 1930 में इन्होंने लेखन कार्य शुरू किया. इन्हें साहित्य अकैडमी, पद्म विभूषण जैसे सम्मान से नवाजा जा चुका है.