भारतीय सेना में वैसे तो एक से बढ़कर एक जांबाज़ ऑफ़िसर हुए हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे निर्भीक नायक के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी वजह से स्वतंत्र भारत का आर्मी चीफ़ अंग्रेज़ नहीं, बल्कि एक भारतीय बना था. 15 जनवरी 1949 को फ़ील्ड मार्शल के. एम. करियप्पा स्वतंत्र भारत के पहले ‘कंमाडर इन चीफ़‘ बने थे. 

लेफ़्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौर आज के दौर में शायद ही कोई इस नाम से वाक़िफ़ हों, लेकिन ब्रिटिश काल में नाथू सिंह राठौर का नाम ही काफ़ी था. पंडित जवाहर लाल नेहरू चाहते थे कि नाथू सिंह राठौर स्वतंत्र भारत के पहले ‘कंमाडर इन चीफ़’ बने, लेकिन नाथू सिंह ने ख़ुद की जगह अपने सीनियर के. एम. करियप्पा के नाम का सुझाव देकर नेहरू को आश्चर्यचकित कर दिया. 

कौन थे नाथू सिंह राठौड़? 

नाथूसिंह राठौड़ का जन्म राजस्थान के डूंगरपुर में हुआ था. वो ब्रिटेन की ‘रॉयल मिलिट्री एकेडमी सेंडहर्स्ट’ से पास आउट होने वाले दूसरे भारतीय जनरल थे. जनरल राठौड़ सन 1922 में भारतीय सेना में शामिल हो गये. सन 1943 में वो अपनी क़ाबिलियत के दम पर प्रमोशन के बाद लेफ़्टिनेंट कर्नल बन गए.

कौन थे नाथू सिंह राठौड़? 

नाथूसिंह राठौड़ का जन्म राजस्थान के डूंगरपुर में हुआ था. वो ब्रिटेन की ‘रॉयल मिलिट्री एकेडमी सेंडहर्स्ट’ से पास आउट होने वाले दूसरे भारतीय जनरल थे. जनरल राठौड़ सन 1922 में भारतीय सेना में शामिल हो गये. सन 1943 में वो अपनी क़ाबिलियत के दम पर प्रमोशन के बाद लेफ़्टिनेंट कर्नल बन गए.

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इस दौरान नाथू सिंह राठौड़ ने जनरल टाइगर कारटिस के सामने अपनी योग्यता साबित करने के लिए एक ऐसी ड्रिल पेश की जिससे जनरल कारटिस न केवल प्रभावित हुए बल्कि अपने से जूनियर कर्नल राठौड़ को सैल्यूट भी किया. नाथू सिंह राठौड़ के लिए ये गर्व की बात थी क्योंकि जनरल कारटिस मुश्किल से ही किस से प्रभावित होते थे. इसके बाद जनरल टाइगर कारटिस ने न केवल उन्हें बल्कि उनकी बटालियन को भी युद्ध के लिए योग्य घोषित कर दिया. 

देश की आज़ादी के बाद प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने नेताओं और उच्च सेनाधिकरियों की एक विशेष बैठक के दौरान कहा कि हमारी सेना के अध्यक्ष पद के लिए हमारे पार अधिक विकल्प नहीं हैं. ऐसे में भारतीय सेना का अध्यक्ष किसी ब्रिटीसर्स को बनाना अनुभव की दृष्टि से उचित होगा। इस दौरान सभी लोगों ने उनका समर्थन किया, लेकिन इस बैठक में एक शख़्स ऐसा भी था जिसने उनकी बात का खंडन किया. वो लेफ़्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौर थे. 

इस दौरान लेफ़्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौर पंडित नेहरू की बात पर निर्भीकता के साथ आपत्ति जताते हुए कहा कि- 

सर ,मेरे पास कहने को कुछ है. हम अभी-अभी आज़ाद हुए हैं, हमारे पास देश चलाने का भी अनुभव नहीं है तो क्या किसी ब्रिटिश को प्रधानमंत्री बना दें? पंडित नेहरू ये सुन हैरान रह गए. इस पर नेहरू ने कहा तो तुम कंमाडर इन चीफ़ बन जाओ. इस पर नाथूसिंह राठौड़ ने एक और गरिमामय मिसाल पेश करते हुए कहा सर हमारे पास एक नहीं अनेक प्रतिभाशाली अफ़सर हैं और लगे हाथ उन्होंने अपने सीनियर जनरल के. एम. करियप्पा का नाम सामने रख दिया. 
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पंडित जवाहर लाल नेहरू, फ़ील्ड मार्शल के. एम. करियप्पा, लेफ़्टिनेंट जनरल नाथूसिंह राठौड़

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पूर्व भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने अपनी किताब ‘लीडरशिप इन इंडियन आर्मी’ में लिखा कि लेफ़्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौर को भारतीय सेना के उनके साथी ‘फ़ौजी गांधी’ कहा करते थे. 

आख़िरकार 15 मई 1974 को भारत मां का ये वीर सपूत इस दुनिया से रुख़सत हो चला.  

पंडित जवाहर लाल नेहरू, फ़ील्ड मार्शल के. एम. करियप्पा, लेफ़्टिनेंट जनरल नाथूसिंह राठौड़

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आख़िरकार 15 मई 1974 को भारत मां का ये वीर सपूत इस दुनिया से रुख़सत हो चला.  

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