संध्या एक रेड-लाइट एरिया में पैदा हुई. रेड-लाइट एरिया यानी ऐसा मोहल्ला, जहां वैश्यावृति होती है, आम लोगों के लिए एक ‘गन्दी जगह’. इतना भी काफी था हमारे समाज द्वारा उसे ‘अछूत’ बनाने के लिए.

संध्या की मां को केरल से मुंबई के सबसे पुराने रेड-लाइट एरिया, कमाथीपुरा लाया गया था. संध्या काली है, इस बात ने तो उसे लोगों के लिए और भी घृणित बना दिया. उसे बदसूरत कहा गया, बचपन में बच्चे उसे ‘काला कौवा’ कह कर चिढ़ाते थे, क्योंकि हमारे समाज में ‘सुन्दर’ की परिभाषा ही ‘Fair & Lovely’ होना है.

बचपन में कोई नहीं था दोस्त 

10 साल की होने तक स्कूल में उसके रंग और बैकग्राउंड के कारण उसका कोई दोस्त नहीं था, वो अकेली ही रहती थी. इस बात का फायदा उठा कर स्कूल के एक टीचर ने उसका रेप किया.

पर ये सबकुछ उसे आगे बढ़ने से रोक नहीं सका. हालात तो जन्म से बुरे थे ही, बस एक चीज़ संध्या के हाथ में थी, या तो वो लूज़र बन सकती थी या एक फाइटर. थिएटर के ज़रिये उसे अपनी पहचान मिली और अब वो उसे पीछे खींचते रहने वाले समाज को ठेंगा दिखाकर आगे बढ़ती जा रही है.

Humans of Bombay संध्या की कहानी को दुनिया के सामने लेकर आया है. संध्या की कहानी अपने आप में एक मिसाल है. निराधार पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर वो बहादुरी से अपनी ज़िन्दगी जी रही है.

हर कोई यहां ज़्यादा गोरा होना चाहता है 

भारत में ज़्यादातर लोगों की त्वचा का प्राकृतिक रंग गोरा नहीं होता, फिर भी यहां गोरेपन को लेकर ऐसा जुनून है कि हज़ारों कॉस्मेटिक की कंपनियां सिर्फ लोगों को गोरा बना देने का वादा कर के यहां करोड़ों का कारोबार कर रही हैं. कहीं न कहीं हर इंसान यहां जैसा भी है, उससे ज़्यादा गोरा होना चाहता है. इसके पीछे सिर्फ ये मानसिकता है कि ‘गोरा’ सुन्दर होता है, और ‘काला’ गन्दा होता है. बच्चे भी यही समझते हैं, इसलिए उनके लिए संध्या ‘गन्दी’ थी.

दस साल की उम्र में हुआ था रेप 

संध्या अकेले रहने पर मजबूर थी, उसके टीचर ने उसका रेप किया और बड़े होने तक वो समझ तक नहीं पायी थी कि जो उसके साथ हुआ उसे रेप कहते हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर पांच में से दो बच्चों के साथ बचपन में यौन शोषण होता है. हमारी शिक्षा व्यवस्था में सेक्स एजुकेशन को कोई जगह नहीं दी जाती. घरों में भी बच्चों को ‘Good Touch’ और ‘Bad Touch’ के बीच अंतर नहीं समझाया जाता क्योंकि सेक्स के बारे में बात करना यहां एक Taboo है. कितनी अजीब बात है कि हम सिर्फ़ इस मानसिकता के चलते बच्चों का रेप होने देते हैं, पर उन्हें ये सब समझाने से झिझकते हैं.

संध्या एक स्ट्रीट प्ले ग्रुप का हिस्सा बन चुकी है, जो सेक्स, महावारी जैसे अनछुए मुद्दों के बारे में लोगों को शिक्षित और जागरुक करता है.

संध्या के पिता को उसकी मां से प्यार हो गया था, जिसके बाद से उसकी मां ने अपना पुराना पेशा छोड़ कर एक घरेलू नौकरानी के रूप में काम करना शुरू कर दिया, पर समाज के लिए संध्या के माथे से ‘वैश्या की बेटी’ होने का दाग कभी नहीं हटा.

कमाथीपुरा की औरतें मानती हैं बेटी 

संध्या अब भी कमाथीपुरा में ही रहती है, जबकि उसके मां-बाप केरल लौट चुके हैं. वो कहती है कि ये मेरा घर है. यहां की औरतें एक इंसान के तौर पर उन सभी लोगों से कहीं ज़्यादा खूबसूरत हैं, जो उसे ताने देते रहे. जिस जगह को लोग ‘गन्दी जगह’ कहते हैं, वहां कभी उसे किसी ने गलत तरह से नहीं छुआ, उसका रेप हुआ तो उस जगह, जिसे हम ‘मंदिर’ का दर्जा देते हैं. वो उसे बिलकुल अपनी बेटी की तरह रखती हैं. उसे हमेशा यहां बहुत प्यार मिला है. यहां रहने पर उसे एहसास होता है कि उसका रंग और बैकग्राउंड जैसा भी हो, वो खूबसूरत है.

संध्या की कहानी हर उस लड़की की कहानी है, जो अपने रंग के कारण कॉन्फिडेंट महसूस नहीं करती, जिसे कभी न कभी अपने रंग के कारण लोगों के पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ा है. सवाल ये उठता है कि सुन्दरता की हमारी गढ़ी हुई परिभाषा इतनी सतही क्यों है? हम किसी इंसान के गुणों से ज़्यादा तवज्जो उसके बैकग्राउंड को क्यों देते हैं?

अपनों के लिए कुछ करने के लिए लौट आई है San Francisco से 

संध्या ‘क्रान्ति’ थिएटर ग्रुप के ज़रिये San Francisco भी गयी, जहां ‘Girl on the Run’ प्रोग्राम के तहत उसने बहुत कुछ सीखा. वो बताती है कि वहां के लोग उसके बैकग्राउंड, रंग और पास्ट के आधार पर उससे बुरी तरह पेश नहीं आते थे. फिर भी संध्या कमाथीपुरा लौट आई है, ताकि अपने घर के लोगों के लिए कुछ कर सके.

संध्या ने साबित कर दिया है कि एक इंसान अपने रंग और बैकग्राउंड से बढ़ कर बहुत कुछ होता है. सिर्फ ‘Fair’ ही ‘Lovely’ नहीं होता, हमें ये बात समझनी होगी. असल में बदसूरत वो होते हैं जो किसी के रंग के आधार पर उसे Judge करते हैं.