नई दिल्ली रेलवे स्टेशन तो आये होंगे आप? भीड़-भाड़, लोगों का आना-जाना, कोई किसी को Drop करने आया है, तो कुछ किसी के इंतज़ार में बैठे हैं. ऐसे ही इंतज़ार में बैठी थी वो. बेहाल, उजड़ी हुई, ख़ुद को बार-बार खुजला रही थी. उसके बारे में जानने की किसी को कोई खास इच्छा नहीं थी क्योंकि वो उस भीड़ का हिस्सा थी, जो ऐसे प्लेटफॉर्म्स पर रोज़ अपना खर्चा-पानी निकालने चले आते हैं.

लेकिन उस पर नज़र पड़ी एक इंसान की. इस इंसान का नाम था नीतीश के.एस. अपने कुछ काम से रेलवे स्टेशन आये नीतीश को इस औरत के बारे में जानने की उत्सुकता ने उसका पता लगवा ही दिया.

जवाब में उसे हमारी “So Called” सोसाइटी का वो चेहरा दिखा, जिसे देखने के बाद किसी का भी दिलो-दिमाग सुन्न हो जाये. लेकिन अगर वो इस जवाब को सिर्फ़ अपने तक रखता, तो शायद इस सच्चाई की चीख उसके कानों में गूंज-गूंज कर उसे बहरा कर देती, उसे अंदर ही अंदर कोसती रहती.

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Hindustan Times

दिल्ली का एक मशहूर इलाका है GB Road जिसकी चर्चा सिर्फ़ रात के अंधेरों और शराब की महफ़िल के वक़्त होती है. वैसे तो इस जगह के कई ‘शालीन’ नाम हैं जैसे कि श्रद्धानंद मार्ग, महात्मा गांधी मार्ग, लेकिन लोगों को GB Road कहने में जो मज़ा आता है, वो बात और किसी नाम में नहीं. यहां बहुत सी दुकानें हैं, लेकिन सबसे ज़्यादा जो दुकान चलती है, वो ‘जिस्म’ की है. देश भर से ‘अच्छी Quality’ की लड़कियां यहां लायी जाती हैं और इन्हें कस्टमर्स की Choice के हिसाब से परोसा जाता है. ‘माल’ जब तक Fresh हो, तब तक उसके लिए कई लाइन में खड़े हो जाते हैं, लेकिन अपनी ‘Expiry Date’ तक पहुंचते ही इसे निकाल फ़ेंक दिया जाता है.

इस काम में Retirement Plan नहीं होता

Mid Day

40 साल पार करने के बाद एक ‘Sex Worker’ को ज़्यादा कस्टमर्स नहीं मिलते, क्योंकि उनके लिए इनके बदन की कीमत खत्म हो जाती है. ये एकमात्र ऐसा पेशा है, जिसमें Experience के पैसे नहीं मिलते.जिन Sex Workers को पहले से ही ज़्यादा कस्टमर्स नहीं मिलते, वो इतनी ‘Popular’ नहीं होती. इसलिए ये आसानी से छोटा-मोटा काम जैसे खाना बनाना, घर के काम करती हैं. लेकिन इस पेशे की एक सच्चाई ये भी है कि इस उम्र तक आते-आते आधी से ज़्यादा औरतों की हालत ठीक नहीं रहती. अंतरमन तो कुचला ही जा चुका होता है, शरीर की ऐसी स्थिति होती है कि वो कोई काम करने लायक नहीं बचती.

तो कैसे चलता है इनका गुज़ारा?

Sex के इस धंधे की एक ब्रांच और है, ‘भीख मांगना’. जो औरतें ख़ुशी-ख़ुशी इस काम के लिए मान जाती हैं, वो अगले दिन से ही एक ट्रक में भरकर रेलवे स्टेशन, रेड लाइट एरिया में ट्रांसफर कर दी जाती हैं. जो ज़्यादा आवाज़ उठाती हैं, उनको मार कर किसी भी कोने में फ़ेंक दिया जाता है. Human Rights तो बहुत बड़ी बात है, इनको कानूनी हक़ नाम की कोई चीज़ नहीं मिलती.

सफ़ेदपोश गिद्धों से ये किसी मदद की आशा कर नहीं सकतीं, क्योंकि वो खुद इन्हें नोच कर खाने के लिए तैयार हैं. तो साहब बात ये है कि ‘Rights’ पर चर्चा सिर्फ़ आलीशान बंगलों के ठन्डे कमरों के अंदर करोड़ों के सोफ़े पर बैठ कर, ‘Snacks’ खाते हुए ही की जा सकती है. इसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं है.

‘Sex Work’ बंद करा देना चाहिए’ जैसी बातें करने का मेरा कोई इरादा नहीं, न ही मुझे ये कहने का कोई हक़ है. कहूं भी कैसे, मुझे बड़ा अपमान लगता था ये शब्द ‘रंडी’ सुनकर. क्या मैं अकेले इन सब का पेट भर सकती हूं? नहीं! कम से कम किसी का चूल्हा तो जल रहा है.

बात ये है कि क्या हमारे अंदर इतना सा भी साहस नहीं है कि हम इन लोगों को कम से कम सुकून से बूढ़े होने की आज़ादी दें. मैं नहीं कह रही कि इन्हें ‘Mainstream’ दुनिया के सामने लेकर आओ. लेकिन इतना तो कर दो कि ये चैन से सो सकें. इनके जीवन को दिखा कर ‘छी’ कितनी बार कहा होगा, कभी इनकी त्रासदी देखकर मुंह से ‘आह’ निकली है? जिसने अपने जिस्म को सालों तक नुचवा लिया हो, उसमें इस उम्र में इतनी शक्ति बची होगी कि वो भीख मांगने और सड़क पर लोगों की दया-दृष्टि पड़ने का इंतज़ार करती रहेगी?

आज अगर रात को नींद न आये, तो सोने की कोशिश मत करना. एक बार सोचना कि क्या हम नैतिकता के इस Exam में बैठने लायक हैं? क्या हम कुछ नहीं कर सकते इनके लिए?

मैं इस सवाल का जवाब तलाश रही हूं, आप चाहें तो मेरी मदद कर सकते हैं.

(नीतीश के.एस. से टेलीफोनिक बातचीत पर आधारित)

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