काल करे सो आज न कर, न आज कर, न अब

पल में परलय होनी है, आलस करेगा कब?

The Sun

कलियुग में भी दोहे लिखे जा सकते हैं और सबूत है ये प्रयास. मज़ाक को अलग एक तरफ़ करें, तो कुछ ऐसी ही ज़िन्दगी होती है आलसियों की.

चार्जर का स्विच पैर के अंगूठे से ऑन-ऑफ़ करने की आदत से लेकर जब तक कन्ट्रोल किया जा सके तब तक पेशाब कन्ट्रोल करना, ये सब टैलेंट होता है सिर्फ़ एक आलसी प्राणी में. आसान है क्या आलस करना? प्यास लगी हो पर बोतल न भरना, भूख लगी हो पर खाना न बनाना, मेहनत लगती है आलसी बनने में.

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अब तो वैज्ञानिकों की भी मोहर मिल गई है. एक नयी खोज में पता चला है कि आलस बुद्धिमानी की निशानी है. शोधार्थियों के अनुसार, दिनभर शरीर को थकाने वाले काम-काज करने वाले लोग ‘Non-Thinkers’ की श्रेणी में आते हैं, यानि विचारों से खाली होते हैं. वहीं वो लोग, जो शरीर को कष्ट देने में विश्वास नहीं रखते, उनका दिमाग़ कभी विचारों से खाली नहीं होता.

Journal of Health Psychology में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार,

High IQ वाले लोग काफ़ी जल्दी ऊब जाते हैं. उनके अंदर एक तरह की धुन सवार होती है खु़द को Entertain करने की.
Tenor

रिसर्च में ये भी कहा गया कि Gym जाने वाले या Exercise करने वाले लोगों को अपने दिमाग़ को कार्यरत रखने के लिए निरंतर Physical Work करना होता है.

मतलब Gym जाने वाले लोगों को निरंतर दौड़-भाग करते रहना होगा और सोफ़े पर पड़े रिमोट दबाने वाले अपनी दुनिया में ख़ुश रह सकते हैं, बिना शरीर को थकाए.

Florida Gulf Coast के कुछ छात्रों पर ये शोध किया गया. 30 बच्चों को Thinker और 30 को Non-Thinker की श्रेणी में रखा गया. एक Wrist Device द्वारा 7 दिनों तक इन बच्चों की Physical Activity को मापा गया. नतीजे आये तो पाया गया कि Thinkers श्रेणी के बच्चे, Non-Thinkers से काफ़ी कम Active थे.

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Weekend के वक़्त दोनों श्रेणियों के बच्चों में ज़्यादा अंतर देखने को नहीं मिला.

ये शोध सिर्फ़ 60 छात्रों पर किया गया था. और कुछ हो न हो, अगली बार आपको या आपके जिगरी दोस्त को आलस्य के कारण ताने मिले, तो ये शोध सुबूत के तौर पर पेश ज़रूर कर सकते हो.